वर्ष 2025 में राष्ट्रपति के संदर्भ और वक्फ कानून पर उच्चतम न्यायालय ने अहम फैसले सुनाए

वर्ष 2025 में राष्ट्रपति के संदर्भ और वक्फ कानून पर उच्चतम न्यायालय ने अहम फैसले सुनाए

वर्ष 2025 में राष्ट्रपति के संदर्भ और वक्फ कानून पर उच्चतम न्यायालय ने अहम फैसले सुनाए
Modified Date: December 27, 2025 / 01:56 pm IST
Published Date: December 27, 2025 1:56 pm IST

(पवन के. सिंह, अभिषेक अंशु और संजीव कुमार द्वारा)

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने विधेयकों को लेकर राज्यपालों एवं राष्ट्रपति की शक्तियों और वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक समेत 2025 में कई अन्य ऐतिहासिक फैसले सुनाए।

इसके अलावा पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई पर जूता फेंके जाने और यहां उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के बंगले में भारी नकदी मिलने की घटना भी सुर्खियों में छाई रही।

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उच्चतम न्यायालय में इस बार एक ही वर्ष में तीन प्रधान न्यायाधीश देखने को मिले। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के बाद यह जिम्मेदारी न्यायमूर्ति गवई ने संभाली और अब न्यायमूर्ति सूर्यकांत यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के उद्देश्य से न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति गवई ने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की कि वे सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं स्वीकार करेंगे।

इसके बाद संस्थागत पारदर्शिता की दिशा में कदम बढ़ाते हुए न्यायालय ने अपने न्यायाधीशों के संपत्ति विवरण सार्वजनिक मंच पर अपलोड करना शुरू किया। उसने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) श्रेणियों के लिए अपने प्रशासनिक कर्मचारियों की नियुक्ति में पहली बार औपचारिक आरक्षण नीति भी लागू की।

न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास से 14 मार्च को बड़ी मात्रा में जले हुए नोट के बंडल मिलने के बाद न्यायपालिका में हलचल मच गई। न्यायमूर्ति वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। आंतरिक जांच समिति द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी ठहराए जाने के बाद और न्यायमूर्ति खन्ना द्वारा बार-बार दबाव डाले जाने के बावजूद न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके महाभियोग के लिए पत्र लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा। फिलहाल, न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ एक संसदीय समिति जांच कर रही है। महाभियोग से पहले यह एक अनिवार्य शर्त है।

भगवान के संबंध में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश गवई की कथित टिप्पणियों से नाराज वकील राकेश किशोर ने छह अक्टूबर को सुनवाई के दौरान उनकी ओर जूता उछाल दिया जिसके बाद वकील को निलंबित कर दिया गया।

वर्ष 2025 में जनहित, राजनीति, पर्यावरण, व्यापार, अपराध एवं जटिल दीवानी विवादों से जुड़े कई दूरगामी फैसले सुनाए गए। इनमें नए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 और राष्ट्रपति के संदर्भ संबंधी मामलों पर फैसले शामिल रहे।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को राहत देते हुए कहा कि नए संशोधित वक्फ कानून में ‘‘वक्फ बाय यूजर’’ प्रावधान को हटाना प्रथम दृष्टया मनमाना नहीं था और सरकार द्वारा वक्फ की जमीनें हड़प लेने संबंधी दलीलें ‘‘अमान्य’’ हैं। ‘वक्फ बाय यूजर’ से आशय ऐसी संपत्ति से है, जहां किसी संपत्ति को औपचारिक दस्तावेज के बिना भी धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उसके दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो।

राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी या मंजूरी न मिलने को लेकर राज्यपालों और विपक्ष शासित राज्यों के बीच जारी खींचतान तब चरम पर पहुंच गई जब राष्ट्रपति मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर कई मुद्दों पर उसकी राय मांगी, जिनमें यह भी शामिल था कि क्या न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला द्वारा लिखित फैसले में परिकल्पित तीन महीने की समयसीमा राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए तय की जा सकती है।

