अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव : आर्थिक समीक्षा
अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव : आर्थिक समीक्षा
नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा में एक अध्ययन के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा गया है कि जो लोग बहुत कम अति-प्रसंस्कृत या ‘जंक फूड’ खाते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य उन लोगों की तुलना में बेहतर होता है जो नियमित रूप से ऐसा खाना खाते हैं।
आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि जो लोग बहुत कम व्यायाम करते हैं, अपना खाली समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं या अपने परिवार के साथ नहीं होते, उनका मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है।
आर्थिक समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि अगर भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है, तो बचपन या युवावस्था के दौरान अक्सर अपनाई जाने वाली जीवनशैली पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए।
आर्थिक सर्वेक्षण ने ‘‘सेपियन लैब्स सेंटर फॉर ह्यूमन ब्रेन एंड माइंड’ द्वारा किए गए अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि प्रतिकूल कार्य संस्कृति और काम करने में बिताए जाने वाले अत्यधिक घंटे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और अंततः आर्थिक विकास की गति को रोक सकते हैं।
सर्वेक्षण में पाया गया कि डेस्क पर लंबे समय तक बैठना मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और जो व्यक्ति प्रतिदिन 12 या उससे अधिक घंटे डेस्क पर बिताते हैं, उनके मानसिक स्वास्थ्य का स्तर कम होता है।
अध्ययन का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया कि बेहतर जीवनशैली के विकल्प, कार्यस्थल संस्कृतियां और पारिवारिक संबंधों की भी अहम भूमिका होती है।
इसमें कहा गया है कि बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि अक्सर इंटरनेट और विशेष रूप से सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से जुड़ी होती है।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सरकारी स्तर पर इस संबंध में विचार किया जा रहा है, वहीं दोस्तों से मिलने और घर के बाहर खेलने जैसे स्वस्थ उपायों को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल और परिवार स्तर पर हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।
भाषा अविनाश वैभव
वैभव

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