भोपालः सियासत में मैथमेटिक्स और कैमिस्ट्री के संतुलन से जीत का फार्मूला तय होता है। चुनाव कोई भी हो अलग-अलग समाज और वर्गों को जिसने साध लिया, जीत उसे ही मिलती है और इसी सियासी गणित को साधने बीजेपी और कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में चालें चलनी शुरू कर दी है। दोनों ही दलों की खासकर दलित और आदिवासी वोटर्स पर नजर है। बीजेपी ने दलित एजेंडे के तहत एल मुरुगन को मध्यप्रदेश से राज्यसभा उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बीजेपी के इस फैसले के पीछे RSS का एजेंडा है? क्या मुरुगन को मौका देकर बीजेपी एणपी में दलित वोटर्स को साध पाएगी।
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मध्यप्रदेश में इन दिनों बीजेपी का फोकस संघ के दलित एजेंडे को आगे बढ़ाने पर है। सरकार के कामकाज और संगठन में इसका असर दिखने भी लगा है। दरअसल आदिवासी और दलित वोटर्स को साधने की पठकथा संघ प्रमुख मोहन भागवत के चित्रकूट दौरे से लिखी गई थी। जब उन्होंने कहा था की देश में एक वर्ग ऐसा है जो उनकी विचार को पसंद करता है पर वोट नहीं करता है। मोहन भागवत का इशारा दलित और आदिवासी वर्ग के लोगों की तरफ था इसके बाद से संघ और बीजेपी की नर्सरी कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में दलित एजेंडे के फूल खिलाये जाने लगे है। शंकर शाह रघुनाथ का बलिदान दिवस कार्यक्रम हो या फिर तमिलनाडु के दलित नेता अल मुरुगन का मध्यप्रदेश राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बनाया जाना, बीजेपी के दलित एजेंडे की ओर साफ इशारा करता है।
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बीजेपी के दलित एजेंडे को कांग्रेस भी भलीभांति समझ रही है। पार्टी जानती है कि कि उसके साथ हमेशा खड़ा रहने वाला ये वोट बैंक सत्ता में वापसी के लिये कितना जरूरी है। यही वजह है की दलितों के खिलाफ हुई हिंसा को कांग्रेस ने प्रदेशव्यापी मुद्दा बनाया तो आदिवासियों के लिए बीजेपी के अभियान के समांतर कांग्रेस मेल मिलाप अभियान चलाएगी और घर-घर जाकर आदिवासियों को एनसीआरबी के आदिवासी अपराध के आंकड़े बताएगी और उनसे संवाद करेगी। आदिवासियों से मेल मिलाप करने के लिये कांग्रेस एक टीम बनाने जा रही है जिसमें विधायक भी शामिल होंगे। कांग्रेस के इस अभियान पर बीजेपी सवाल उठा रही है।
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आंकड़ों की बात करें तो मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासी आबादी लगभग 32 प्रतिशत है। जो सीधे-सीधे सूबे की सियासत को प्रभावित करते हैं। शायद यही वजह है कि दलित और आदिवासी वोटरों को अपने पाले में करने की रणनीति बनने लगी है। जाहिर है आगामी विधानसभा चुनाव में इन दोनों वर्गों का आशीर्वाद जिस दल को मिलेगा, उसके सत्ता में आने की संभावना बढ़ जाएगी।
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