मथुरा के शाही ईदगाह विवाद में वक्फ कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे: हिंदू पक्ष |

मथुरा के शाही ईदगाह विवाद में वक्फ कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे: हिंदू पक्ष

मथुरा के शाही ईदगाह विवाद में वक्फ कानून के प्रावधान लागू नहीं होंगे: हिंदू पक्ष

:   Modified Date:  April 22, 2024 / 06:05 PM IST, Published Date : April 22, 2024/6:05 pm IST

प्रयागराज, 22 अप्रैल (भाषा) मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सोमवार को हिंदू पक्ष ने दलील दी कि वक्फ कानून के प्रावधान यहां लागू नहीं होंगे क्योंकि विवादित संपत्ति, वक्फ की संपत्ति नहीं है।

इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन द्वारा की जा रही है। उच्च न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 30 अप्रैल तय की।

हिंदू पक्ष की ओर से यह भी कहा गया कि यह वाद पोषणीय है और वाद की गैर पोषणीयता के संबंध में आवेदन पर साक्ष्यों को देखने के बाद ही फैसला किया जा सकता है।

हिंदू पक्ष ने यह दलील भी दी कि वह संपत्ति (शाही ईदगाह मस्जिद) एक मंदिर था जिसे बलपूर्वक कब्जे में लेने के बाद वहां नमाज अदा करना शुरू किया गया, लेकिन इस तरह से भूमि का चरित्र नहीं बदला जा सकता।

उसने कहा कि चूंकि वह संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है, इसलिए इस अदालत को इस मामले में सुनवाई करने का अधिकार है।

इससे पूर्व, हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा था कि यह वाद पोषणीय है और पूजा स्थल अधिनियम एवं वक्फ अधिनियम के संबंध में अर्जी, पक्षों के साक्ष्यों से ही निर्धारित हो सकती है।

जैन ने कहा था कि महज यह कहने से कि वहां एक मस्जिद है, वक्फ अधिनियम लागू नहीं होगा। उन्होंने कहा था कि संपत्ति का धार्मिक चरित्र महज ढांचे को ध्वस्त कर बदला नहीं जा सकता, यह देखना जरूरी है कि क्या कथित वक्फ ‘डीड’ वैध है या नहीं। उन्होंने कहा कि ये सभी चीजें मुकदमे में देखी जानी चाहिए और यह कि मौजूदा वाद पोषणीय है।

समय सीमा की बाध्यता के सवाल पर उन्होंने कहा था कि मौजूदा वाद समय सीमा के भीतर दाखिल किया गया है। उनका कहना था कि 1968 का कथित समझौता वादी के संज्ञान में 2020 में आया और संज्ञान में आने के तीन साल के भीतर यह वाद दायर किया गया है।

उन्होंने कहा कि इसके साथ ही यदि सेवायत या ट्रस्ट लापरवाह है और अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहा है तो देवता अपने करीबी मित्र के जरिए आगे आ सकते हैं और वाद दायर कर सकते हैं, ऐसे में समय सीमा का सवाल ही नहीं उठता।

इससे पूर्व, मुस्लिम पक्ष की ओर से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए अधिवक्ता तस्लीमा अजीज अहमदी ने कहा था कि मौजूदा वाद समय सीमा से बाधित है।

अहमदी ने दलील दी थी कि यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। उनका कहना था कि वाद में की गई प्रार्थना दर्शाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।

मुस्लिम पक्ष की वकील ने दलील भी दी थी, “इस प्रकार से वक्फ की संपत्ति पर एक सवाल/विवाद खड़ा किया गया है जबकि यहां वक्फ कानून के प्रावधान लागू होंगे। इस तरह से इस मामले में सुनवाई वक्फ अधिकरण के न्याय क्षेत्र में आता है न कि दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र में।”

भाषा राजेंद्र

राजकुमार

राजकुमार

 

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