वक्फ विवाद: संसद से पारित कानून संविधान सम्मत, इसलिए रोक न लगाएं- केंद्र ने न्यायालय से कहा |

वक्फ विवाद: संसद से पारित कानून संविधान सम्मत, इसलिए रोक न लगाएं- केंद्र ने न्यायालय से कहा

वक्फ विवाद: संसद से पारित कानून संविधान सम्मत, इसलिए रोक न लगाएं- केंद्र ने न्यायालय से कहा

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Modified Date: April 25, 2025 / 07:18 PM IST
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Published Date: April 25, 2025 7:18 pm IST

नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (भाषा) केंद्र सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में संशोधित वक्फ अधिनियम का बचाव किया और कहा कि इस कानून पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि “संवैधानिकता की धारणा’’ इसके पक्ष में है।

केंद्र ने 1,332 पृष्ठ के प्रारंभिक हलफनामे में शीर्ष अदालत से वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह किया और कहा कि कुछ प्रावधानों के बारे में झूठा विमर्श गढ़ा गया है।

केंद्र सरकार ने कहा, ‘न्यायालय याचिकाओं की सुनवाई के दौरान विभिन्न पहलुओं पर विचार कर सकता है, लेकिन किसी आदेश के प्रतिकूल परिणामों के बारे में जाने बिना पूरी तरह से रोक (या आंशिक रोक) लगाना अनुचित होगा।’

केंद्र ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ से कानून के प्रावधानों पर रोक न लगाने का आग्रह किया। यह पीठ अंतरिम निर्देश पारित करने संबंधी याचिकाओं पर पांच मई को सुनवाई करेगी।

सरकार ने दावा किया कि 2013 से अब तक वक्फ संपत्तियों में 116 प्रतिशत की ‘चौंकाने वाली वृद्धि’ हुई है।

केंद्र ने आठ अप्रैल तक ‘वक्फ बाय यूजर’ संपत्तियों के आवश्यक पंजीकरण को लेकर (याचिकाकर्ताओं की ओर से) दी गयी दलीलों का भी विरोध किया और कहा कि यदि इस प्रावधान के संबंध में अंतरिम आदेश पारित किया गया तो यह ‘न्यायिक आदेश के जरिये विधायी व्यवस्था कायम करने’ के समान होगा।

हलफनामे में इस बात का खंडन किया गया कि कानून में बदलाव के कारण केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में मुसलमान अल्पसंख्यक हो सकते हैं।

केंद्र सरकार ने कहा कि यह कानून वैध है और विधायी शक्ति का जायज तरीके से इस्तेमाल करके बनाया गया है।

केंद्र ने कहा कि कानून से वक्फ संस्था मजबूत होगी और संवैधानिक सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित होगा, साथ ही समकालीन युग में वक्फ का समग्र कार्यान्वयन सुगम बनेगा।

हलफनामे में कहा गया है कि कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी।

हलफनामे के अनुसार संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है।

हलफनामे में कहा गया है, ‘कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से पहले संवैधानिकता की धारणा के स्थापित संवैधानिक सिद्धांतों, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में अंतर्निहित मूल्यों आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए। ऐसा न होने पर किसी भी अंतरिम आदेश को अस्वीकार करना उचित होगा।”

निजी और सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण करने के लिए वक्फ प्रावधानों के ‘कथित दुरुपयोग’ का उल्लेख करते हुए हलफनामे में कहा गया है कि मुगल काल से पहले, स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद कुल 18,29,163.896 एकड़ भूमि वक्फ की थी।

हलफनामे में कहा गया है, “चौंकाने वाली बात यह है कि 2013 के बाद वक्फ भूमि में 20,92,072.536 एकड़ की वृद्धि हुई है।”

‘वक्फ बाय यूजर’ से संबंधित संशोधन के बारे में केंद्र सरकार ने कहा कि अब इस तर्क का कोई अर्थ नहीं रह गया है कि कोई संपत्ति “वास्तविक वक्फ” है, लेकिन उसका पंजीकरण नहीं हो पाया है।

वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने से मुसलमानों के अल्पसंख्यक होने से संबंधित दावे का खंडन करते हुए केंद्र ने कहा कि कुल 22 में से केवल चार गैर-मुस्लिम ही केंद्रीय वक्फ परिषद का हिस्सा हो सकते हैं।

हलफनामे में कहा गया है, ‘प्रत्येक राज्य के वक्फ बोर्ड में 11 सदस्यों में से अधिकतम तीन सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं, वह भी तब जब पदेन सदस्य भी गैर-मुस्लिम हो।

केंद्र ने कहा कि विधायिका के बनाए हुए और संवैधानिक माने गए किसी कानून को बदलना ‘अनुचित’ होगा।

हलफनामे में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ताओं की मांग पर पारित किया गया कोई आदेश संसद द्वारा अंतरिम रूप से पारित संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने के समान होगा। यह संविधान के तहत परिकल्पित न्यायिक समीक्षा के दायरे में अस्वीकार्य है।’

केंद्र ने दलील दी कि प्रमुख कानूनी मुद्दों को हटाकर, अधिनियम ने वक्फ संपत्ति को कानूनी मानकों और न्यायिक निगरानी के अधीन करके उसकी पहचान, वर्गीकरण और विनियमन पर मुहर लगाई है।

हलफनामे में कहा गया है, ‘इन संशोधनों के जरिये अधिनियम में न्यायिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निष्पक्षता लाई गई है।’

सरकार ने इस तर्क को भी नकार दिया कि इस कानून से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। हलफनामे में कहा गया है कि इसमें मुस्लिम समुदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का सम्मान किया गया है, क्योंकि इसमें धार्मिक और पूजा मामलों को अछूता छोड़ दिया गया है, जबकि संविधान द्वारा अधिकृत वक्फ प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष, प्रशासनिक पहलुओं को वैध रूप से विनियमित किया गया है।

हलफनामे में कहा गया है, ‘संसद ने अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत कार्य करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि वक्फ जैसी धार्मिक संस्थाओं का प्रबंधन इस प्रकार से किया जाए कि उनमें आस्था रखने वालों का और समाज का विश्वास कायम रहे तथा धार्मिक स्वायत्तता का हनन न हो।’

केंद्र सरकार ने 17 अप्रैल को, शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि वह पांच मई तक “वक्फ बाय यूजर” संपत्ति समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं करेगी और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्ड में कोई नियुक्ति करेगी।

भाषा जोहेब सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)