Mosque should be removed within 3 months from the Allahabad High Court

उच्च न्यायालय परिसर से तीन महीने के अंदर हटाई जाए मस्जिद, सुप्रीम कोर्ट ने दिए निर्देश

Allahabad High Court Mosque : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अधिकारियों को तीन महीने के भीतर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के परिसर से एक मस्जिद

Edited By :   Modified Date:  March 13, 2023 / 04:43 PM IST, Published Date : March 13, 2023/3:45 pm IST

नई दिल्ली : Allahabad High Court Mosque : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अधिकारियों को तीन महीने के भीतर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के परिसर से एक मस्जिद को हटाने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने मस्जिद हटाए जाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं को बताया गया कि संरचना एक खत्म हो चुके पट्टे (लीज) पर ली गई संपत्ति पर है और वे अधिकार के रूप में इसे कायम रखने का दावा नहीं कर सकते। याचिकाकर्ताओं, वक्फ मस्जिद उच्च न्यायालय और उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नवंबर 2017 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उन्हें मस्जिद को परिसर से बाहर करने के लिए तीन महीने का समय दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

Allahabad High Court Mosque :  सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उनकी याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने हालांकि, याचिकाकर्ताओं को मस्जिद के लिए पास में किसी जमीन के आवंटन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को एक प्रतिवेदन करने की अनुमति दी। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को बताया कि भूमि एक पट्टे की संपत्ति थी जिसे समाप्त कर दिया गया था। वे अधिकार के तौर पर इसे कायम रखने का दावा नहीं कर सकते।

पीठ ने कहा, “हम याचिकाकर्ताओं द्वारा विचाराधीन निर्माण को गिराने के लिए तीन महीने का समय देते हैं और यदि आज से तीन महीने की अवधि के अंदर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो उच्च न्यायालय सहित अधिकारियों के लिए उन्हें हटाने या गिराने का विकल्प खुला रहेगा।” मस्जिद की प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से है और इसे यूं ही हटाने के लिए नहीं कहा जा सकता।

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कपिल सिब्बल ने कही ये बात

Allahabad High Court Mosque :  उन्होंने कहा, “2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया। नई सरकार बनने के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर की जाती है। जब तक वे हमें जमीन उपलब्ध कराते हैं, तब तक हमें वैकल्पिक स्थान पर जाने में कोई समस्या नहीं है।” उच्च न्यायालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है।

उन्होंने कहा, “दो बार नवीनीकरण के आवेदन आए और कोई सुगबुगाहट तक नहीं हुई कि मस्जिद का निर्माण किया गया था और इसका उपयोग जनता के लिए किया गया था। उन्होंने नवीनीकरण की मांग करते हुए कहा कि यह आवासीय उद्देश्यों के लिए आवश्यक है। केवल यह तथ्य कि वे नमाज पढ़ रहे हैं, इसे मस्जिद नहीं बना देगा। उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के बरामदे में सुविधा के लिए अगर नमाज की अनुमति दी जाए तो यह मस्जिद नहीं बन जाएगा।”

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