सिंहस्थ लैंड पुलिंग एक्ट: बीकेएस ने सरकार पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप, फिर से आंदोलन की चेतावनी
सिंहस्थ लैंड पुलिंग एक्ट: बीकेएस ने सरकार पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप, फिर से आंदोलन की चेतावनी
उज्जैन (मध्यप्रदेश), 14 दिसंबर (भाषा) भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने ‘सिंहस्थ लैंड पुलिंग एक्ट’ को पूरी तरह निरस्त करने की मध्यप्रदेश सरकार की घोषणा को ‘वादाखिलाफी और धोखा’ करार देते हुए रविवार को एक बैठक करके 26 दिसंबर से फिर से आंदोलन की चेतावनी दी।
बीकेएस के प्रदेश अध्यक्ष कमल सिंह आंजना के नेतृत्व में 18 जिले की 115 तहसीलों के कार्यकर्ताओं ने इस बैठक में हिस्सा लिया।
आंजना ने ‘पीटीआई-वीडियो’ से बातचीत में कहा, ‘बैठक में निर्णय लिया गया है कि प्रदेश सरकार ने किसान व भारतीय किसान संघ के साथ धोखा किया है। वादा करके सरकार पलटी है। इसलिए अब सरकार से आर-पार की लड़ाई की जाएगी।’
उन्होंने कहा कि इसी माह की 26 तारीख को भारतीय किसान संघ एक बड़ा आंदोलन करने जा रहा है और यह अनिश्चितकालीन होगा। उन्होंने कहा कि इसका नाम ’26/12 घेरा डालो, डेरा डालो’ दिया गया है और इसमें हजारों की संख्या में किसान कलेक्टर कार्यालय पहुंचेंगे, जहां स्थाई तौर पर डेरा डाला जाएगा।
आंजना ने कहा कि किसान यहां तंबू लगाएंगे, रात भर रुकेंगे, भोजन भी यहीं बनाएंगे और घर से मवेशी भी यही लेकर आएंगे। उन्होंने कहा, ‘जब तक प्रदेश सरकार लिखित रूप में सिंहस्थ लैंड पूलिंग निरस्त का आदेश नहीं देती तब तक नहीं हटेंगे।’
उल्लेखनीय है कि बीकेएस के आह्वान पर 18 नवंबर को ‘डेरा डालो, घेरा डालो’ आंदोलन की घोषणा के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने विवादित सिंहस्थ लैंड पुलिंग एक्ट को पूरी तरह निरस्त करने की घोषणा की थी।
इसके बाद तत्काल ही भारतीय किसान संघ ने उज्जैन में जश्न रैली निकाल दी लेकिन बात तब बिगड़ी जब 2 दिन बाद प्रदेश सरकार की ओर से एक पत्र जारी किया गया, जिसमें सिंहस्थ लैंड पूलिंग निरस्त करने की बजाय संशोधित की गई जबकि भारतीय किसान संघ की मांग थी कि लैंड पूलिंग एक्ट पूरी तरह निरस्त किया जाए।
इसी बात से नाराज किसानों ने रविवार को नये सिरे से आंदोलन की रुपरेखा तैयार करने के लिए बैठक की।
उज्जैन में इस बार सिंहस्थ 2028 में है और इसके मद्देनजर सरकार किसानों की जमीन अधिग्रहित करके स्थाई निर्माण के लिए ‘लैंड पुलिंग’ नीति लेकर आई थी जबकि पूर्व में किसानों से सिंहस्थ के लिए 5-6 महीनों के लिए जमीन ली जाती थी। तभी से किसान संगठन इसका जोरदार विरोध कर रहे थे।
भाषा सं ब्रजेन्द्र अमित
अमित

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