प्रौद्योगिकी मनुष्यों की निर्णय क्षमता को बढ़ाये, न कि उनकी जगह ले: प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत
प्रौद्योगिकी मनुष्यों की निर्णय क्षमता को बढ़ाये, न कि उनकी जगह ले: प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत
कटक, 14 दिसंबर (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत ने रविवार को कहा कि प्रौद्योगिकी को मानवीय निर्णय क्षमता को बढ़ाना चाहिए, न कि उसका स्थान लेना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश यहां ‘आम आदमी के लिए न्याय सुनिश्चित करना: मुकदमेबाजी की लागत और देरी को कम करने की रणनीतियां’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, “अदालतों में लंबित मामलों से न्यायिक संरचना के हर स्तर पर, अधीनस्थ न्यायालय से लेकर संवैधानिक अदालत तक, बाधा उत्पन्न होती है। और जब शीर्ष स्तर पर बाधा उत्पन्न होती है, तो नीचे दबाव और भी बढ़ जाता है।”
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने लंबित मामलों को कम करने के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
उन्होंने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि पर्याप्त अदालतों के बिना ईमानदार न्यायिक प्रणाली भी अवसंरचना संबंधी दबाव के कारण ध्वस्त हो जाएगी।”
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान प्रौद्योगिकी बहुत उपयोगी साबित हुई।
उन्होंने हालांकि कहा, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रौद्योगिकी के अपने नकारात्मक पहलू भी हैं।”
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “ ‘डीप फेक’ और ‘डिजिटल अरेस्ट’ के इस युग में अदालतें आशावादिता का सहारा नहीं ले सकतीं। यह सुधार गरीबों, बुजुर्गों या डिजिटल रूप से अपरिचित लोगों को बाहर रखता है, यह सुधार नहीं बल्कि प्रतिगमन है। इसलिए मैंने हमेशा यह माना है कि प्रौद्योगिकी को न्याय का सेवक बने रहना चाहिए, न कि उसका विकल्प। इसे मानवीय निर्णय क्षमता को बढ़ाना चाहिए, न कि उसका स्थान लेना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि एक ऐसी व्यवस्था जहां कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका सामंजस्य से काम नहीं कर सकती तब तक कानून का शासन संतुलन नहीं बना सकता, आगे बढ़ना तो दूर की बात है।
भाषा जितेंद्र प्रशांत
प्रशांत

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