नयी दिल्ली, 28 मार्च (भाषा) भारत में गंदे पानी को साफ करके सिंचाई में उसका इस्तेमाल करने से 2021 में ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 13 लाख टन तक कम किया जा सकता था। एक थिंक टैंक के ताजा अध्ययन से यह पता चला है।
ग्रीनहाउस गैस जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ने पर वे सूर्य की गर्मी को रोक लेती हैं। इससे वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन होता है।
‘काउन्सिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू)’ के अध्ययन में देश में गंदे पानी का शोधन कर उसे पुन: इस्तेमाल में लाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
इसमें राष्ट्रीय स्तर पर सिंचाई के लिए गंदे पानी (घरेलू सीवर के पानी) का शोधन करके उसे पुन: इस्तेमाल में लाने के लिए आर्थिक और बाजार की क्षमता का आकलन किया गया है और पानी के पुन: इस्तेमाल पर मौजूदा तंत्र को मजबूत करने की सिफारिशें की गयी हैं।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के आकलन का इस्तेमाल कर किए गए विश्लेषण के अनुसार, भारत में 15 प्रमुख नदी बेसिन में से 11 साल 2025 तक पानी की कमी का सामना करेंगे।
सीईईडब्ल्यू ने अपने नए अध्ययन में कहा, ‘‘अत: मांग और आपूर्ति के अंतर से निपटने के लिए जल के वैकल्पिक स्रोत की खोज करना आवश्यक है।’’
अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में गंदे पानी को साफ करके सिंचाई में उसका इस्तेमाल करने से 2021 में ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन 13 लाख टन तक कम किया जा सकता था।
इसमें कहा गया है कि 2021 में सिंचाई क्षेत्र के लिए भारत में गंदे पानी का शोधन करने के बाद जितना जल उपलब्ध था, उससे नयी दिल्ली जैसे नौ गुना क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती थी।
अध्ययन के अनुसार, ‘‘इतने क्षेत्र में पैदा होने वाली फसल से करीब 966 अरब रुपये का राजस्व अर्जित किया जा सकता था।’’
भारत में अभी हर दिन शहरी केंद्र से निकलने वाले गंदे पानी के केवल 28 प्रतिशत पानी का ही शोधन किया जाता है।
भाषा
गोला दिलीप
दिलीप
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