‘प्रॉक्सी गवर्नेंस’ मामला: एनएचआरसी ने 32 राज्यों के शीर्ष अधिकारियों को सशर्त समन जारी किया

‘प्रॉक्सी गवर्नेंस’ मामला: एनएचआरसी ने 32 राज्यों के शीर्ष अधिकारियों को सशर्त समन जारी किया

‘प्रॉक्सी गवर्नेंस’ मामला: एनएचआरसी ने 32 राज्यों के शीर्ष अधिकारियों को सशर्त समन जारी किया
Modified Date: December 14, 2025 / 09:58 pm IST
Published Date: December 14, 2025 9:58 pm IST

नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने 24 राज्यों और आठ केंद्र-शासित प्रदेशों के पंचायती राज एवं स्थानीय शहरी निकाय विभागों के शीर्ष अधिकारियों को “सशर्त समन” जारी किया है, जो इन संस्थानों में कथित ‘‘प्रॉक्सी गवर्नेंस’’ की प्रथा के संबंध में एनएचआरसी की ओर से पहले जारी किए गए नोटिस का जवाब देने में “विफल” रहे थे। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।

अधिकारियों ने बताया कि यह मामला हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा की ओर से दायर शिकायत से जुड़ा हुआ है, जिस पर एनएचआरसी की एक पीठ ने सदस्य प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता में 12 दिसंबर को विचार किया था।

अधिकारियों के मुताबिक, शिकायत की जांच में आयोग ने पाया कि संवैधानिक सुरक्षा उपायों और अदालती फैसलों के बावजूद, निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधि अक्सर “नाममात्र की मुखिया” रह जाती हैं, जबकि उन्हें हासिल प्रशासनिक शक्तियों और निर्णय लेने के अधिकारों का “इस्तेमाल” उनके पति या पुरुष रिश्तेदार करते हैं। इस प्रथा को आमतौर पर ‘सरपंच पति’ के रूप में जाना जाता है।

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उन्होंने बताया कि शिकायत में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों के रिश्तेदारों को अनौपचारिक रूप से सांसदों और विधायकों के संपर्क व्यक्तियों या प्रतिनिधियों के रूप में नियुक्ति कर दिया जाता है, जिससे संवैधानिक रूप से अनिवार्य स्थानीय स्वशासन संस्थानों के कामकाज में “अनुचित हस्तक्षेप” होता है।

आयोग ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान इस असंवैधानिक और गैरकानूनी प्रथा (‘सरपंच पति’) की स्पष्ट रूप से निंदा की थी।

अधिकारियों ने कहा कि इस तरह का ‘प्रतिनिधि शासन’ 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों की भावना को कमजोर करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद-243डी के तहत महिलाओं के आरक्षण के उद्देश्य को विफल करता है और अनुच्छेद 14, 15(3) व 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

एनएचआरसी ने यह भी पाया कि ऐसा कृत्य भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत आपराधिक कदाचार की श्रेणी में आ सकता है, जिसमें लोक सेवकों का प्रतिरूपण, आपराधिक विश्वासघात और सार्वजनिक कार्यों को गैरकानूनी रूप से करना जैसे अपराध शामिल हैं।

कार्यवाही के दौरान इस बात का जिक्र किया गया कि नौ सितंबर को कानूनगो की अध्यक्षता वाली पीठ ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 की धारा-12 के तहत मामले का संज्ञान लिया था और सभी राज्यों एवं केंद्र-शासित प्रदेशों को कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) पेश करने का निर्देश दिया था।

इसमें कहा गया कि केवल आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा और उत्तराखंड की सरकारों तथा उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों के प्रशासन से ही प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जबकि “32 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों ने कोई जवाब नहीं दिया।”

कार्यवाही के दौरान कहा गया कि मामले की गंभीरता और लगातार गैर-अनुपालन को देखते हुए, आयोग ने अब “मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 की धारा-13 के तहत 32 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के पंचायती राज तथा स्थानीय शहरी निकाय विभागों के प्रधान सचिवों को सशर्त समन जारी करने” का निर्देश दिया है।

अधिकारियों ने बताया कि संबंधित अधिकारियों को 30 दिसंबर को पूर्वाह्न 11 बजे आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने और मामले में की गई कार्रवाई की विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है।

उन्होंने बताया कि अगर अपेक्षित रिपोर्ट 22 दिसंबर तक मिल जाती है, तो व्यक्तिगत पेशी की जरूरत नहीं होगी।

हालांकि, अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि वैध कारण बताए बिना अनुपालन न करने पर सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 के आदेश-16 के नियम 10 और 12 के तहत कार्रवाई की जाएगी, जिसमें वारंट जारी करना भी शामिल है।

अधिकारियों के मुताबिक, आयोग ने दोहराया कि महिलाओं के लिए आरक्षण का मकसद उनका वास्तविक सशक्तीकरण, गरिमा और नेतृत्व सुनिश्चित करना है, न कि प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व की सुविधा देना।

उसने स्पष्ट किया कि “किसी भी तरह का ‘प्रॉक्सी गवर्नेंस’ लोकतंत्र और कानून के शासन पर प्रहार करता है।”

भाषा पारुल देवेंद्र

देवेंद्र


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