देखिए गुना विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड

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देखिए गुना विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
Modified Date: November 29, 2022 / 07:58 pm IST
Published Date: August 13, 2018 3:21 pm IST

गुना। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के गुना विधानसभा सीट के विधायक की। गुना विधानसभा सीट मध्यप्रदेश की अहम और महत्वपूर्ण विधानसभा है। खास इसलिए क्योंकि ये पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गृह जिला में तो है ही, साथ ही सिंधिया राज परिवार के दबदबे वाला इलाका भी है। लेकिन अब यहां की सियासत महलों से निकलकर सड़कों पर आ गई है। लंबे समय तक कांग्रेस के मजबूत किलों में से एक गुना विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल बीजेपी का कब्जा है और पन्नालाल शाक्य विधायक हैं। मुद्दों की बात की जाए तो शहरी इलाके में गंदगी सबसे बड़ी समस्या है। वहीं बाजारों में ट्रैफिक जाम की समस्या भी लोगों के लिए मुसीबत बन गई है।

गुना शहर के बस स्टैंड में गंदगी, अव्यवस्था और कीचड़ के बीच आवाजाही के लिए मजबूर मुसाफिर। ये केवल बस स्टैंड की सच्चाई नहीं है बल्कि शहर के ज्यादातर हिस्सों में हालात कमोबेश ऐसे ही हैं। गुना में साफ-सफाई के साथ ही ओडीएफ के दावे भी हवा-हवाई नजर आते हैं। ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में हालत और बदतर है। स्मार्ट सिटी के शोर के बीच गुना का ये हाल इस बात का सबूत है कि बुनियादी विकास के वादे जमीन पर उतर नहीं पाए।

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गुना विधानसभा में केवल गंदगी का मुद्दा बड़ा नहीं है, बल्कि उच्च शिक्षा के संस्थानों का अभाव और सरकारी स्वास्थ्य सेवा की बदहाली भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। वहीं यहां के युवा रोजगार के मौकों की कमी के चलते नाराज़ नज़र आते हैं। इसी तरह बाजारों से लेकर प्रमुख चौराहों तक हर रोज लगने वाला ट्रैफिक जाम, अवैध कॉलोनियों का बेहिसाब विस्तार और सार्वजनिक जगहों में अतिक्रमण भी वोटर्स के लिए बड़ा मुद्दा है।

बुनियादी विकास और जनसमस्याओं को लेकर गुना के लोगों की जो राय है। उससे यहां के विधायक इत्तेफाक नहीं रखते। उनका दावा है कि हर वर्ग को ध्यान में रखकर विकास योजनाएं चलाई गई हैं। गुना की जनता कुछ और कह रही है, पर यहां के विधायक का कुछ और ही कहना है। इस सूरतेहाल में मुद्दा ये नहीं कि विरोधभास क्यों, बल्कि सच्चाई ये है कि चुनावी दौर में जनता की नाराज़गी विधायकजी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।

गुना विधानसभा क्षेत्र के सियासी समीकरण बात की जाए तो यहां की जनता किसी एक दल की नहीं रही। लोगों ने कभी कांग्रेस, कभी बीजेपी तो कभी दूसरे दलों तक को मौका दिया है। इस बार भी मुकाबला दोनों ही प्रमुख दल बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहेगा। हालांकि तीसरे दल के रूप में बीएसपी या आम आदमी पार्टी चुनावी समर में उतरकर दोनों सियासी दलों का चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं।

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ग्वालियर संभाग में आने वाला गुना विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो इस सीट का मिजाज कभी भी एक जैसा नहीं रहा है। यहां की जनता ने कभी कांग्रेस को मौका दिया तो कभी बीजेपी ने यहां कब्जा जमाया। विकास के मुद्दों को लेकर गुना की जनता ने बीजेपी और कांग्रेस के अलावा जनशक्ति पार्टी पर भी अपना भरोसा जताया है। सियासी जानकारों का मानना है गुना की जनता अपने अधिकारों को लेकर काफी जागरूक है और हार-जीत पार्टी से नहीं बल्कि प्रत्याशियों से तय होगा।

गुना के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1977 में जनता पार्टी के नेता धर्मस्वरूप सक्सेना ने यहां से पहली बार जीत हासिल की थी। कांग्रेस के दिग्गज नेता शिवप्रताप सिंह यहां से 1972, 1980, 1985, 1993 और 1998 में विधायक रहे। इसके बाद 1990 में सीट बीजेपी के पाले में आ गई और बीजेपी नेता भागचंद सौगानी ने जीत हासिल की थी। 2003 में गुना विधानसभा सीट से बीजेपी ने 1998 में हारे कन्हैयालाल अग्रवाल पर दोबारा अपना भरोसा जताया और कन्हैयालाल ने कैलाश शर्मा को 76450 मतों से शिकस्त दी। इसके बाद 2008 में बीजेपी प्रत्याशी गोपीलाल जाटव का आवेदन अमान्य हो गया और जनशक्ति पार्टी के बैनर से चुनाव लड़कर बीजेपी नेता राजेंद्र सलूजा विधानसभा पहुंचे। 2013 के चुनाव में बीजेपी ने पन्नालाल शाक्य को टिकट दिया, जिन्होंने कांग्रेस के नीरज निगम को हराकर गुना विधानसभा सीट पर फतह हासिल की। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 81444 मिले थे, वहीं कांग्रेस 36333 वोट ही ले पाई। इस तरह जीत का अंतर 45111 वोटों का रहा।

