न्यायालय ने प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता से जुड़े अपने पुराने फैसले को कानून की नजर में खराब बताया

न्यायालय ने प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता से जुड़े अपने पुराने फैसले को कानून की नजर में खराब बताया

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  • Publish Date - March 24, 2023 / 11:55 AM IST,
    Updated On - March 24, 2023 / 11:55 AM IST

नयी दिल्ली, 24 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को 2011 के अपने उस फैसले को कानून की दृष्टि से खराब बताया जो प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता से संबंधित है। उस फैसले में कहा गया था कि किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य मात्र होने से कोई व्यक्ति अपराधी नहीं हो जाता, जब तक कि वह हिंसा में लिप्त नहीं हो या लोगों को हिंसा के लिए न भड़काए।

न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने दो न्यायाधीशों की एक पीठ द्वारा भेजे गए एक संदर्भ में फैसला करते हुए कहा कि किसी प्रतिबंधित संगठन का मात्र सदस्य होने से भी व्यक्ति अपराधी होगा और गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा।

पीठ ने कहा कि प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता के संबंध में 2011 में दो न्यायाधीशों के फैसले के अनुसार उच्च न्यायालयों द्वारा पारित बाद के फैसले कानून के अनुसार गलत हैं और उन्हें खारिज किया जाता है।

प्रतिबंधित संगठनों की सदस्यता के संबंध में उच्चतम न्यायालय के 2011 के फैसले की समीक्षा के अनुरोध वाली केंद्र एवं असम सरकारों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि संसद द्वारा अधिनियमित एक प्रावधान के मद्देनजर केंद्र सरकार का पक्ष सुनना आवश्यक है।

पीठ ने कहा कि 2011 का फैसला अमेरिकी अदालत के फैसलों पर भरोसा करते हुए पारित किया गया था लेकिन भारत की मौजूदा स्थिति पर विचार किए बिना नहीं ऐसा नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा, ‘भारत में बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार निर्बाध नहीं है और यह उचित शर्त के अधीन है। हालांकि, अमेरिकी अदालत के फैसले मार्गदर्शन कर सकते हैं।’

भाषा अविनाश माधव

माधव