संतोष को ज्यादा ही तवज्जो दी जाती है, रचनात्मक लोगों को असंतुष्ट रहना चाहिए: शाहरुख

संतोष को ज्यादा ही तवज्जो दी जाती है, रचनात्मक लोगों को असंतुष्ट रहना चाहिए: शाहरुख

संतोष को ज्यादा ही तवज्जो दी जाती है, रचनात्मक लोगों को असंतुष्ट रहना चाहिए: शाहरुख
Modified Date: August 12, 2024 / 02:42 pm IST
Published Date: August 12, 2024 2:42 pm IST

नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) प्रसिद्ध अभिनेता शाहरुख खान का मानना है कि रचनात्मक लोगों को ‘असंतुष्ट’ रहना चाहिए ताकि वे नया सृजन करते रहें। उन्होंने युवाओं को पिछली उपलब्धियों पर संतोष नहीं करने की भी सलाह दी।

शाहरुख स्विट्जरलैंड में लोकार्नो फिल्म महोत्सव के 77वें संस्करण में पार्डो अला कैरियरा पुरस्कार-लोकार्नो टूरिज्म पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहली भारतीय फिल्मी शख्सियत बन गए।

पांच साल के अंतराल के बाद पिछले साल एक के बाद एक तीन फिल्मों ‘पठान’, ‘जवान’ और ‘डन्की’ से बड़े पर्दे पर लौटने वाले शाहरुख रविवार को फिल्मोत्सव के प्रश्न-उत्तर सत्र में भाग ले रहे थे।

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उन्होंने इस दौरान कहा, ‘‘संतोष को अनावश्यक बहुत महत्व दिया जाता है। आपको हमेशा खुद से सवाल करते रहना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं है कि आप चिंतित हो जाएं, लेकिन एक रचनात्मक व्यक्ति के तौर पर आपको हमेशा असंतुष्ट रहना चाहिए, इसलिए मैं कभी संतुष्ट नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ हासिल किया है। मुझे नहीं लगता कि यह सब पूरा हो चुका है और मैं सफल हूं। मुझे लगता है कि यह सब अप्रासंगिक है। प्रासंगिक यह है कि क्या मैं कल कुछ नया कर सकता हूं?’’

शाहरुख ने इस सत्र में महोत्सव के कलात्मक निदेशक जियोना ए नाजारो से कहा, ‘‘मैंने जो कल किया, वह खत्म हो चुका है। जब मेरी फिल्म खत्म हो जाती है, तो मैं दो घंटे तक नहाता हूं। उसके बाद, मैं सफलता या असफलता के बारे में नहीं सोचता। मैं अगली फिल्म पर काम शुरू कर देता हूं। अगर मैं अगली फिल्म पर काम शुरू नहीं कर पाया, तो मुझे लगता है कि मैं थक जाऊंगा। मैं सभी युवाओं से कहूंगा कि कृपया अपनी उपलब्धियों पर संतोष नहीं करें।’’

मणिरत्नम और एटली जैसे तमिल फिल्मकारों के साथ काम कर चुके शाहरुख (58) ने कहा कि दक्षिण का सिनेमा ‘तकनीकी रूप से और सिनेमाई रूप से शानदार है’।

उन्होंने कहा, ‘‘ ‘जवान’, ‘आरआरआर’ और ‘बाहुबली’ जैसी पिछले कुछ साल की हिट फिल्मों के साथ दुनिया ने इस ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है कि जो हम भारत में हमेशा से जानते रहे हैं। दक्षिण के सिनेमा की एक अलग शैली है जिसमें बड़े नाटक और बहुत संगीत होता है।’’

शाहरुख ने कहा, ‘‘मुझे इसमें वाकई मजा आया। यह मेरे लिए नया अनुभव था और मैं अपने बच्चों से पूछता था कि क्या मैं पर्दे पर ठीक दिख रहा हूं क्योंकि मुझे लगता था कि मैं किसी बड़ी चीज से जुड़ा हूं। ‘जवान’ हिंदी और दक्षिण भारतीय सिनेमा का पहला सच्चा मिश्रण था, जो सीमाओं से परे था और जिसे पूरे देश में पसंद किया गया।’’

जब एक श्रोता ने शाहरुख से पूछा कि उनका दोनों हाथ फैलाने वाला मशहूर अंदाज कैसे आया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता, लेकिन दिवंगत कोरियोग्राफर सरोज खान ने यह स्टेप कराया था।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा


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