अदालत ने हत्या के मामले में महत्वपूर्ण जानकारी ‘रोकने’ के लिए डीआईजी के खिलाफ जांच के आदेश दिए
अदालत ने हत्या के मामले में महत्वपूर्ण जानकारी ‘रोकने’ के लिए डीआईजी के खिलाफ जांच के आदेश दिए
ग्वालियर, 18 अप्रैल (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने दतिया जिले में एक व्यक्ति की 2017 में हुई हत्या के मामले में ‘‘महत्वपूर्ण जानकारी रोककर स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन’’ करने के लिए एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की खिंचाई की और उनके खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया है।
उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ ने बुधवार को दिये अपने आदेश में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी मयंक अवस्थी पर ‘‘जानबूझकर जांच में बाधा डालने और महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रोककर सुनवाई अदालत को गुमराह करने’’ के लिए पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अवस्थी उस समय दतिया जिले के पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे।
आदेश में राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को यह तय करने का निर्देश दिया गया कि क्या अवस्थी जैसे लोगों को, जो वर्तमान में उप महानिरीक्षक (डीआईजी) के रूप में तैनात हैं, पुलिस बल में बनाए रखा जाना चाहिए या नहीं।
यह आदेश ग्वालियर खंडपीठ के न्यायमूर्ति जी एस अहलूवालिया ने दतिया जिले के दीपार थाना क्षेत्र में हुई हत्या के मामले में दिया।
चौबीस सितंबर 2017 को थाने में हत्या का मामला दर्ज किया गया था। हत्या के मामले में आरोपी याचिकाकर्ता मानवेंद्र गुर्जर ने घटना की तारीख और स्थान के बारे में अभियोजन पक्ष के दावों को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया।
गुर्जर ने कहा है कि हत्या के दिन वह दूसरे स्थान पर थे, जबकि मृतक, घायल और मामले में गवाह भिंड जिले के अमायन में थे। लेकिन जांच अधिकारी ने इस तथ्य को छिपाया और दिखाया कि घटना दतिया जिले के दीपार थाने की सीमा में हुई थी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने अधिकारियों से कुछ मोबाइल नंबरों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) और मोबाइल लोकेशन साझा करने का अनुरोध किया और कहा कि इन चीजों की जानकारी सुरक्षित रखी जाए ताकि यह साबित हो सके कि घायल और गवाह उस स्थान पर मौजूद नहीं थे जहां कथित तौर पर घटना हुई थी।
सात सितंबर 2018 को निचली अदालत ने अधिकारियों को यह जानकारी सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था।
हालांकि, पुलिस ने अदालत को बताया कि टावर लोकेशन की जानकारी सुरक्षित नहीं रखी गई और निचली अदालत ने मानवेंद्र गुर्जर की अर्जी खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
इसके बाद दीपार थाने के प्रभारी को तलब किया गया। लेकिन वह संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
न्यायालय ने दतिया के तत्कालीन एसपी रहे आईपीएस अधिकारी अवस्थी से जवाब मांगा। लेकिन संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर ग्वालियर पीठ ने 16 अप्रैल को उनके खिलाफ आदेश पारित किया।
उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया कि अवस्थी एक पक्ष को लाभ पहुंचाने के लिए गलत काम कर रहे थे। एक परिवार ने अपना सदस्य खो दिया, जबकि दूसरा पक्ष आजीवन कारावास और मृत्युदंड जैसे मामलों का सामना कर रहा है।
अदालत ने कहा कि उन्होंने (अवस्थी) स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
उच्च न्यायालय ने अधिकारी पर जानबूझकर जांच में बाधा डालने और महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रोककर निचली अदालत को गुमराह करने के लिए पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
अदालत ने उन्हें एक महीने के भीतर जुर्माने की राशि जमा करने का आदेश दिया और चेतावनी दी कि ऐसा न करने पर राशि वसूलने और अवमानना का मामला दर्ज करने की कार्यवाही की जाएगी। जमा की गई राशि मुकदमा जीतने वाले पक्ष को दी जाएगी।
अदालत ने अधिकारियों को डीआईजी अवस्थी के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया ताकि उनके ‘‘उद्देश्यों और संभावित कदाचार का पता लगाया जा सके।’’
अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों को पुलिस विभाग में बनाए रखना है या नहीं, यह तय करना डीजीपी का काम है।
अदालत ने दतिया के मौजूदा एसपी को मामले में सीडीआर और मोबाइल लोकेशन से जुड़ी जानकारी 10 दिन के भीतर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
अदालत ने डीजीपी को 20 मई तक जांच की प्रगति से अदालत को अवगत कराने का भी निर्देश दिया।
भाषा सं दिमो शफीक
शफीक

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