देखिए जावद विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
देखिए जावद विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड
नीमच। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के जावद विधानसभा सीट की। फिलहाल सीट पर बीजेपी का कब्जा है और ओमप्रकाश सकलेचा यहां से विधायक हैं, जो यहां जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। जावद विधानसभा क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय विरेंद्र सकलेचा का गृह नगर रहा है और ओम प्रकाश सकलेचा उनके पुत्र हैं। यहां के जाति समीकरण भी चुनावी नतीजों को खासे प्रभावित करते हैं।
ओम प्रकाश सकलेचा पिछले 15 सालों से जावद विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी की सियासत का चेहरा रहे हैं और मुमकिन है कि अगले चुनाव में भी यहां बीजेपी अपनी चुनावी रणनीति इन्हीं को केंद्र में रखकर तैयार करे। कांग्रेस अगर पिछले तीन विधानसभा चुनाव में यहां वनवास काट रही है तो उसकी सबसे बड़ी वजह बीजेपी विधायक ओम प्रकाश सकलेचा हैं।
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दरअसल जावद में 1998 में कांग्रेस के टिकट पर घनश्याम पाटीदार यहां आखिरी बार चुनाव जीते थे। लेकिन 2003 में ओमप्रकाश सकलेचा यहां पहली बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और 26 हजार 635 वोटों से अपने प्रतिद्वंदी को हराने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2008 में भी बीजेपी ने ओमप्रकाश सकलेचा पर अपना भरोसा जताया, जिन्होंने कांग्रेस के राजकुमार अहिर को शिकस्त दी। 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने तीसरी बार ओमप्रकाश सकलेचा को टिकट दी। वहीं कांग्रेस के टिकट नहीं देने पर राजकुमार अहिर निर्दलीय चुनाव लड़े, जिसमें ओमप्रकाश सकलेचा ने 14651 वोटों से बाजी मारी।
जावद में जाति समीकरण की बात करें तो यह काफी अहम भूमिका निभाता है। यहां धाकड़ जाति के 30 फीसदी वोटर्स यहां निर्णायक साबित होते हैं। इसके अलावा आदिवासी 17 फीसदी, पाटीदार 7 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी, राजपूत 6 फीसदी, और अल्पसंख्यक 18 फीसदी वोटर हैं। वहीं 8 फीसदी गुर्जर, बंजारा, धनगर सहित अन्य मतदाता हैं।
मध्यप्रदेश में चुनावी काउंटडाउन शुरू हो गया है। सियासी पार्टियों से लेकर सियासतदान सभी एक्टिव मोड में आ गए हैं। ऐसे में जावद विधानसभा कांग्रेस जहां अपने 15 साल के वनवास को खत्म करने के लिए जोर लगा रही है। वहीं बीजेपी विधायक ओमप्रकाश सकलेचा चौका लगाने का दंभ भर रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि जावद में कौन जीत का जश्न मनाता है।
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जावद विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास समृद्ध रहा है। इसके बावजूद यहां विकास की रफ्तार धीमी है। बीजेपी विधायक ने चुनाव से पहले यहां रोज़गार देने और किसानों की समस्याओं को दूर करने का वादा किया था। लेकिन उनके कार्यकाल में इसके दिशा में कोई खास उपलब्धि नजर नहीं आती। ऐसे में मिशन 2018 की जंग बीजेपी विधायक के लिए चुनौती भरा रहेगा। ये तो तय है।
अरावली की पहाड़ियों पर बसा जावद विधानसभा क्षेत्र, पहली नजर में बेहद खूबसूरत नजर आता है। नीमच जिले में आने वाली जावद मध्यप्रदेश के आखिरी छोर पर स्थित है और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। ये इलाका अफीम और लहसुन की खेती के लिए मशहूर है लेकिन इस गौरवशाली शहर की तस्वीर बीते कुछ सालों में काफी बदल गई है। दरअसल यहां लगातार गिरता भू-जल स्तर सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। सिंचाई के लिए दशकों से कई बांध बनने की बाट जोह रहे हैं, जबकि कई ऐलानों के बाद भी चंबल का पानी आज तक यहां नहीं पहुंचा है। इसे लेकर लोगों में नेताओं को लेकर काफी गुस्सा है। पानी के अलावा रोजगार भी यहां आनेवाले चुनाव में प्रमुख मुद्दा होगा। यहां सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की यूनिट लंबे समय से बंद है। जबकि निजी सीमेंट उद्योग धड़ल्ले से खनिज का दोहन कर रहे हैं। लेकिन निजी कंपनियां स्थानीय लोगों को रोजगार देने में आनाकानी करती है। चिकित्सा व्यवस्था भी बदहाल है। यहां मरीजों का इलाज करने के बजाय उनका रेफर कर दिया जाता है। उच्च शिक्षा के लिए भी यहां के युवाओं को बाहर रूख करना पड़ता है।
