नयी दिल्ली, 26 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री और द्रमुक नेता सेंथिल बालाजी को बृहस्पतिवार को धन शोधन के एक मामले में 15 महीने से अधिक समय बाद जमानत देते हुए कहा कि निकट भविष्य में सुनवाई पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किए गए बालाजी पिछले साल से जेल में हैं और उनका लगातार हिरासत में रहना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले में 2,000 से अधिक आरोपी और 600 से अधिक गवाह होने का उल्लेख करते हुए कहा कि मुकदमे के समापन में अत्यधिक देरी और जमानत देने में देरी एक साथ नहीं चल सकती।
न्यायालय ने कहा, ‘‘इसलिए आदर्श परिस्थितियों में भी, संबंधित अपराधों के मुकदमे के तीन से चार साल के उचित समय के भीतर समाप्त होने की संभावना पूरी तरह से खत्म हो जाती है।’’ हालांकि, शीर्ष अदालत ने बालाजी को जमानत देते समय उन पर कड़ी शर्तें लगाईं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने जमानत आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेता बालाजी को सलाखों के पीछे रखकर उनके संकल्प को तोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन वह पहले से कहीं अधिक मजबूत होकर उभरे हैं।
स्टालिन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘इतने दिनों तक आपातकाल के दौरान भी जेल में नहीं रखा जाता था। राजनीतिक षड्यंत्र (बालाजी के खिलाफ) 15 महीने तक जारी रहे। (उन्होंने) सेंथिल बालाजी को जेल में रखकर उनके संकल्प को तोड़ने की कोशिश की।’’
बालाजी को जमानत मिलने के बाद उनके पैतृक गांव करूर में द्रमुक के कार्यकर्ताओं तथा समर्थकों ने जश्न मनाया।
आदेश सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में जमानत संबंधी कड़े प्रावधान ऐसा साधन नहीं बन सकते, जिसका इस्तेमाल आरोपी को बिना सुनवाई के अनुचित रूप से लंबे समय तक जेल में रखने के लिए किया जा सके।
पीठ ने कहा, ‘‘अपीलकर्ता को पीएमएलए के तहत दंडनीय अपराध के लिए 15 महीने या उससे अधिक समय तक जेल में रखा गया। मामले के तथ्यों के अनुसार, अनुसूचित अपराधों और इसके परिणामस्वरूप पीएमएलए अपराध की सुनवाई तीन से चार साल या उससे भी अधिक समय में पूरी होने की संभावना नहीं है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि अपीलकर्ता की हिरासत जारी रहती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
हालांकि, न्यायालय ने ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील का संज्ञान लिया कि बालाजी मामले में गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं और उन पर कड़ी शर्तें लगा दीं।
पीठ ने बालाजी को 25 लाख रुपये के जमानत बांड और इतनी ही राशि के दो मुचलके पेश करने का निर्देश दिया। पीठ ने निर्देश दिया कि बालाजी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह से अभियोजन पक्ष के गवाहों और पीड़ितों से संपर्क करने या संवाद करने का प्रयास नहीं करेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यदि यह पाया जाता है कि अपीलकर्ता ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पीएमएलए के तहत अनुसूचित अपराधों के साथ-साथ अपराधों में किसी अभियोजन पक्ष के गवाह या पीड़ित से संपर्क करने का प्रयास भी किया है, तो यह अपीलकर्ता को दी गई जमानत को रद्द करने का आधार होगा।’’
पीठ ने कहा, ‘‘बालाजी को प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को दिन में 11 बजे से 12 बजे के बीच चेन्नई स्थित प्रवर्तन निदेशालय के उप निदेशक के कार्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी। साथ ही उन्हें प्रत्येक महीने के पहले शनिवार को तीनों जांच अधिकारियों के समक्ष भी उपस्थित होना होगा।’’
शीर्ष अदालत ने बालाजी को जमानत पर रिहा होने से पहले चेन्नई में विशेष पीएमएलए अदालत में अपना पासपोर्ट जमा कराने का भी निर्देश दिया।
सुनवाई की शुरुआत में अदालत ने कहा कि बालाजी के बैंक खाते में 1.34 करोड़ रुपये की रकम जमा होने के बारे में भी प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं।
पीठ ने कहा कि इस चरण में, विधायक के रूप में प्राप्त वेतन और कृषि से हुई आय के जमा होने के बारे में अपीलकर्ता की दलील को बिना किसी प्रमाण के स्वीकार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, इस चरण में यह मानना बहुत कठिन होगा कि पीएमएलए की धारा 44 (1) (बी) के तहत शिकायत और उसमें दी गई सामग्री के संबंध में अपीलकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है।’’
उच्च न्यायालय ने बालाजी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि अगर उन्हें इस तरह के मामले में जमानत पर रिहा किया जाता है तो इससे गलत संदेश जाएगा और यह व्यापक जनहित के खिलाफ होगा।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि चूंकि याचिकाकर्ता आठ महीने से अधिक समय से हिरासत में हैं, इसलिए विशेष अदालत को मामले को एक निश्चित समय सीमा के भीतर निपटाने का निर्देश देना उचित होगा।
बालाजी को पिछले साल 14 जून को ईडी ने कथित नौकरी के बदले नकदी घोटाले से जुड़े धन शोधन के एक मामले में गिरफ्तार किया था। यह मामला उस समय का है, जब बालाजी पूर्ववर्ती ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) सरकार में परिवहन मंत्री थे।
ईडी ने पिछले साल 12 अगस्त को बालाजी के खिलाफ 3,000 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था। उच्च न्यायालय ने 19 अक्टूबर को बालाजी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। एक स्थानीय अदालत भी तीन बार उनकी जमानत याचिका खारिज कर चुकी है।
भाषा आशीष अविनाश
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