बिलासपुर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को नियमित करने का दिया आदेश |

बिलासपुर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को नियमित करने का दिया आदेश

High court's order to regularize daily wage employees: यदि याचिकाकर्ता का मामला भी उन दैनिक वेतन भोगियों के समान पाया जाता है, जिनकी सेवाएं नियमित की गई थीं तो उसकी सेवाओं को भी उसी तिथि से नियमित किया जाए।

Edited By :  
Modified Date: April 28, 2025 / 10:04 PM IST
,
Published Date: April 28, 2025 10:04 pm IST
HIGHLIGHTS
  • अपीलकर्ता ने 10 वर्ष तक सेवा की, नियमितीकरण का लाभ
  • दो दशक से अधिक समय से दैनिक वेतनभोगी
  • जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई

बिलासपुर: High court’s order to regularize daily wage employees, हाईकोर्ट ने राज्य के आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में दो दशकों से दैनिक वेतन पर कार्यरत कर्मचारी को राहत देते हुए उसकी सेवाओं को नियमित करने का आदेश दिया। इस संदर्भ में दायर याचिका स्वीकार कर कोर्ट ने कर्मचारी के मामले और अभिलेखों का उचित मूल्यांकन करने का आदेश दिया है।

जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद कहा कि- मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए याचिका स्वीकार की जाती है। प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे अन्य समान स्थिति वाले कर्मचारियों के अभिलेखों का निरीक्षण करें, जब उनकी सेवाओं को नियमित किया गया। यदि याचिकाकर्ता का मामला भी उन दैनिक वेतन भोगियों के समान पाया जाता है, जिनकी सेवाएं नियमित की गई थीं तो उसकी सेवाओं को भी उसी तिथि से नियमित किया जाए।

read more: आदित्य बिड़ला सनलाइफ एएमसी का शुद्ध लाभ मार्च तिमाही में नौ प्रतिशत बढ़कर 228 करोड़ रुपये

दो दशक से अधिक समय से दैनिक वेतनभोगी

याचिकाकर्ता जगन्नाथ दो दशक से अधिक समय से दैनिक वेतनभोगी के रूप में औषधालय सेवक के पद पर काम कर रहा है। उसके पास स्थायी पद के लिए सभी आवश्यक योग्यताएं हैं। उसने औषधालय सेवक के पद पर नियमित नियुक्ति के लिए विचार करने को प्रतिवादी अधिकारियों को अभ्यावेदन भी प्रस्तुत किया। याचिकाकर्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने 5 मार्च 2008 के सर्कुलर के आधार पर समान स्थिति वाले दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित किया।

इस प्रकार याचिकाकर्ता को सेवा के नियमितीकरण से वंचित करना न केवल अवैध, मनमाना और भेदभावपूर्ण प्रकृति का था बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी था। सिंगल बेंच ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लेख किया।

read more:  चौहान ने कृषि विज्ञान केंद्रों से किसानों के लिए प्रयासों में तेजी लाने का आग्रह किया

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि नियमितीकरण नियमों की व्यावहारिक रूप से व्याख्या की जानी चाहिए। यदि अपीलकर्ता ने 10 वर्ष तक सेवा की है, तो उसे सेवा नियमितीकरण का लाभ दिया जाना चाहिए, जब तक कि उनके नियमितीकरण पर कुछ वैध आपत्तियां जैसे कदाचार आदि मौजूद न हों। इस अनुसार हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकृत कर शासन को समान स्थिति वाले उन कर्मचारियों के रिकॉर्ड का आकलन करने के बाद याचिकाकर्ता की सेवाओं को नियमित करने का निर्देश दिया, जिनकी सेवाओं को नियमित किया गया था।