गणतंत्र दिवस शिविर में आपस में संवाद में मदद कर रही है सांकेतिक भाषा

गणतंत्र दिवस शिविर में आपस में संवाद में मदद कर रही है सांकेतिक भाषा

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  • Publish Date - January 24, 2021 / 01:23 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:56 PM IST

(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) बांग्ला, गुजराती, तमिल, लद्दाखी, असमिया उन भारतीय भाषाओं में शामिल हैं जो इस साल यहां गणतंत्र दिवस शिविर में सुनी जा सकती हैं, लेकिन साथ ही एक विशेष भाषा भी है जो विभिन्न प्रतियोगियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही है और वह है सांकेतिक भाषा।

हाथ के इशारों की भाषा न केवल शिविर में शामिल सुनने और बोलने में अक्षम लोगों के लिए संवाद सेतु बन गई है बल्कि इससे उन लोगों की भी मदद हो रही है जो बोल और सुन तो सकते हैं लेकिन कोरोना वायरस महामारी के इस समय में मास्क लगाने की वजह से उनके चेहरे के भाव छिप गए हैं।

भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र (आईएसएलआरटीसी) के 12 युवाओं का एक समूह दिल्ली छावनी परिसर में अपनी नीली वर्दी में एक दूसरे के साथ तथा झांकी के अन्य सदस्यों के साथ संवाद करते हुए देखा जा सकता है।

दिल्ली स्थित आईएसएलआरटीसी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत आता है। यह भारतीय सांकेतिक भाषाओं के विकास के लिए पाठ्यक्रम संचालित करता है और विभिन्न कार्यक्रमों के लिए सेवाएं प्रदान करता है।

संस्थान की सविता शर्मा ने कहा, ‘‘इस वर्ष, मंत्रालय की झांकी हमारे संस्थान का प्रतिनिधित्व करेगी और जो भी लड़के और लड़कियां इसका हिस्सा हैं वे बहुत उत्साहित हैं। हो सकता है कि वे मौखिक रूप से यह बताने में सक्षम नहीं हों, लेकिन इशारों के माध्यम से उन्होंने अपनी खुशी व्यक्त की है।’’

कारीगर आईएसएलआरटीसी की झांकी को अंतिम रूप दे रहे हैं और इसके सदस्य शिविर में अपना समय एक दूसरे के साथ संवाद में व्यतीत कर रहे हैं।

धौलपुर, राजस्थान के निवासी पंकज कुमार कोविड-19 पाबंदियों के कारण आईएसएलआरटीसी में अपना कोर्स ऑनलाइन कर रहे हैं और वह इसे लेकर खुश हैं कि उन्हें शिविर में शारीरिक रूप से शामिल होने और एक ही स्थान पर देश की विविधता का अनुभव करने का मौका मिल रहा है।

डी.एड में एक पाठ्यक्रम पूरा करने वाली 21 वर्षीय गार्गी उन्हें और सुनने में अक्षम अन्य लोगों के साथ संवाद में मदद करती हैं।

भाषा अमित नरेश

नरेश