नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित आबकारी नीति घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज धनशोधन मामले में शुक्रवार को अंतरिम जमानत दे दी, लेकिन वह जेल में ही रहेंगे, क्योंकि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने संबंधित मामले में उन्हें गिरफ्तार किया है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने धनशोधन लिवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ‘गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता’ के पहलू पर तीन सवालों पर गहन विचार के लिए मामले को एक वृहद पीठ को सौंप दिया। पीठ के अनुसार वृहद पीठ में पांच न्यायाधीशों का होना वांछनीय है।
केजरीवाल को कथित आबकारी नीति घोटाले से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में 26 जून को सीबीआई ने भी गिरफ्तार किया था।
सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है। मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के निर्माण और क्रियान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और धनशोधन से संबंधित है, जिसे अब रद्द कर दिया गया है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि चूंकि वह पीएमएलए की धारा 19(1) के तहत ‘विश्वास करने के कारणों’ पर अपने निष्कर्षों के बावजूद मामले को एक वृहद पीठ को भेज रही है, जो ईडी की गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित है, इसलिए उसने केजरीवाल को अंतरिम जमानत देना आवश्यक समझा।
पीठ ने अपने 64-पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘इस तथ्य को देखते हुए कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और अरविंद केजरीवाल 90 दिनों से अधिक समय तक कारावास में रहे हैं तथा ऊपर संदर्भित प्रश्नों पर एक वृहद पीठ द्वारा गहन विचार की आवश्यकता है, हम निर्देश देते हैं कि अरविंद केजरीवाल को उन्हीं शर्तों पर अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है, जो 10 मई, 2024 के आदेश के तहत लगाई गई थीं।’’
लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए 10 मई को अंतरिम जमानत पर केजरीवाल को रिहा करते हुए, शीर्ष अदालत ने उन पर शर्तें लगाई थीं कि वे अंतरिम राहत के दौरान मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जाएंगे।
कई शर्तें लगाने के अलावा, इसने केजरीवाल से कहा कि वे 21 दिन की अंतरिम जमानत अवधि के दौरान उपराज्यपाल की मंजूरी प्राप्त करने के लिए जब तक बिल्कुल आवश्यक न हो, किसी भी आधिकारिक फाइल पर हस्ताक्षर न करें।
पीठ ने कहा कि वह इससे अवगत है कि केजरीवाल एक निर्वाचित नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, एक ऐसा पद जो महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है।
पीठ ने कहा, ‘हमने आरोपों का भी उल्लेख किया है। हालांकि हम कोई निर्देश नहीं देते हैं, क्योंकि हमें संदेह है कि क्या अदालत किसी निर्वाचित नेता को एक मुख्यमंत्री या एक मंत्री के रूप में पद छोड़ने या काम न करने का निर्देश दे सकती है, इसलिए हम इसका फैसला अरविंद केजरीवाल पर छोड़ते हैं।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस पहलू पर भी वृहद पीठ द्वारा विचार किया जा सकता है कि क्या एक निर्वाचित नेता को संवैधानिक पद से हटना चाहिए या नहीं।
वृहद पीठ को भेजे गए तीन सवालों में शामिल हैं – क्या ‘गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता’ पीएमएलए की धारा 19(1) के तहत पारित गिरफ्तारी के आदेश को चुनौती देने के लिए एक अलग आधार है और क्या ‘गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता’ किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और हिरासत में लेने के लिए औपचारिक मापदंडों की संतुष्टि को संदर्भित करती है, या यह उक्त मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की आवश्यकता के बारे में अन्य व्यक्तिगत आधारों और कारणों से संबंधित है?’’
पीठ ने कहा कि तीसरा सवाल यह है कि यदि दोनों सवालों के जवाब सकारात्मक हैं, तो ‘गिरफ्तारी की आवश्यकता और अनिवार्यता’ के सवाल की पड़ताल करते समय अदालत को किन मापदंडों और तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए?
पीठ ने रजिस्ट्री को वृहद पीठ के गठन के लिए मामले को प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि अदालतों ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि व्यक्तियों के जीवन और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव को रोकने के लिए गिरफ्तारी की शक्ति का सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘ऐसी शक्ति को आवश्यक उदाहरणों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए और इसका नियमित रूप से या लापरवाही से प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।’
उसने कहा कि ईडी को कोई भी अनुचित छूट और ढील कानून के शासन तथा व्यक्तियों के जीवन और स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों के लिए हानिकारक होगा।
उसने कहा, ‘‘किसी अधिकारी को गिरफ्तार व्यक्ति को फंसाने वाली सामग्री को चुनिंदा रूप से चुनने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्हें गिरफ्तार व्यक्ति को दोषमुक्त और निर्दोष करने वाली अन्य सामग्री पर भी समान रूप से विचार करना होगा। पीएमएलए की धारा 19(1) के तहत गिरफ्तार करने की शक्ति का प्रयोग अधिकारी की मर्जी और पसंद के अनुसार नहीं किया जा सकता है।’’
पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ईडी की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 31 जनवरी, 2023 तक कुल 5,906 ईसीआईआर दर्ज किए गए और 4,954 तलाशी वारंट जारी करके 531 में तलाशी ली गई।
उसने कहा, ‘‘पूर्व सांसदों, विधायकों और एमएलसी के खिलाफ दर्ज ईसीआईआर की कुल संख्या 176 है। गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या 513 है, जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से दर्ज की गई शिकायतों की संख्या 1,142 है। डेटा कई सवाल उठाता है, जिसमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या प्रवर्तन निदेशालय ने कोई नीति बनाई है कि उन्हें पीएमएलए के तहत किए गए अपराधों में शामिल व्यक्ति को कब गिरफ्तार करना चाहिए।’
फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि आरोपी को पीएमएलए की धारा 19(1) के तहत अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने का अधिकार है और अदालत अधिकृत अधिकारी के पास उपलब्ध सामग्री के आधार पर ‘विश्वास करने के कारणों’ की वैधता की पड़ताल कर सकती है।
पीठ ने कहा, ‘हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन और कानून के अनुसार गिरफ्तारी करने की शक्ति के प्रयोग से चिंतित हैं। गिरफ्तारी की कार्रवाई की पड़ताल, चाहे वह कानून के अनुसार हो, न्यायिक समीक्षा के अधीन है। इसका अर्थ यह है कि गिरफ्तार व्यक्ति को ‘विश्वास करने के कारण’ प्रदान किए जाने चाहिए ताकि वह गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सके।’
भाषा अमित सुरेश
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