जनता के मूड मीटर पर जबलपुर पूर्व के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
जनता के मूड मीटर पर जबलपुर पूर्व के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
जबलपुर। विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए हमारी टीम पहुंची है, मध्य प्रदेश की जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र। अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट से बीजेपी के अंचल सोनकर चार बार विधायक चुने जा चुके हैं, लेकिन फिर भी ये विधानसभा क्षेत्र जबलपुर के सबसे पिछड़े और बदहाल इलाकों में शुमार होता है, तो फिर इस चुनाव में क्या सोच रही है जबलपुर पूर्व की जनता, क्या कहता है यहां का सियासी समीकरण। इस रिपोर्ट के जरिए समझने की कोशिश करते हैं।
प्रदेश की संस्कारधानी यानी जबलपुर की 8 विधानसभा सीटों में से जबलपुर पूर्व सीट को बीजेपी का मजबूत गढ माना जाता है। बीते 25 में से 20 सालों तक बीजेपी ने यहां राज किया। जबलपुर पूर्व के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1993,1998 और 2003 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी नेता अंचल सोनकर ने जीत की हैट्रिक लगाई, लेकिन 2008 में कांग्रेस के लखन घनघोरिया ने अंचल सोनकर को हराकर बीजेपी के विजय रथ पर ब्रेक लगाया। 2013 में फिर कांग्रेस और बीजेपी ने अपने इन्हीं दो चेहरों पर दांव लगाया, जिसमें अंचल सोनकर को 67 हजार 167 जबकि लखन घनघोरिया को 66 हज़ार 12 वोट मिले। इस तरह से 2013 में 1155 वोटों से जीतकर बीजेपी के अंचल सोनकर ने सत्ता में वापसी कर ली।
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जबलपुर पूर्व में जाति समीकरण भी बेहद खास है। ऐसे में चुनाव नजदीक आते ही सियासी पार्टियां जातिगत समीकरण को साधने में जुट गए हैं।
अनुसूचित जाति वर्ग के वोटरों का दिल जीतने के लिए राजनीतिक दलों ने ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाना शुरु कर दिया है। इसका अंदाज़ा अंबेडकर जयंती पर हुए आयोजनों से हो गया था। अंबेडकर प्रतिमा पर माल्यार्पण कर खुद को दलितों का हितैषी बताने इस बार दोनों ही पार्टियों के नेताओं की ऐसी भीड़ जुटी जितनी बीते सालों में कभी नज़र नहीं आई। एट्रोसिटी एक्ट में हुए बदलाव को सियासी मुद्दा बनाते हुए जहां कांग्रेस ने अपने मंच से बीजेपी को खूब कोसा तो बीजेपी ने खुद को बाबा साहब का सबसे बड़ा अनुयायी बताकर कांग्रेस के खिलाफ जमकर आग उगली।
दलित वर्ग का सबसे बड़ा हिमायती बताने वाली सियासी पार्टियां यहां मुस्लिम, ओबीसी और सामान्य वर्ग के वोटर्स को भी खुल करने का कोई मौका नहीं गंवाती है। दोनों पार्टियां वर्ग विशेष के सम्मेलन आयोजित कर वोटरों को लुभा रही है। जबलपुर पूर्व में हमेशा जाति और वर्ग आधारित राजनीति के फेर में चुनाव के वक्त विकास का मुद्दा कमज़ोर पड़ जाता है जिससे लोगों में निराशा है। ऐसे में अपने विधायक, विपक्ष के दावेदारों और राजनीतिक पार्टियों को भांप रही यहां की जनता फिर कोई बड़ा बदलाव कर दे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट पर तमाम सियासी दल और टिकट के संभावित उम्मीदवार जातिगत समीकरणों के बूते जीत का गणित समझने में लगे हैं ..लेकिन विकास की बाट जोह रहा यहां का वोटर फिलहाल ख़ामोश है। लेकिन 2 लाख से ज्यादा वोटर्स वाले इस अहम विधानसभा क्षेत्र में जलसंकट के अलावा अपराध, नशे के गोरखधंधे, ग़रीबी सहीत विकास के कई मुद्दे हैं, जो आगामी चुनाव में जमकर गूंजेंगे।
विकास को अपना पहला एजेंडा बताकर बीजेपी यहां चुनाव लड़ती रही है और इसी एजेंडे पर जबलपुर पूर्व के वोटर्स ने बीजेपी प्रत्याशी अंचल सोनकर पर लगातार भरोसा जताया। बीजेपी के अंचल सोनकर की जीत की हैट्रिक लगने के बाद भी जब इलाके में लोगों की समस्याएं नहीं सुलझी तो उन्होंने 2008 में कांग्रेस के लखन घनघोरिया पर भरोसा जताया, लेकिन प्रदेश सरकार और नगर निगम पर भेदभाव के आरोप लगाते लगाते उनका कार्यकाल गुज़र गया, पानी को तरस रही जनता ने आखिरकार 2013 में फिर से बीजेपी के अंचल सोनकर को चुना लेकिन जलसंकट अभी भी इलाके की बड़ी समस्या बनी हुई है।
जलसंकट इस बार भी जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा है, वो इसलिए क्योंकि यहां पानी की बूंद-बूंद को लेकर हर गर्मी में हाहाकार मचता है। मौजूदा विधायक अपने निजी टैंकर्स और नगर निगम के ज़रिए लोगों तक पानी पहुंचाने के दावे करते हैं तो दूसरी ओर विपक्ष के नेता अपने अपने नामों वाले टैंकर्स से पानी की आढ़ में वोट बटोरने की कवायद में जुटे नज़र आते हैं। अब जब चुनाव नजदीक है तो जलसंकट के मुद्दे पर विपक्ष विधायक की नाकामियां गिना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मौजूदा विधायक के पास भी अपना तर्क है।
