Many councilors of Madhya Pradesh leave for Delhi

‘पालिका’ की जंग..पार्षदों पर दांव! मेयर के बाद अब सभापति पर ‘संग्राम’! क्या एकजुटता दिखाने के लिए पार्षदों को दिल्ली ले जाना जरुरी था?

'पालिका' की जंग..पार्षदों पर दांव! मेयर के बाद अब सभापति पर 'संग्राम'! Many councilors of Madhya Pradesh leave for Delhi

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:10 PM IST, Published Date : August 3, 2022/11:28 pm IST

भोपालः Many councilors of Madhya Pradesh मध्य प्रदेश में इन दिनों एक चुनाव खत्म होता और दूसरा चुनाव सर पर होता है। अब नगरपालिका के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और नगर निगम के सभापति का चुनाव होना है। जिसमें दोनों दल जीत के लिए खूब एक्सरसाईज कर रहे हैं। अपने-अपने पार्षदों को दोनों दलों ने सुराक्षित जगह पर भेज दिया है..जिससे वो किसी के संपर्क में न आ सके। ग्वालियर, मुरैना, सतना, बुरहानपुर और रीवा में कौन बनेगा सभापति लड़ाई इसी बात को लेकर है। असल में इन नगर निगमों में कांग्रेस का मेयर है लेकिन फेंच सभापति को लेकर फंसा हुआ है। लड़ाई कांटे की है और जीत हार के बीच निर्दलीयों की भूमिका अहम है। कांग्रेस, बीजेपी पर धनबल और पैसे के दम पर चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगा रही है। तो बीजेपी कह रही है जब कांग्रेस चुनाव हारने लगती है तो वो ऐसी ही बातें करती है।

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Many councilors of Madhya Pradesh सवाल सियासत का है, सवाल नगर सरकार का है और सरकार बनाने के लिए बहुमत चाहिए होता है। जब तक बहुमत साबित ना हो जाए तब तक सियासी दलों में बैचेनी होती है। अपना कोई बागी ना जाए, इस बात चिंता रहती है और ऐसा ही कुछ एमपी में देखने को मिल रहा है। जहां दोनों ही दल अपने ही पार्षदों पर भरोसा नहीं कर पा रहे है। बगावत ना हो इसलिए बाड़ेबंदी की जा रही है। पार्षदों को पत्नी के साथ राजनीतिक पर्यटन पर भेजा रहा है। वहीं ग्वालियर में बीजेपी ने अपने 34 पार्षदों को दिल्ली भेज दिया है, खास बात ये है कि बीजेपी ने 8 वीआईपी बसों का इंतजाम किया था ताकि पार्षदों और उनकी पत्नियों को किसी तरह का कोई कष्ट ना हो और सफर आनंददायी हो। पार्षदों का दल दिल्ली में ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र तोमर, वीडी शर्मा से मुलाकात करेंगे। वैसे ये हाल केवल ग्वालियर की नहीं बल्कि कई शहरों का है। जहां पार्षदों को दूसरे राज्यों के रिसॉर्ट में शिफ्ट कर दिया गया है। कांग्रेस ने फिर बीजेपी पर हॉर्स ट्रेडिंग का पुराना आरोप लगाया है।

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आरोपों की झड़ी के बीच बीजेपी और कांग्रेस दोनों के अपने-अपने दावे हैं। कुछ निकायों में निर्दलीय पार्षदों की भी जमकर पूछ परख हो रही है। लिहाजा बीजेपी को इसके लिए स्थानीय विधायकों के अलावा प्रभारी मंत्रियों तक को जिम्मेदारी देनी पड़ी है। हालांकि बीजेपी से जब ये पूछा गया कि पार्षदों को दिल्ली ले जाने की जरुरत क्यों पड़ी। अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ एकजुटता दिखाने के लिए पार्षदों को दिल्ली ले जाना जरुरी था। अब दिल्ली को ही क्यों चुना गया ये बीजेपी ही जाने। लेकिन नगर सरकारों के गठन के पहले पार्षदों की कथित नजरबंदी की तस्वीरें आम हैं। कांग्रेस ने भी पार्षदों को भूमिगत कर दिया है तो वहीं कुछ निकायों में निर्दलीय भी गुप्त स्थान को अपना अस्थाई निवास बना चुके हैं। कहने का मतलब ये है कि अपने पार्षदों को बचाना भी है और दूसरे के पार्षदों को पाले में लाना भी है। जिसकी कीमत भी चुकानी होती है तो चुकाई जाएगी। बस खेल देखते जाइये, वो भी ठीक तटस्थ दर्शक की तरह ।

 

 
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