Mandsaur Dudhakhedi Mata Mandir: शुभम मालवीय, मंदसौर। मध्यप्रदेश के मंदसौर में माँ दुधाखेड़ी माता मंदिर, जो न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि यहां पर लकवा, पैरालीसिस जैसे पीड़ित हजारों की तादात में श्रद्धालु माता रानी के चौखट पर माता टेकने आते हैं और माता रानी की कृपा से स्वस्थ होकर जाते हैं।
केसर मैया के नाम से भी जाना जाता है मंदिर
बता दें कि ये मंदसौर जिले की सबसे प्रसिद्ध मां दुधाखेड़ी है, जिसे केसर मैया के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में मंदिर का 70% कार्य पूरा हो चुका है और 30% बाकी है। इस मंदिर का एक गौरव में इतिहास विद्यमान है। यहां के स्थानीय निवासी और मंदिर के पुजारी बताते हैं कि, नवरात्रि में मेला आयोजित होता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं और माता के दर्शन कर अपनी मन्नतें मांगते हैं। वहीं, जिनकी मन्नत पूरी होती है वो हां चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। इस वर्ष नवरात्रि को देखते हुए 60 से अधिक नए व्यवस्थापक प्रशासन की ओर से व्यवस्था में जुटे हैं। जिसमें पटवारी चौकीदार वह पुलिस सम्मिलित है। दो फायर ब्रिगेड की व्यवस्था मेले में की गई है। गर्मी के मौसम को देखते हुए 100 मीटर की दूरी पर पेयजल की भी व्यवस्था की गई है।
पंचमुखी रूप में विराजित हैं माता
गरोठ दुधाखेड़ी माता के इस दिव्य मंदिर में पंचमुखी रूप में माताजी विराजित है। प्रतिमा के सामने अतिप्राचीन एक अखण्ड ज्योत प्रज्वलित है। स्थापत्य इतिहास की दृष्टि से 13 वीं सदी से निरंतर यहाँ पूजा अर्चना का प्रमाण मिलता है। यहां लकवा बीमारी से पीड़ित लोग भी यहाँ से स्वास्थ होते हैं। 40 वर्ष पूर्व आकाश से बिजली गिरने से हुए चमत्कार के कारण प्रचलित बलि प्रथा यहां हमेशा के लिए बंद हो गई। और उसके बाद श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई। दोनों नवरात्री में यहां मेला लगता है। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से मालवा अंचल का यह बेजोड़ स्थल है। दुधाखेड़ी माता के इस प्राचीन मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर मध्यप्रदेश ही नहीं राजस्थान और पुरे देश से माँ भगवती के असंख्य भक्तजन परिवार सहित दर्शन करने पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचे दुधाखेड़ी माता के मंदिर
दुधाखेड़ी माता जी का मंदिर भानपुरा से 12 कि. मी. दुर और गरोठ से 16 कि. मी. दुर स्थित है। नवरात्रि के समय दुधाखेड़ी माताजी के नौ रूप देखने को मिलते हैं। रोज नये रूप मे माता जी अपने भक्तों को दर्शन देती है। मान्यता है कि माता की मूर्ति इतनी चमत्कारी है कि कोई भी भक्त उनसे आँख नहीं मिला पाता है। यहाँ पर जबसे मन्दिर बना है तब से एक अखण्ड जोत भी जल रही है। कई किलोमीटर लम्बी यात्रा करके भक्त यहाँ आते हैं।
अहिल्या देवी ने करवाया था मंदिर का जीर्णोद्धार
बता दें कि, इन्दौर की महारानी अहिल्या देवी ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। बताया जाता है कि होलकर स्टेट की महारानी देवी अहिल्या जब अंग्रेजों से परस्त होने लग गई थी। होलकर स्टेट की सेना हार रही थी, तभी देवी अहिल्या ने दुधाखेड़ी माताजी आकर माथा टेका, माताजी ने स्वयं उन्हे खड़ग तलवार भेंट की। इसके बाद होलकर स्टेट की सेना ने अंग्रेजों को कोलकाता में जाकर हरा दिया।
क्या है दुधाखेड़ी मंदिर की कहानी?
आज जहां माता का मंदिर है वहां भयंकर जंगल था। उस जंगल में एक व्यक्ति पेड़ काट रहा था, उसी समय एक महिला की आवाज उसे सुनाई दी। महिला ने कहा हरे पेड़ काटना महापाप है। एक वन काटना 35 लाख मनुष्यों को मारने के बराबर है, लेकिन उसने पेड़ काटने बंद नहीं किया। फिर एक पेड़ से दो धाराएं बहने लगीं। एक खून की और एक दूध की, उसके बाद व्यक्ति ने पेड़ काटना बंद कर दिया। उसी समय पश्चिम की ओर से एक वृद्धा आई, उसने कहा बेटा वनों की पूजा करना चाहिए। उस आदमी ने हाथ जोड़े। जब आंखें खोलीं तो महिला वहां से गायब थी। जब मोड़ी वाले दुधा जी रावत ने बात सुनी तो वे भी उस वन में आए। कई लोगों ने इधर-उधर के गांवों से आकर उस वन में बह रही दुध की धार के दर्शन के किए। फिर वहां दुधाखेड़ी माता जी की मूर्ति की स्थापना की गई, धीरे-धीरे यह मंदिर प्रसिद्ध होता चला गया।
मंदिर में नहीं दी जाती बलि
केशर बाई महारानी भी बहुत चमत्कारी है, यहां पर पहले बलि भी चढ़ती थी, लेकिन पुजारी के सपने में आया कि यहां बलि नहीं चढ़ाए। पुजारियों के बताने के बाद भी लोग माने नहीं और बकरे का वध किया उसके बाद जो बीच पड़ी, उससे व्यक्ति घायल हो गया उसके बाद बलि चढ़ना भी बंद हो गया।