Sardar Vallabhbhai Patel Death Anniversary | Source : Wikipedia
Sardar Vallabhbhai Patel Death Anniversary : आज का दिन एक ऐतिहासिक दिन है। आज के दिन ही स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि के रूप में दर्ज है। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में एक किसान परिवार में पैदा हुए पटेल को उनकी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए हमेशा याद किया जाएगा। देश के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने आज़ादी के बाद देश के नक्शे को मौजूदा स्वरूप देने में अमूल्य योगदान दिया। भारत रत्न से सम्मानित सरदार पटेल ने 15 दिसंबर 1950 को अंतिम सांस ली। देश की एकता में उनके योगदान के सम्मान में गुजरात में नर्मदा नदी के करीब उनकी विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है।
स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को एकजुट करने के लिए कई प्रयास किए और सराहनीय कदम उठाएं। उनके योगदान का परिणाम ये रहा कि देश जो आजादी से पहले तक छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था और राजा-नवाब आदि के नेतृत्व में था, वह एक लोकतांत्रिक सरकार के अंतर्गत आ गया।
सरदार पटेल ने 562 देशी रियासतों को भारतीय संघ में विलय करवा कर भारत को एकता के सूत्र में बांधने का महान कार्य किया। इसलिए उन्हें “भारत के लौह पुरुष” के नाम से जाना जाता है। वह अपनी दृढ़ता और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थे। वे निर्णय लेने में अडिग थे और किसी भी बाधा से घबराते नहीं थे। उनकी यही दृढ़ता देश के एकीकरण में मददगार साबित हुई।
स्वतंत्रता संग्राम की आग को तेजी देते हुए सरदार पटेल ने 1928 में गुजरात के बारदोली क्षेत्र में किसानों के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सफल आंदोलन किया। इसके बाद उन्हें “सरदार” की उपाधि दी गई। और बारदोली सत्याग्रह के दौरान उनके नेतृत्व की खूब प्रशंसा हुई।
स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देसी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी।
वहाँ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भी भारत में मिल गया। फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा। हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे। अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी। 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री मोदीजी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का अखण्ड भारत बनाने का स्वप्न साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे। पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि 15 दिसंबर 1950 को है। यह दिन भारतीय एकता और उनके देश के एकीकरण में किए गए अद्वितीय योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।
सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ का नाम उनकी दृढ़ता, अनुशासन और भारत के विभाजन के बाद 562 रियासतों को एकजुट करने में उनके योगदान के कारण दिया गया।
सरदार पटेल और वीपी मेनन ने देसी रियासतों को भारत में मिलाने के लिए कूटनीतिक प्रयास किए। अधिकांश रियासतों ने स्वेच्छा से विलय स्वीकार किया, जबकि कुछ ने सेना की कार्रवाई के बाद भारतीय संघ में शामिल होने का फैसला किया।
सरदार पटेल का मानना था कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। 2019 में मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त कर कश्मीर को विशेष दर्जा देने की व्यवस्था को खत्म कर दिया, जिससे सरदार पटेल के अखंड भारत के सपने को साकार किया गया।
सरदार पटेल ने न केवल भारतीय एकता के लिए योगदान दिया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री रहे और देश को राजनीतिक और सामाजिक एकता की दिशा में मार्गदर्शन किया।