PM Narendra Modi ने किया Kashi Vishwanath Corridor का शुभारंभ, Varanasi की पहचान गलियां टूटीं | The Sanjay Show
आज हम बात करने वाले हैं भारत के गलियों वाले गौरव और उसके चकनाचूर होने को लेकर। जी हां, हम बात कर रहे हैं बनारस के काशी विश्वनाथ कॉरीडोर की
आज हम बात करने वाले हैं भारत के गलियों वाले गौरव और उसके चकनाचूर होने को लेकर….आज वह दशकों पुराना गौरव चकनाचूर हुआ है तो वहीं देश का सदियों पुराना आत्मसम्मान फिर से नजर आया है….
जी हां, हम बात कर रहे हैं बनारस के काशी विश्वनाथ कॉरीडोर और उसके लोकार्पण की …
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज इस कॉरीडोर को जनता को समर्पित कर दिया है…. काशी विश्वनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है….आज इस मंदिर को दिव्य और भव्य रूप दे दिया गया है…देश में आज इसी की चर्चा होती रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट इसे बताया जा रहा है…कुछ महीने बाद यूपी में चुनाव भी है तो इस कॉरीडोर के लोकार्पण से विरोधी दलों की धड़कनें जरूर बढ़ गई होंगी…..
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हम इस पर आगे बात करेंगे पर एक छोटी सी चर्चा काशी यानी बनारस यानी वाराणसी नगरी पर कर लेते हैं….
अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं-
“बनारस इतिहास से भी पुराना है,… परंपराओं से भी पुराना है,… किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें,…यानी इतिहास,परंपरा और किवदंती को…. तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है बनारस…”
यही बनारस यानी काशी आज पूरी दुनियां में आकर्षण का केंद्र बनी रही…इसके भव्य कारीडोर की चर्चा हर तरफ हो रही है….
काशी भारतीयों के लिए पर्यटन स्थल नहीं है… बल्कि वह धरती और स्वर्ग के बीच पर्यटन से छुटकारा दिलाकर… आवागमन से मुक्ति दिलाने का माध्यम है …. हां…. पूरी दुनियां के लिए यह एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है….दुनियां का अकेला ऐसा शहर जो हजारों सालों से अस्तित्व में है…. लोक मान्यताओं के अनुसार, काशी को भगवान शिव ने लगभग 5 हजार साल पहले बसाया था…हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में काशी एक है…अति प्राचीन ग्रन्थों में इस नगर का उल्लेख आता है…हालांकि जो इतिहासकार अंग्रेजों के इतिहास से पहले कोई इतिहास था ऐसा मानते ही नहीं… उनके मतानुसार वाराणसी शहर लगभग 3 हजार साल पुराना है….पर यह लगातार अस्तित्व में है यह चमत्कार है…दुनियां में कहीं भी कोई शहर इतने सालों से मौजूद नहीं है…
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कुछ सदियों पहले इस काशी के विश्वनाथ मंदिर को विदेशी लुटेरों ने न सिर्फ लूटा बल्कि तोड़ा भी …काशी मंदिर को तोड़ने और उसे बनवाने की घटनाएं 11 वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही. अभी जो मंदिर है उसका निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने 1780 में करवाया था. बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में एक हजार किलोग्राम सोना दान दिया था….इसी मंदिर को गंगा तट से जोड़कर और यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए नया कॉरीडोर बनवाया गया है…
स्वतंत्र भारत में काशी के उद्धार की बातें तो हुईं पर कोई खास काम इस दिशा में नहीं हुआ….और दशकों तक मंदिर के आसपास निर्माण होते रहे…..वैध- अवैध कब्जों को इससे दूर रखने के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ….सरकारी शह पर इतना निर्माण हुआ कि विश्वप्रसिद्ध और हिन्दुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण काशी विश्वनाथ मंदिर गलियों में समा गया….इधर हमारे देश के महानायकों का विजन तो देखिए… उन्होंने भारत की गरिमा को गलियों से बाहर निकालने की जगह बनारस को गलियों के लिए फेमस कर दिया…बनारस की बात होने पर पूरे देश में कहा जाता था बनारस की गलियां देखिए….बनारस की गलियों पर कहावतें गढ़ी गई…और महान लेखकों ने कहानियां भी लिखीं…. आजाद भारत के वामपंथी विजनरी लेखकों की कहानियों में बनारस का जिक्र होने पर विश्वनाथ नहीं बल्कि भांग और सांड का जिक्र होता था और जगह बच जाए तो गलियां विश्वप्रसिद्ध हो जाती थीं….