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विपक्ष के आरोप, विधायकजी के प्रत्यारोप और सफाई अपनी जगह है लेकिन हकीकत वो है जिससे जनता परेशान है…जलसंकट के अलावा भी कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिनसे जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र बदनाम है। जबलपुर का पूर्व विधानसभा क्षेत्र वो इलाका है जहां अवैध शराब, मादक पदार्थों का कारोबार और गली-गली जानलेवा अपराध सबसे ज्यादा अंजाम दिए जाते हैं। इलाके में स्मैक, चरस ,गांजा, और नशीली दवाओं का कारोबार आज नहीं बीते पंद्रह सालों से ज़ोरों पर है लेकिन इस पर नकेल कसने में सभी नाकाम साबित हुए। इतना ही नहीं कांग्रेस के पूर्व विधायक और मौजूदा विधायक पर भी नशे के कारोबारियों को संरक्षण देने के आरोप लगता रहा है …लेकिन चुनावी मौसम में ये आरोप-प्रत्यारोप सीधे-सीधे नाम लेकर होने लगे हैं।
जलसंकट और अपराध ही नहीं..बल्कि साफ सफाई की कमी, नालियों की अव्यवस्था, शहरी क्षेत्र में प्रतिबंध के बावजूद सुअर पालन, ख़राब सड़कें, सीवर लाईन बिछाने के बेतरतीब काम से सड़कों की बदहाली, गरीबी और बेरोज़गारी। प्रादेशिक के साथ ये स्थानीय मुद्दे भी जबलपुर पूर्व विधानसभा चुनाव में इस बार जमकर गूंज रहे हैं। इन बुनियादी मुद्दों से इतर कांग्रेस और बीजेपी में टिकट के उम्मीदवार कमलनाथ और मोदी-शिवराज लहर के बूते यहां चुनाव जीतने का दावा कर रहे हैं। कुल मिलाकर जबलपुर पूर्व विधानसभा की जनता को विकास के नाम पर केवल दुश्वारियां मिली है और आने वाले चुनाव में इन्हें नजरअंदाज करना सियासी पार्टियों के लिए इतना आसान नहीं होगा।
जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र में स्थानीय मुद्दों को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष आमने सामने हैं…लेकिन ऐसा भी नहीं है कि दोनों का सामना सिर्फ एक-दूसरे से है। चुनाव से पहले कहीं गुटबाज़ी तो कहीं प्रत्याशियों की दावेदारियों से जूझ रही हैं पार्टियां। चुनाव में जबलपुर पूर्व विधानसभा सीट से दावेदारों के बीच टिकट का टशन ऐसा है जो ना सिर्फ जिताऊ उम्मीदवारों की टेंशन बल्कि राजनीतिक दलों की भी मुसीबत बढ़ा रहा है।
जबलपुर जिले की इस सीट पर वैसे तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला रहा है, लेकिन इस बार सियासी दलों के सामने पहली चुनौती घर में जारी घमासान सुलझाने की है। दरअसल जबलपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी और कांग्रेस में टिकट पाने वाले दावेदारों की फौज खड़ी है। बात करे रूलिंग पार्टी बीजेपी की तो मौजूदा विधायक अंचल सोनकर की दावेदारी सबसे मजबूत नजर आती है लेकिन उनके खिलाफ भी खड़े होने वालों की कमी नहीं है। पार्टी के कई पदाधिकारी खुद ही अपनी दावेदारी पेश करने में जुट गए हैं। अगर पार्टी अपने
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विधायक के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी और परफॉर्मेंस को देखकर टिकट बदलने का विचार करती है तो सीट पर अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाली जबलपुर नगर निगम की अध्यक्ष सुमित्रा वाल्मीकि, पार्टी के नगर महामंत्री शिवराम बेन और पूर्व पार्षद रत्नेश सोनकर टिकट के प्रमुख दावेदार हैं।
बीजेपी में जहां दबी जुबान में नेता टिकट मांग रहे हैं तो वहीं कांग्रेस में नेता अपनी दावेदारी खुलकर पेश कर रहे हैं..पिछला चुनाव हारे लखन घनघोरिया टिकट के सबसे बड़े दावेदार हैं। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के करीबी लखन घनघोरिया अपनी दावेदारी पक्की मान रहे हैं, लेकिन उन्हें भी पार्टी के भीतर से चुनौती मिल रही है…नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष राजेश सोनकर, क्षेत्रीय नेता गज्जू गजेन्द्र सोनकर, तेजकुमार भगत और राजेन्द्र चौधरी यहां टिकट के संभावित दावेदार हैं।
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इधर बीजेपी से मौजूदा विधायक और कांग्रेस के सबसे बड़े दावेदार.. दोनों ही नेता टिकट के लिए खुद को सबसे बड़ा कैंडिडेट तो बताते हैं लेकिन ये भी मानते हैं कि पार्टी संगठन जो फैसला करेगा उसे वो ज़रुर स्वीकार करेंगे। हालांकि जबलपुर पूर्व में वोटर्स के मिजाज़ और अपने सबसे बड़े चेहरों के परफॉर्मेंस को भांपकर कांग्रेस और बीजेपी भी यहां बड़ा बदलाव कर दे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि जबलपुर पूर्व की ये वही जनता है जो बीते दो चुनावों से बदलाव की छटपटाहट दिखाती आई है।
वेब डेस्क, IBC24

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