नयी दिल्ली, 23 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को बुधवार को रद्द कर दिया, जिसमें अवमानना के एक मामले में उसके एकल न्यायाधीश के आदेश की समीक्षा की गई थी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने दिसंबर 2023 में एक व्यक्ति को उसके आदेश का ‘‘जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से’’ उल्लंघन करने का दोषी ठहराया था।
पीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने उन्हें अवमानना का आरोप समाप्त करने या ऐसा न करने पर हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है कि उन्हें न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दंडित क्यों न किया जाए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब रोस्टर में बदलाव के बाद जुलाई 2024 में मामला उच्च न्यायालय के दूसरे एकल न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, तो न्यायाधीश इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अदालत के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा नहीं की गई थी।
पीठ ने कहा, ‘‘यह न केवल अधिकार क्षेत्र से बाहर है, बल्कि न्याय के सुस्थापित सिद्धांतों के भी विपरीत है।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘जब उसी अदालत के एक न्यायाधीश ने प्रतिवादी को अवमानना का दोषी मानते हुए एक विशेष दृष्टिकोण अपनाया है, तो दूसरा न्यायाधीश इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता कि प्रतिवादी अवमानना का दोषी नहीं है।’’
शीर्ष अदालत ने पाया कि एकल न्यायाधीश द्वारा इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना उचित नहीं है कि क्या व्यक्ति ने अवमानना की है या नहीं।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारे विचार में, उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश का यह आदेश कि प्रतिवादी ने अवमानना नहीं की है, समन्वय पीठ द्वारा पांच दिसंबर, 2023 को पारित आदेश के खिलाफ अपील करने के समान है।’’
उच्चतम न्यायालय का यह फैसला उच्च न्यायालय के जुलाई 2024 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर आया, जिसमें अपीलकर्ताओं द्वारा दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगा और यह केवल एकल न्यायाधीश द्वारा जुलाई 2024 का आदेश पारित करते समय अपनाई गई प्रक्रिया के औचित्य पर विचार कर रहा है।
पीठ ने कहा कि दिसंबर 2023 में आदेश पारित होने के बाद एकल न्यायाधीश केवल इस बात पर विचार कर सकते थे कि क्या व्यक्ति ने अवमानना का आरोप हटा लिया है और यदि नहीं, तो उसे न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दंडित किया जाना चाहिए या नहीं।
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस मामले को देखते हुए, हम निर्णय और अंतिम आदेश को रद्द करने के पक्ष में हैं। हम तदनुसार आदेश देते हैं।’’
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देवेंद्र सुरेश
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