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आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत का गौरव बन चुकी उन विश्वप्रसिद्ध गलियों को तुड़वा दिया…जहां कभी भांग और सांड का बोलबाला था वहां अब हर हर महादेव और बम भोले के नारे सुनाई दे रहे हैं…भारत का गौरव और हमारी धरोहर कहलाने वाली तथाकथित प्राचीन गलियां खत्म हो गई हैं….आज देश को गौरव का आभास तो हो रहा है पर यह बोझ से मुक्त होकर उठने का गौरव है…. सदियों तक दबे – दबे वजन उठाने में माहिर हो चुके भारतीयों को आजादी के बाद यही बताया गया था कि भार ढोने में उनकी महारथ बड़े गौरव की बात है….लेकिन आज देश को आभास हुआ है कि गौरव तो बोझा ढोने से ज्यादा हल्के हो जाने में है… कब्जों से पटी टेढ़ी मेढ़ी गलियां भारत की संस्कृति और सभ्यता की निशानी नहीं हो सकती हैं…Kashi Vishwanath corridor के बन जाने के बाद काशी का रंग अलग ही दिख रहा है….काशी की जनता में उत्साह दिख रहा है और देश का मूड बदल रहा है यह भी साफ देखा जा सकता है…. Kashi Vishwanath corridor के निर्माण पर लगभग 9 सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं… यह प्रोजेक्ट 5 लाख वर्ग फुट के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है जबकि पहले विश्वनाथ मंदिर परिसर मात्र लगभग 3 हजार वर्ग फुट तक ही सीमित था…आज गंगा में स्नान के बाद सीधे इस कारीडोर से हजारों लोग एक साथ मंदिर जा सकेंगे जबकि पहले गलियों में चार लोग भी अगल-बगल चल नहीं सकते थे…..कारीडोर निर्माण के बाद उम्मीद की जा रही है कि बनारस में विश्वभर से पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ेगी….इससे बनारस में आर्थिक विकास होगा और देश का भी विकास होगा…और हां इसके पीछे कोई राजनीति नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता….राजनीति भी है…यूपी में चुनाव होने वाले हैं और इस कारीडोर से गुजरकर लखनऊ की सत्ता तक पहुंचने का ख्वाब भी देखा जा रहा है…लेकिन ऐसा ख्वाब देखने का मौका उन सभी के पास था जो आज इस लोकार्पण से जल रहे हैं और सत्ता में कभी काबिज रहे….खैर Kashi Vishwanath corridor से वोट कितना मिलेगा ये तो समय बताएगा पर आज यह माना जा रहा है कि यह कॉरीडोर सिर्फ गंगा को विश्वनाथ मंदिर से जोड़ने वाला कॉरीडोर ही नहीं है…बल्कि यह भारत को दीनता से महानता की ओर ले जाने वाला कॉरीडोर है….प्रधानमंत्री ने भी इस दौरान अपने भाषण में कहा कि जिन हीन भावनाओं से भारत को भरा गया आज का भारत उससे निकल रहा है…इस कॉरीडोर को कुछ लोग राजनीति के नजरिए से देख सकते हैं कुछ को इसमें धर्म का रंग भी दिखेगा पर ये धर्म के रंग से कहीं ज्यादा भारत के गौरव को प्रतिष्ठित करने का मामला है…इसे गौरव की प्रतिष्ठा ही समझा जाए….
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