नयी दिल्ली, 10 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कथित तौर पर एक भड़काऊ गीत का संपादित वीडियो पोस्ट करने के मामले में दर्ज प्राथमिकी को लेकर गुजरात पुलिस से सवाल किया।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय कविता के अर्थ को नहीं समझ पाया, जिसने प्रतापगढ़ी की प्राथमिकी रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी।
पीठ ने कहा, ‘‘यह अंततः एक कविता है। यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह कविता परोक्ष रूप से कहती है कि भले ही कोई हिंसा में लिप्त हो, हम हिंसा में लिप्त नहीं होंगे। कविता यही संदेश देती है। यह किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है।’’
प्रतापगढ़ी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश कानून के अनुरूप नहीं है।
राज्य के वकील द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगे जाने पर शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवायी तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
उच्चतम न्यायालय ने 21 जनवरी को प्रतापगढ़ी के खिलाफ कथित रूप से एक भड़काऊ गीत का संपादित वीडियो पोस्ट करने के मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और उनकी अपील पर गुजरात सरकार और शिकायतकर्ता किशनभाई दीपकभाई नंदा को नोटिस जारी किया था।
कांग्रेस नेता ने गुजरात उच्च न्यायालय के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई थी कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है।
गुजरात के जामनगर में आयोजित एक सामूहिक विवाह समारोह की पृष्ठभूमि में कथित ‘भड़काऊ’ गीत के लिए तीन जनवरी को प्रतापगढ़ी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रतापगढ़ी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (धर्म, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने) और धारा 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल आरोप, दावे) सहित विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
प्रतापगढ़ी द्वारा सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर साझा की गई 46 सेकंड की वीडियो क्लिप में दिखाया गया है कि जब वह हाथ हिलाते हुए चल रहे थे तो उन पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाई जा रही थीं और पृष्ठभूमि में एक गाना बज रहा था। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि गीत के बोल भड़काऊ, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं।
प्रतापगढ़ी ने प्राथमिकी रद्द करने के लिए दाखिल याचिका में दावा किया कि पृष्ठभूमि में पढ़ी जा रही कविता ‘‘प्रेम और अहिंसा का संदेश’’ देती है। उन्होंने दावा किया कि प्राथमिकी का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए एक हथियार के रूप में किया गया और इसे ‘‘दुर्भावनापूर्ण इरादे और गलत मंशा’’ के साथ दर्ज किया गया है।
प्रतापगढ़ी ने दावा किया कि उनके सोशल मीडिया पोस्ट ने किसी भी तरह से समूहों के बीच द्वेष नहीं भड़काया और अंतत: उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस से जुड़े होने के कारण उन्हें फंसाया जा रहा है।
याचिका में दलील दी गई, ‘‘प्राथमिकी हल्के और अप्रमाणित तथ्यों पर आधारित है। प्राथमिकी को देखने से पता चलता है कि कुछ शब्दों को संदर्भ से बाहर लिया जा रहा है।’’
लोक अभियोजक हार्दिक दवे ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कविता के शब्द स्पष्ट रूप से राज्य की सत्ता के खिलाफ गुस्सा भड़काने का संकेत देते हैं।
दवे ने कहा कि चार जनवरी को एक नोटिस जारी किया गया था जिसमें प्रतापगढ़ी से 11 जनवरी को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था, लेकिन वह पेश नहीं हुए थे और 15 जनवरी को एक और नोटिस जारी किया गया था।
गुजरात उच्च न्यायालय ने 17 जनवरी को अभियोजन पक्ष की सामग्री का हवाला देते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर पोस्ट के बाद समुदाय के विभिन्न व्यक्तियों से प्राप्त प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि इसका परिणाम ‘बहुत गंभीर’ था और निश्चित रूप से समाज के सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाला था।
भाषा अमित नरेश
नरेश
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