‘स्किन-टू-स्किन टच’ के बिना भी दर्ज होंगे बच्चों के खिलाफ यौन अपराध, सुप्रीम कोर्ट का बेहद अहम फैसला
Sex crimes against children will be registered even without 'skin-to-skin touch', Supreme Court's very important decision
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें कहा गया था कि स्किन टू स्किन संपर्क के बिना नाबालिग के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।
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कोर्ट का मानना है कि स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना बच्चों के नाजुक अंगों को छूना POSCO कानून के तहत यौन शोषण है। यौन इच्छा से बच्चे के यौन अंगों को छूना पोक्सो के तहत अपराध है।
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जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की तीन-सदस्यीय पीठ ने कहा कि गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा।
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अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पॉक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी हुए आरोपी को दोषी ठहराया। आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत तीन साल की सजा दी गई।
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जानिए क्या है मामला
दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूना या टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता।
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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। वहीं अब उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के इस फैसले को बदलते हुए बड़ा फैसला सुनाया।

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