देखिए राजगढ़ विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड-मीटर
देखिए राजगढ़ विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड-मीटर
राजगढ़। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के राजगढ़ विधानसभा सीट की। राजगढ़ मध्यप्रदेश का वह विधानसभा क्षेत्र रहा है, जिसने बड़ी सियासी हस्तियां दी हैं। यह कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का संसदीय क्षेत्र रहा है। इसके अलावा यहां संघ की भी गहरी पैठ है। फिलहाल सीट पर बीजेपी का कब्जा है और अमर सिंह यादव यहां से विधायक हैं और वो अभी से अगले चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। इस जल्दबाजी की वजह उनके क्षेत्र में महसूस की जा सकती है। दरअसल यहां से प्रदेश की सिसायत में मजबूत दखल रखने वाले कई नेता निकले लेकिन यहां अब तक मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।
राजगढ़ मध्यप्रदेश की हाईप्रोफाइल और बेहद खास सीटों में शामिल है। दरअसल यहां की राजनीति में आरएसएस की गहरी पैठ है और बीजेपी के संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन मंत्री अतुर राय की कर्मस्थली है। उधर कांग्रेस की राजनीति में यहां दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का सीधा दखल है। यह दिग्विजय सिंह और उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह का संसदीय क्षेत्र रहा है। ऐसे में मिशन 2018 सुहास भगत और दिग्विजय सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के कई बड़े नेताओं का गढ़ होने के बाद भी राजगढ़ में मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग तरस रहे हैं। यहां बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है, जिसे लेकर लोगों में जनप्रतिनिधियों के लिए काफी गुस्सा है, जो आगामी चुनाव में उनके खिलाफ भी जा सकता है।
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दरअसल उद्योगों औऱ फैक्ट्रियों के अभाव के कारण यहां बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बन गई है और रोजगार नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोग राजगढ़ से पलायन करते हैं। पथरीली जमीन और किसानों को योजनाओं का सही से लाभ ना मिल पाने की वजह से किसान भी परेशान हैं। ऐसा नहीं है कि आने वाले चुनाव में केवल रोजगार का मुद्दा ही गूंजेगा। राजगढ़ स्वास्थ्य और शिक्षा के मोर्चे पर भी फेल नजर आता है। यहां एक भी इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं है। वहीं इकलौते ट्रामा सेंटर में डॉक्टरों की कमी है, जिसकी वजह से लोगों को इलाज के लिए इंदौर या भोपाल जाना पड़ता है। महिलाओं की सुरक्षा के साथ–साथ महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। विधायक की निष्क्रियता भी आने वाले चुनाव में बड़ा मुद्दा बनना तय है।
ऐसा नहीं है कि राजगढ़ में विधायक के खिलाफ केवल गुस्सा ही नजर आया। क्षेत्र में कई लोग ऐसे लोग भी मिले, जो वर्तमान बीजेपी विधायक अमर सिंह यादव के कामकाज से खुश हैं। कुल मिलाकर राजगढ़ में लोगों की मिली जुली राय के बीच जमीनी स्तर पर सर्वे के बाद अधिकांश लोग नाराज ही दिखे। ऐसे में बेरोजगारी और स्थायी विकास के सवाल पर नेताओं को चुनाव के दौरान जवाब देना ही होगा। राजगढ़ शहर में जनता ने हर बार नए प्रत्याशी को मौका दिया जिससे विकास हो लेकिन नेताओं ने सिर्फ छलावा ही किया है।
संघ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की गहरी पैठ वाले राजगढ़ विधानसभा की जीत और हार प्रदेश की राजनीति में गहरी छाप छोड़ती है। सीट पर सौंधिया और तंवर जाति का सबसे ज्यादा प्रभाव है। दोनों ही पार्टियां जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर ही यहां चुनावी रणनीति बनाती है। दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशियों की जीत में भंवरलाल फैक्टर भी रोचक संयोग है।