एससी वर्ग के लिए आरक्षित गुना विधानसभा क्षेत्र में आगामी सियासी जंग की तैयारियां शुरू हो गई है। राजनीतिक पार्टियां एक्टिव मोड में नजर रही हैं। नेता अपनी-अपनी पार्टी की लाइन पर दावा कर रहे हैं कि इस बार जनता उन्हीं की पार्टी के प्रत्याशी को वोट देगी। भले ही नेताओं के अपने दावे हों लेकिन गुना विधानसभा के इतिहास से लेकर वर्तमान के समीकरणों के बीच जनता भी अपना रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रही है। अब देखना ये है कि जनता अपना विश्वास किस पर जताती है।

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गुना विधानसभा में सियासी उठापटक के बीच आने वाले चुनाव से पहले टिकट दावेदारों की फौज नजर आने लगी है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों में संभावित उम्मीदवारों की लंबी फेहरिस्त है। हालांकि सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित होने की वजह से यहां के दबंग सवर्ण नेता अपने समर्थकों को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।

जितने चेहरे, उतने दावे, जितने दावे, उतनी चुनौतियां। गुना विधानसभा में इस बार दावेदारों से ज्यादा दावेदारी के समर्थक नेता सक्रिय नजर आ रहे हैं। सामान्य और ओबीसी वर्ग के जो नेता आरक्षित सीट होने की वजह से खुद चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। वो अपने चहेतों के लिए लॉबिंग करने में लग गए हैं। गुना से विधानसभा के दावेदारों की बात करें तो बीजेपी से वर्तमान विधायक पन्नालाल शाक्य फिर ताल ठोक रहे हैं। दूसरी ओर अशोकनगर सीट के विधायक गोपीलाल जाटव भी गुना विधानसभा को अपने लिए सुरक्षित मानते हुए यहां से टिकट की चाह रख रहे हैं। इस तरह इस सीट के लिए बीजेपी के दो विधायक ज़ोर आजमाइश पर उतारू हैं, तो वहीं रमेश मालवीय को टिकट दिलाने के लिए बीजेपी का एक गुट जी-तोड़ कोशिश कर रहा है।

इधर बीजेपी के कुछ नेता इस तर्क के साथ मौजूदा विधायक को रिप्लेस करने की मांग कर रहे हैं कि उनके खिलाफ एंटी इंकमबेंसी फैक्टर काम कर सकता है, पर कोई नया उम्मीदवार यहां से उतरे तो पार्टी की जीत तय है क्योंकि बीजेपी के प्रति यहां कोई नाराज़गी नहीं है।

गुटीय खींचतान के बीच ही बीजेपी से एक और नाम उछलकर सामने आया है। ये नाम है देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के भाई रामस्वरूप भारती का। हालांकि उन्होंने अब तक टिकट के लिए कोई औपचारिक दावेदारी नहीं की है, पर इस बात से खंडन भी नहीं कर रहे हैं और न ही ये कह रहे हैं कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे।

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कांग्रेस से सामने आ रहे दावेदारों की बात करें तो बीजेपी जैसी स्थिति यहां भी दिख रही है। पिछली बार शिकस्त खाने वाले कांग्रेस नेता नीरज निगम तो खैर फ्रंट रनर है ही। वहीं गुना मंडी के डायरेक्टर बंटी अहिरवार भी दावेदार बताए जा रहे हैं। इसी तरह नगर पालिका के नेता प्रतिपक्ष सुनील मालवीय का नाम भी सामने आ रहा है। कांग्रेस से घासीराम अहिरवार, संगीता मोहन रजक और ओपी नरवरिया भी टिकिट की दावेदारी कर रहे हैं। इन सबके बीच कांग्रेस इस बार यहां से अपनी जीत का दावा कर रही है।

कांग्रेस और बीजेपी में दावेदारों की ये लंबी कतार ये बता रही है कि चुनाव जीतने से पहले इस बार दोनों ही दलों को सही उम्मीदवार के चयन के लिए खूब माथापच्ची करनी पड़ेगी। यही नहीं उन्हें असंतुष्टों के भितरघात और बगावत से भी निपटना होगा।

वेब डेस्क, IBC24


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