पति के अधिकार पर सवाल उठाना, उसकी मां पर निंदनीय आरोप लगाना क्रूरता के समान: उच्च न्यायालय
पति के अधिकार पर सवाल उठाना, उसकी मां पर निंदनीय आरोप लगाना क्रूरता के समान: उच्च न्यायालय
नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि पति के अधिकार पर सवाल उठाना और उसकी मां के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है, जो तलाक का आधार है।
उच्च न्यायालय ने परिवार अदालत द्वारा दिए गए तलाक आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अपमानजनक भाषा का प्रयोग, शारीरिक हिंसा और सामाजिक अलगाव समेत महिला का क्रूरतापूर्ण कृत्य अपने आप में विवाह विच्छेद के लिए पर्याप्त आधार हैं।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने 17 अक्टूबर को पारित अपने फैसले में कहा, ‘इस मामले में साबित किए गए शब्द और संवाद हानिरहित नहीं हैं। कानून मानता है कि मानसिक क्रूरता लगातार और जानबूझकर मौखिक दुर्व्यवहार और ऐसे आचरण से उत्पन्न हो सकती है जो जीवनसाथी को अपमानित करता है और उसकी प्रतिष्ठा एवं आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है।’
उच्च न्यायालय ने यह आदेश महिला द्वारा दायर अपील पर पारित किया, जिसमें दावा किया गया था कि परिवार अदालत ने उसके साथ हुई क्रूरता पर विचार नहीं किया तथा पति को गलत तरीके से तलाक दे दिया।
महिला भारतीय रेलवे यातायात सेवा की ‘ग्रुप ए’ अधिकारी है और पुरुष पेशे से वकील है। दोनों ने जनवरी 2010 में विवाह किया था और मार्च 2011 में वे अलग हो गए। यह दोनों की दूसरी शादी थी।
परिवार अदालत ने पति के पक्ष में उसकी अलग रह रही पत्नी द्वारा की गई क्रूरता के आधार पर 2023 में तलाक का आदेश दे दिया।
महिला ने अपनी अपील में दावा किया कि व्यक्ति ने जाति-आधारित टिप्पणी करके उसे अपमानित किया, उसकी पेशेवर जिम्मेदारियों के बावजूद उसे घरेलू काम करने के लिए मजबूर किया और उसे झूठे और तुच्छ मुकदमों में फंसाया।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्नी द्वारा प्रति-क्रूरता का दावा मात्र करने से उसकी क्रूरता के स्थापित कृत्य स्वतः निरस्त नहीं हो जाएंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘दो गलतियां मिलकर एक सही नहीं बनतीं। अपीलकर्ता (पत्नी) द्वारा अपमानजनक भाषा का प्रयोग, शारीरिक हिंसा और सामाजिक अलगाव समेत क्रूरता जैसे कृत्य अपने आप में इतने गंभीर हैं कि विवाह विच्छेद की आवश्यकता है।’
अदालत ने कहा कि महिला ने पुरुष को ‘घृणित, अपमानजनक और निंदनीय’ संदेश भेजे, जिसमें उसके अधिकार पर सवाल उठाना और उसकी मां के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाना शामिल था।
अदालत ने कहा, ‘ऐसे संदेश…जिनमें ‘कमीना’, ‘कुतिया का बेटा’ जैसे शब्द इस्तेमाल किये गए, और कहा गया कि उसकी मां को ‘वेश्यावृत्ति के माध्यम से कमाई करनी चाहिए’, अपने आप में सबसे गंभीर प्रकार की मानसिक क्रूरता है।’’
भाषा आशीष अविनाश
अविनाश

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