'जोड़तोड़ की सियासत'.. 48 घंटे में बीजेपी ने खो दिए 6 नेता, दो पार्टी में हुए शामिल.. जानिए कितना पड़ा भारी

‘जोड़तोड़ की सियासत’.. 48 घंटे में बीजेपी ने खो दिए 6 नेता, दो पार्टी में हुए शामिल.. जानिए कितना पड़ा भारी

'जोड़तोड़ की सियासत'.. 48 घंटे में बीजेपी ने खो दिए 6 नेता, दो पार्टी में हुए शामिल.. जानिए कितना पड़ा भारी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:09 PM IST, Published Date : January 13, 2022/10:33 am IST

नई दिल्ली। यूपी चुनाव से पहले ही सियासत में जोड़तोड़ जारी है। ओबीसी नेता दारा सिंह चौहान के इस्तीफे के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार को दूसरा झटका लगा है। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद दारा सिंह चौहान ने भी योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। दो दिनों के अंदर भाजपा के 6 नेताओं ने पार्टी छोड़ने का फैसला किया है। वहीं भाजपा में दो विधायक शामिल भी हुए हैं। एक सपा और एक कांग्रेस विधायक ने अपनी पार्टी को अलविदा कह भाजपा से नाता जोड़ लिया।

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दिल्ली में भाजपा की उच्च स्तरीय बैठक से पहले ही स्वामी प्रसाद मौर्या ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। बता दें कि उन्हें पिछड़ी जातियों के नेता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा है कि 14 जनवरी को वह बड़ा ऐलान करेंगे। अब तक उन्होंने कोई पार्टी जॉइन नहीं की है। बुधवार को ही भाजपा विधायक अवतार सिंह भड़ाना ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। वह सपा और आरएलडी गठबंधन में शामिल होने वाले हैं।

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मौर्या के समर्थन में भाजपा के तीन और विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। मंगलवार को बृजेश प्रजापति, रौशन लाल वर्मा और भगवती सागर ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया था। वहीं कांग्रेस के नरेश सैनी औऱ सपा के हरी ओम यादव भाजपा में शामिल हो गए।

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2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कानपुर देहात की बिल्हौर सीट पर इतिहास दर्ज करा दिया थआ। यहां से जाने माने नेता भगवी सागर ने भाजपा को जीत दिलायी थी। इस सीट पर भाजपा को पहली बार जीत मिली थी। अब भगवती सागर ने पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया है तो जाहिर सी बात है कि भाजपा को इतिहास दोहराने में मुश्किल हो सकती है।

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30 फीसदी अति पिछड़ों की नाराजगी पड़ सकती है भारी
स्वामी प्रसाद, दारा सिंह, रोशलाल वर्मा, भगवती सागर औऱ बृजेश प्रजापति अति पिछड़ा, दलित समुदाय से हैं। उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण देखें तो 42 फीसदी पिछड़ों में 13.5 फीसदी कुर्मी औऱ यादव हैं। 30 फीसदी लोग अति पिछड़ी जातियों से हैं। पिछले चुनाव के आंकड़े देखें तो अति पिछड़ी जातियों ने भाजपा का पूरा सहयोग किया था। लेकिन इस बार अगर भाजपा से ये लोग अलग हुए तो चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है।

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