राजगढ़ विधानसभा में कभी भी किसी एक दल का कब्जा नहीं रहा है। यहां की जनता ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों के प्रत्याशियों को बारी-बारी विधानसभा तक पहुंचाया है। वैसे इस सीट पर हार-जीत का फैसला भंवरलाल फैक्टर भी करता आया है। दरअसल इस सीट पर लगातार दस साल तक भंवरलाल के बेटे ही चुनाव जीतते रहे हैं। लेकिन 1998 में दिग्गी समर्थक प्रताप मंडलोई ने भंवरलाल फैक्टर के मिथक को तोड़ते हुए बीजेपी प्रत्याशी को हराया था। लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव की बीजेपी के पंडित हरिचरण तिवारी ने चुनाव जीतकर सीट को वापस बीजेपी की झोली में डाल दी।
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इसके बाद 2008 में कांग्रेस के हेमराज कल्पोनी ने बीजेपी के पंडित हरिचरण को शिकस्त दी। 2013 में बीजेपी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों को बदलते हुए नए प्रत्याशी को मौका दिया। बीजेपी ने जहां अमर यादव को टिकट दिया, वहीं कांग्रेस ने शिव सिंह चौहान को मैदान में उतारा। इसमें बाजी मारी अमर सिंह यादव ने। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 97735 वोट मिले वहीं कांग्रेस के खाते में 46524 वोट गिरे। इस तरह जीत का अंतर 51211 वोटों का रहा।
राजगढ़ विधानसभा सीट के जाति समीकरण की बात की जाए तो करीब एक लाख 95 हजार मतदाता वाली इस सीट पर सौंधिया और तंवर जाति का सबसे ज्यादा प्रभाव है। इसके अलावा गुर्जर, यादव, ब्राह्मण और महाजन वोटर्स भी चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। राजगढ़ विधानसभा की सियासी फिजा कुछ ऐसी है कि अधिकांश समय यहां से नया प्रत्याशी ही चुनाव जीतकर आया है। यही वजह है कि सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में दावेदारों के बीच जबरदस्त खींचतान हैं। बीजेपी की बात करें तो सीटिंग एमएलए अमर सिंह यादव टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं। वहीं कांग्रेस में पूर्व विधायक प्रताप सिंह मंडलोई सहित कई नेता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। ये भी तय है कि टिकट फाइनल करते समय दोनों पार्टियां। यहां की सबसे बड़ी सियासी ताकत सौंधिया और तंवर वोट बैंक का भी पूरा ध्यान रखेंगे।
राजगढ़ को मध्यप्रदेश की सियासत में हॉट सीट यूं ही नहीं कहा जाता। यहां पर सियासत की तमाम पैंतरेबाजी देखने मिलती है और आने वाले चुनाव में दावेदारी को लेकर एक बार फिर यहां राजनीति का जोड़ घटाना शुरू हो गया है। कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस की ओर से कोई भी लड़ना चाहे लेकिन टिकट का फैसला दिग्गी राजा ही तय करते हैं। कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो कई नेता टिकट के लिए ताल ठोंक रहे हैं। इस लिस्ट में पूर्व विधायक प्रताप मंडलोई का नाम सबसे आगे है। प्रताप बीजेपी विधायक की नाकामियों को गिनाकर एक बार फिर चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। कांग्रेस में इनके अलावा बापू सिंह तंवर भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं। बापू सिंह के मुताबिक स्थानीय मुद्दों पर बीजेपी विधायक ने ध्यान नहीं दिया। लोग पलायन कर रहे हैं। अगर उन्हें टिकट मिला तो इलाके से गरीबी दूर करेंगे। वहीं हेमराज कल्पोनी और मोना नागर सुस्तानी भी कांग्रेस के संभावित दावेदार हैं।
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कांग्रेस में जहां टिकट मांगने वालों की होड़ लगी है तो बीजेपी आलाकमान के लिए भी यहां कैंडिडेट का चयन करना इतना आसान नहीं रहने वाला। हालांकि बीजेपी से टिकट की रेस में सीटिंग एमएलए अमर सिंह यादव सबसे आगे हैं, लेकिन राजगढ़ में लंबे समय से कोई भी विधायक दो बार लगातार रिपीट नहीं हुआ। ऐसे में कई नेता टिकट के लिए अपना दावा कर रहे हैं। कुल मिलाकर राजगढ़ में दावेदारों की भरमार है और उसके साथ ही दावे और वादों की भी भीड़ है। ऐसे में आम मतदाता के सामने तो सही प्रत्याशी को चुनने की चुनौती होगी। राजगढ़ आएसएस और दिग्विजय सिंह का गढ़ है। कांग्रेस में टिकिट से लेकर जिताने तक का जिम्मा दिग्गी का है तो यहां भाजपा की ताकत संघ की सक्रियता है।
वेब डेस्क, IBC24

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