तिरंगे से अपनी पहचान.. नहीं ये कोई ‘सियासी सामान’! क्या राजनीतिक बयानबाजी से राष्ट्रीय प्रतीकों की गरिमा को कम किया जा रहा है?
तिरंगे से अपनी पहचान.. नहीं ये कोई 'सियासी सामान'! Political rhetoric is undermining the dignity of national symbols
भोपालः आजादी के 75 साल होने पर देश अमृत वर्ष मना रहा है। जाहिर है ऐसे में जरुरी है कि हर शख्स, हर समाज, हर राजनीतिक दल अपने राष्ट्रीय प्रतीकों को सर्वोच्च सम्मान दें। लेकिन क्या ऐसा हो रहा है? क्या तमाम सियासी दलों ने तिरंगे को राजनीति का जरिया नहीं बना लिया है? क्या राजनीतिक पार्टियों की आपसी बयानबाजी के चलते राष्ट्रीय प्रतीकों की गरिमा को कम किया जा रहा ? जब तिरंगे से अपनी पहचान है तो इसे ‘सियासी सामान’ की तरह क्यों पेश किया जा रहा है?
कुछ दिन पहले नई संसद में स्थापित अशोक स्तंभ के शेरों को लेकर जमकर सियासत हुई और अब फिर से राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को लेकर राजनीति जोरों पर है। वो तिरंगा जिसकी खातिर लाखों सेनानियों ने अपनी जान कुर्बान कर दी। जो पूरी दुनिया में भारत की पहचान है। जिसके हर रंग और हर अंश में इस देश की आत्मा बसती है। आजादी के 75 साल बाद नेताओं के लिए अपनी राजनीति चमकाने का जरिया बन चुका है। फिर चाहे बीजेपी का तिरंगा विक्रय केंद्र खोलना हो, तिरंगा यात्रा निकालना हो या कांग्रेस का तिरंगे को लेकर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ पर निशाना साधना या फिर दिल्ली में आप का सबसे बड़ा तिरंगा लहराना।
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सत्ता की चाहत हर राजनीतिक दल में होती है लेकिन उसके लिए देश के प्रतीक चिन्ह जब जरिया बन जाए तो हालात की गंभीरता का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। आजादी के अमृत वर्ष में सरकारी कार्यक्रमों को बीजेपी जिस शिद्दत कामयाब बनाने में जुटी है उससे पार्टी पर आरोप लगता है कि वो इसका राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है। इसके उलट कांग्रेस तिरंगे के जरिए संघ पर हमलावर है वो बार बार लोगों को याद दिला रही है कि 2001 तक संघ मुख्यालय पर तिरंगा नहीं लहराया गया था।
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मामला इतने पर ही नहीं थमता कोई पार्टी तिरंगा बेच रही है तो कोई फ्री में बांट कर खुद को बड़ा राष्ट्रभक्त बताने मे जुटी है? जाहिर है सियासी दलों की इन हरकतों ने आम आदमी को चिंता में तो डाल ही दिया है
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आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 13 से 15 अगस्त पर हर घर तिरंगा चलाया जा रहा है? जिसके तहत हर घर और दफ्तर तिरंगा फहराने की अपील की गई है, इसके लिए फ्लैग कोड में कुछ बदलाव भी किए गए हैं जैसे रात में भी तिरंगा फहरा सकते हैं साथ ही तिरंगा पालिएस्टर का भी हो सकता है? बहरहाल कार्यक्रम को लेकर जिस तरह से सियासी झगड़ा और आरोप प्रत्यारोप हो रहे हैं? इसका फैसला आप खुद करिए?

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