तिरुवनंतपुरम, 30 नवंबर (भाषा) केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति गोपीनाथ रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति को निरस्त किये जाने संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले से राज्य में बृहस्पतिवार को राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया।
एक ओर जहां राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर इस मामले में उन पर दबाव डालने का आरोप लगाया, वहीं कांग्रेस-नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) ने राज्य की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू के इस्तीफे की मांग की है।
सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने राज्यपाल खान पर राजनीतिक हमला बोला, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उनके बचाव में आई और रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति को मुख्यमंत्री और राज्य सरकार के भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद का उदाहरण बताया।
फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद खान ने उन घटनाओं को याद किया, जिसके कारण उन्हें कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में रवींद्रन को फिर से नियुक्त करना पड़ा और इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री विजयन को दोषी ठहराया।
खान ने यहां पत्रकारों से कहा कि राज्य की उच्च शिक्षा मंत्री बिंदू को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि मुख्यमंत्री ने रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति की मांग के लिए उनका (बिंदू का) इस्तेमाल किया।
शीर्ष अदालत ने रवींद्रन की दोबारा नियुक्ति को निरस्त करते हुए इस मामले में राज्य सरकार के ‘अनुचित हस्तक्षेप’ की आलोचना की।
पीठ ने रवींद्रन को कुलपति के पद पर दोबारा नियुक्त करने के कुलाधिपति एवं राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के आदेश को खामीयुक्त पाया और कहा कि उन्होंने कुलपति को फिर से नियुक्त करने के लिए संवैधानिक अधिकारों को ‘त्याग दिया या आत्मसमर्पण’ कर दिया।
पीठ ने कहा कि कानून के तहत कुलाधिपति को ही कुलपति की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति करने का अधिकार प्रदान किया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘कोई अन्य व्यक्ति यहां तक कि प्रति-कुलाधिपति या कोई भी वरिष्ठ अधिकारी वैधानिक प्राधिकार के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।’’
फैसले के बाद, खान ने दावा किया कि मुख्यमंत्री का निजी कानूनी सलाहकार होने का दावा करने वाला एक व्यक्ति विजयन के ओएसडी (विशेष कार्य अधिकारी) के साथ उनसे मिलने आया था और उनसे कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति की सामान्य प्रक्रिया न अपनाने का आग्रह किया था।
उन्होंने दावा किया कि बाद में वे दोनों उच्च शिक्षा मंत्री बिंदू के एक पत्र तथा नियमित नियुक्ति प्रक्रिया को ‘रोकने’ एवं रवींद्रन को कुलपति के रूप में फिर से नियुक्त करने के लिए राज्य के महाधिवक्ता की कानूनी राय लेकर आए थे।
खान ने कहा, ‘‘मैंने उन्हें बताया था कि वे जो प्रस्ताव दे रहे थे वह अवैध है। चूंकि वे महाधिवक्ता की कानूनी राय के साथ आए थे, इसलिए मैं सहमत हो गया, लेकिन मैंने उन्हें बताया कि वे मुझसे जो करने के लिए कह रहे हैं, वह अवैध, अनियमित और कानून के अनुरूप नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद, मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने मुझसे जो कराया है, वह गैरकानूनी है और वह (मुख्यमंत्री) अन्य मामलों में भी मुझ पर दबाव बनाते रहेंगे।’’
पत्रकारों द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या वह मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगेंगे, खान ने कहा कि इस ‘नैतिक प्रश्न’ का उत्तर विजयन और सरकार को देना है।
खान ने कहा, ‘‘मैं इसे उन पर छोड़ता हूं। मैं कोई नहीं हूं। मैं किसी के इस्तीफे की मांग नहीं करने जा रहा हूं। कर्म का परिणाम मिलता ही हैं। ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे आप कर्मों के परिणामों से छुटकारा पा सकें।’’
इस बीच, सत्तारूढ़ माकपा ने उनके समक्ष लंबित विधेयकों के बारे में उनकी हालिया टिप्पणियों का हवाला देते हुए राज्यपाल के इस्तीफे की मांग की।
माकपा के राज्य सचिव एम. वी. गोविंदन ने कहा, ‘‘अगर उनमें थोड़ी भी शालीनता है, तो अब समय आ गया है कि वह राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दें।’’
गोविंदन ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश को स्वीकार करना होगा और इसका अध्ययन करने के बाद आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।
केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने राज्यपाल का बचाव करते हुए आरोप लगाया कि रवींद्रन की नियुक्ति मुख्यमंत्री के भाई-भतीजावाद का उदाहरण है और यह भ्रष्टाचार का द्योतक है।
बिंदू ने कहा कि वह न्यायालय के फैसले को पढ़ने के बाद इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देंगी।
दूसरी ओर, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने तर्क दिया कि कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति की पुनर्नियुक्ति के उसके दावे शीर्ष अदालत के फैसले से सही साबित हुए हैं।
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) वी डी सतीशन ने भी बिंदू के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि उन्हें कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘‘मंत्री को आज ही इस्तीफा दे देना चाहिए।’’
मुरलीधरन ने सतीशन द्वारा मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगने के बजाय बिंदु का इस्तीफा मांगने पर आश्चर्य व्यक्त किया।
उन्होंने सवाल किया कि क्या विपक्ष के नेता मुख्यमंत्री से डरे हुए हैं या क्या कांग्रेस ने विजयन का बचाव करने और यह सुनिश्चित करने का फैसला किया है कि वह (विजयन) सत्ता में बने रहें।
इस बीच, रवींद्रन ने कहा कि उन्हें अपनी पुनर्नियुक्ति के संबंध में किसी भी अवैधता की जानकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि देश के कई अन्य विश्वविद्यालयों में भी कई कुलपतियों को फिर से नियुक्त किया गया है।
उन्होंने कहा कि अब वह नियमित नौकरी के लिए शुक्रवार को दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय लौट जाएंगे, जहां वह इतिहास विभाग में प्रोफेसर रहे हैं।
रवींद्रन ने कहा कि उन्होंने कन्नूर विश्वविद्यालय के लिए बहुत कुछ किया और कुछ चीजें करना बाकी है।
केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पिछले साल 23 फरवरी को विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति को बरकरार रखने वाले एकल-न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील को यह कहकर खारिज कर दिया था कि ऐसा कानून के अनुसार किया गया था और यह ‘‘पद पर कब्जा करने के इरादे से’’ नहीं है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा 23 फरवरी, 2022 को दिए गए निर्णय और पारित आदेश को रद्द किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी संख्या 4 (रवींद्रन) को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में फिर से नियुक्त करने से संबंधित 23 नवंबर, 2021 की अधिसूचना को रद्द किया जाता है।’’
भाषा सुरेश
देवेंद्र
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