यश गांधी : हर मुश्किल घड़ी में आगे बढ़ने का हौसला हमेशा परिवार से मिला
यश गांधी : हर मुश्किल घड़ी में आगे बढ़ने का हौसला हमेशा परिवार से मिला
नयी दिल्ली, चार अक्टूबर (भाषा) वह थोड़ा लड़खड़ाकर चलता है, लेकिन जिंदगी की कठिन राह पर पूरे विश्वास से कदम बढ़ा रहा है, उसे बोलने में थोड़ी परेशानी होती है, लेकिन वह अपने विचारों और भावनाओं को पूरे आत्मविश्वास से व्यक्त करता है, उसे गणित को समझने, कुछ पढ़कर सुनाने और लिखने में भी दिक्कत होती है, लेकिन उसने कैट 2019 की परीक्षा 92.5 फीसद नंबरों के साथ पास की है और आज देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में शुमार आईआईएम लखनऊ से पढ़ाई कर रहा है। हम बात कर रहे हैं यश गांधी की, जिन्होंने अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास से अपनी हर मुश्किल को आसान कर लिया।
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मुंबई के रहने वाले 21 वर्ष के यश गांधी के पिता अवधेश गांधी ने बताया कि यश को सेरेब्रल पाल्सी, डिस्लेक्सिया और डिसर्थिया जैसी बीमारियों हैं, जिसमें व्यक्ति की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और इससे बोलने, चलने, लिखने, सीखने जैसी सामान्य शारीरिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। उन्होंने बताया कि जब यश ने स्कूल जाना शुरू किया तो उसे चीजों को सीखने में दिक्कत पेश आई और वह अन्य बच्चों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता था। उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के दौरान सामान्य बच्चों से कहीं ज्यादा मेहनत करनी पड़ी।
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इस संबंध में यश का कहना है कि वह खुद को किसी से कम नहीं मानते क्योंकि अगर इस तरह की बात उनके दिमाग में आती तो वह यहां तक नहीं पहुंच पाते। स्कूल के दिनों में कुछ सहपाठी और हमउम्र बच्चे कई बार परेशान तो करते थे, लेकिन वह उनकी बातों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया करते थे। इन बातों को उन्होंने कभी उस नजर से देखा ही नहीं। वह कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही पढ़ने का शौक था और उन्होंने किसी को भी अपने रास्ते की दीवार नहीं बनने दिया। अपने शिक्षकों की सराहना करते हुए यश कहते हैं कि उन्होंने कभी उन्हें किसी से कम नहीं माना और स्कूल की तमाम गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
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यश के आत्मविश्वास की बात करें तो वह लड़खड़ाकर चलने के बावजूद लोकल ट्रेन से सफर करना पसंद करते हैं, उन्हें भले लिखने में परेशानी होती हो, लेकिन वह अपने महत्वपूर्ण नोट्स खुद ही तैयार करते हैं। परीक्षा की तैयारी के दौरान भी उन्होंने महत्वपूर्ण प्वाइंट्स खुद ही लिखे।
यश कहते हैं कि आत्मविश्वास घर से ही आता है और उनके माता-पिता उनके सबसे बड़े ‘सपोर्ट सिस्टम’ हैं। वह कहते हैं, ‘‘मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और हमेशा मुझसे कहा कि तुम वह हर काम कर सकते हो, जो दूसरे कर सकते हैं। उन्होंने कभी मुझे किसी से कम नहीं समझा और न ही मुझे समझने दिया।’’
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इस संबंध में यश की मां जिग्नाशा ने बताया कि एक मौके पर यश यह मानने लगा था कि वह यह मुश्किल परीक्षा पास नहीं कर पाएगा और उन्होंने तैयारी करना भी छोड़ दिया था, लेकिन हमने उसमें उसका खोया आत्मविश्ववास फिर से पैदा किया और वह दोगुने उत्साह से अपने रास्ते पर निकल पड़ा।
कुछ लोगों के साथ कुदरत कुछ बेरहम हो जाती है और उन्हें दूसरों से कुछ कम देती है, लेकिन फिर उनमें मेहनत, लगन और इच्छाशक्ति का ऐसा जज्बा भर देती है कि वह खुद में एक मिसाल बन जाते हैं। यश ने अपनी कमजोरी को कभी अपने पांव की बेड़ी नहीं बनने दिया और अपनी मेहनत से उस जगह जा पहुंचे, जहां से वह अपने तमाम सपनों को पूरा कर सकेंगे।

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