संदर्भ का उत्तर देते हुए पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 20 नवंबर को सर्वसम्मत राय दी कि न्यायालय राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की कोई समयसीमा तय नहीं कर सकता लेकिन उसने साथ ही कहा कि राज्यपालों के पास विधेयकों को ‘‘अनिश्चितकाल तक’’ रोके रखने की ‘‘असीमित’’ शक्ति नहीं है।

आवारा कुत्तों की समस्या ने भी उच्चतम न्यायालय का ध्यान खींचा। दो न्यायाधीशों की पीठ ने दिल्ली में कुत्तों के काटने से रेबीज होने की घटनाओं पर एक समाचार रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया।

उच्चतम न्यायालय ने डिजिटल अपराध की घटनाओं में बढ़ोतरी के मामले का एक दिसंबर को संज्ञान लिया और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से पूरे देश में ‘‘डिजिटल अरेस्ट’’ ठगी मामलों की जांच करने को कहा।

मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने का निर्वाचन आयोग का निर्णय भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आया।

अहमदाबाद में एअर इंडिया के ‘ड्रीमलाइनर’ विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का मामला भी उच्चतम न्यायालय पहुंचा। इस दुर्घटना में 260 लोगों की मौत हुई थी। न्यायालय ने कहा कि इस घटना के लिए कोई भी विमान के मुख्य पायलट को दोषी नहीं ठहरा सकता।

उच्चतम न्यायालय ने कर्ज में डूबी भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (बीपीएसएल) के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की 19,700 करोड़ रुपये की समाधान योजना को 26 सितंबर को बरकरार रखा जबकि मई में दो न्यायाधीशों की पीठ ने दिवालियापन और दिवालिया संहिता के उल्लंघन के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड की बीपीएसएल के लिए समाधान योजना को रद्द कर दिया था और इसके परिसमापन का आदेश दिया था।

न्यायालय ने 2021 के न्यायाधिकरण सुधार कानून के प्रमुख प्रावधानों को रद्द कर दिया। इसने वकील और मुवक्किल के बीच गोपनीयता की रक्षा के लिए भी एक महत्वपूर्ण फैसला दिया।

पश्चिम बंगाल सरकार को बड़ा झटका देते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार संचालित और सहायता प्राप्त विद्यालयों में 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया।

नोएडा के निठारी में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे 29 दिसंबर 2006 को एक नाले से गरीब पृष्ठभूमि के आठ बच्चों के कंकाल मिलने के बाद सामने आए निठारी हत्याकांड से जुड़े मामले उच्चतम न्यायालय में अंतत: समाप्त हो गए। न्यायालय ने 12 मामलों में सीबीआई की अपील खारिज कर दी। मामलों में से एक में एकमात्र दोषी सुरेंद्र कोली को भी अंततः राहत मिली। न्यायालय ने उसे आरोपों से बरी कर दिया और वह जेल से बाहर आ गया।

पूर्व प्रधान न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठों ने न्यायपालिका से जुड़े कई फैसले दिए। इनमें प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवा परीक्षाओं के लिए वकालत के तीन वर्ष के अनुभव को अनिवार्य करना भी शामिल था।

दुर्लभ आनुवंशिक रोगों और दिव्यांगजन का उपहास करने वाले सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर के खिलाफ सख्ती करते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से कहा कि वह ऐसे अपमानजनक वक्तव्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की तर्ज पर दंडनीय अपराध बनाने के लिए कानून बनाने पर विचार करे।

वहीं, एक उल्लेखनीय घटनाक्रम में न्यायालय ने तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की। सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल हुए भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के कुछ विधायकों को अयोग्य ठहराने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर निर्धारित तीन महीने की समयसीमा के भीतर अध्यक्ष द्वारा फैसला नहीं लिए जाने के कारण यह कार्यवाही शुरू की गई।

प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने अपने एक आदेश में भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे को इस बयान के लिए कड़ी फटकार लगाई कि न्यायमूर्ति खन्ना देश में “गृह युद्धों” के लिए जिम्मेदार हैं।

भाषा सिम्मी नेत्रपाल

नेत्रपाल


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