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कृषि प्रधान इलाका होने के बावजूद जावद में अब तक फूड प्रोसेसिंग इकाईयां अब तक अमल में नहीं आई हैं। इसके अलावा अफीम की खरीदी बंद होने और उपज का सही दाम नही मिलने से किसान भी आंदोलन कर चुके हैं। डोडा चुरा की सरकारी नीलामी बंद होने के बाद मादक पदार्थ और अफीम तस्करी एक बडी समस्या बन रही है। उधर समस्याएं सुलझने के बजाए सियासत के जाल में उलझती ज्यादा नजर आती हैं। जाहिर है चुनाव से पहले राजनीतिक दल और सियासतदान बड़े–बड़े वादे करते हैं। चुनावी बिसात बिछते ही क्षेत्र में सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन चुनाव बीतने के बाद उनकी निष्क्रियता सबसे बड़ा मुद्दा बन जाता है। चुनावी साल है तो जावद में सब अपने हिसाब से इन मुद्दों को भुनाने की कोशिश में लग गए हैं।
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, जावद में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। बीजेपी यहां पिछले 15 वर्षों से अंगद की तरह पैर जमाए हुए है और जीत की हैट्रिक लगा चुके ओम प्रकाश सकलेचा एक बार फिर टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं। लेकिन इस बार नए चेहरे भी भाग्य आजमाने की तैयारी में हैं। वहीं कांग्रेस में भी टिकट के लिए कई दावेदार के नाम सामने आए हैं। मगर पार्टी स्तर पर किसी के नाम को लेकर पत्ते नहीं खोले गए हैं।
पिछले कुछ दिनों में जावद विधायक ओमप्रकाश सकलेचा की व्यस्तता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। जाहिर है कि वे चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। जावद से जीत की हैट्रिक लगा चुके बीजेपी विधायक चौका लगाने की रणनीति बना रहे हैं। उनका दावा है कि अपने कार्यकाल में उन्होंने अच्छा काम किया है, लिहाजा पार्टी उन्हें इस बार भी मौका देगी।
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ओम प्रकाश सकलेचा प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री विरेंद्र सकलेचा के पुत्र हैं और उन्होंने अपने कार्यकाल में सोलर पावर प्रोजेक्ट, स्मार्ट क्लास प्रोजेक्ट जैसी कई बड़ी सौगातें दी। हालांकि बीजेपी विधायक पर भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी के आरोप पर लगातार रहे हैं। इन सबके बावजूद ओमप्रकाश सकलेचा का दावा सबसे मजबूत नजर आ रहा है। हालांकि बीजेपी से टिकट के दावेदारों में पूरण अहिर का नाम भी सामने आ रहा है। छात्र राजनीति से अपनी करियर शुरू करने वाले पूरण युवाओं में काफी लोकप्रिय और सक्रिय हैं। वहीं वर्तमान में इनकी पत्नी जनपद पंचायत जावद की अध्यक्ष हैं। इसके अलावा जैन समाज से प्रदीप जैन भी संभावित उम्मीदवार हैं। संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले प्रदीप जैन पूर्व विधायक दलिचचंद्र जैन के पुत्र हैं।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस जावद में हर पैंतरा फूंक-फूंक कर रख रही है। लेकिन टिकट दावेदारों की बात की जाए तो जावद में कई नेता अपनी बारी के इंतजार में हैं। इस सूची में सबसे पहला नाम राजकुमार अहिर का है। 2008 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले राजकुमार को पिछले चुनाव में कांग्रेस ने मौका नहीं दिया था, जिससे नाराज होकर वो निर्दलीय चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस उनपर एक बार फिर दांव लगा सकती है। राजकुमार अहिर के अलावा कांग्रेस में कई नेता टिकट के लिए सक्रिय नजर आ रहे हैं। इसमें धाकड़ समाज से आने वाले समंदर पटेल भी शामिल हैं। सिंधिया समर्थक समंदर को जाति समीकरण का फायदा मिल सकता है। जाहिर है दोनों की तरफ से दावदारों की लंबी लिस्ट है और इस लिस्ट में काट–छांट करना ही पार्टी के आलाकमान का सबसे बड़ा सिरदर्द है। विधायक के प्रति बढ़ रहे आक्रोश को देखते हुए बीजेपी के लिए पुराने चेहरे पर दांव लगाना इतना आसान नहीं होगा। उधर हार की हैट्रिक लगा चुकी कांग्रेस को भी ऐसे चेहरे की तलाश है जो उसे जिता सके।
वेब डेस्क, IBC24

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