पुणे, 21 दिसंबर (भाषा) ‘गगनयात्री’ ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने रविवार को कहा कि भारत में ‘अंतरिक्ष यात्री’ अब एक मान्यताप्राप्त पेशा है, जो युवा प्रतिभाओं के लिए अनगिनत अवसर प्रदान करता है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के पुणे पुस्तक महोत्सव के अवसर पर आयोजित पुणे साहित्य महोत्सव में शुक्ला ने विद्यार्थियों से चंद्रमा पर उतरने का लक्ष्य रखने का आह्वान किया और कहा कि ‘‘जब आप आएंगे, तो मैं आपसे प्रतिस्पर्धा करने के लिए वहां मौजूद रहूंगा।’’
अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में देश द्वारा की जा रही व्यापक प्रगति की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘बहुत से लोग शायद यह सोच रहे होंगे कि भारत अंतरिक्ष अन्वेषण में इतना निवेश क्यों कर रहा है। भारत अपने स्वयं के मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन, गगनयान पर काम कर रहा है, जिसका हम हिस्सा हैं। इस मिशन का उद्देश्य एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में भेजना और उसे सुरक्षित वापस लाना है।’’
शुक्ला ने कहा, ‘‘इसके अलावा, हम अपना खुद का भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की भी योजना बना रहे हैं। भारत का लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर उतरना है। हो सकता है कि आज यहां बैठा कोई व्यक्ति, चाहे वह लड़की हो या लड़का, एक दिन चंद्रमा की सतह पर कदम रखे। जब आप आएंगे, तो मैं आपके साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए वहां मौजूद रहूंगा।’’
अपनी अंतरिक्ष यात्रा का वर्णन करते हुए शुक्ला ने बताया कि जब विंग कमांडर राकेश शर्मा ने 1984 में अंतरिक्ष यात्रा की थी, तब उनका जन्म भी नहीं हुआ था।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा जन्म 1985 में हुआ था। मैं बचपन से ही ये कहानियां सुनता आया हूं। लेकिन अंतरिक्ष यात्री बनने का ख्याल मेरे मन में कभी नहीं आया क्योंकि उस समय भारत में ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं था। परंतु आज जब मैं विद्यार्थियों से बात करता हूं, तो लगभग हर बातचीत में कोई न कोई मुझसे पूछता है कि अंतरिक्ष यात्री कैसे बना जा सकता है।’’
शुक्ला ने सभा में उपस्थित लोगों को प्रोत्साहित करते हुए कहा, “अब अंतरिक्ष यात्री बनना एक पेशा है। यह संभव है। यह अब कोई सपना नहीं रहा। कोई भी सचमुच अंतरिक्ष यात्री बन सकता है, और यह आप सभी के लिए खुला है। कड़ी मेहनत करें। अगर मैं यह कर सकता हूं तो आप भी कर सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि जब कोई इस ग्रह को छोड़ता है, तो उसकी पहचान उसी ग्रह से जुड़ी होती है जहां से वह आया होता है।
ग्रुप कैप्टन शुक्ला इस साल 25 जून को प्रक्षेपित मिशन के जरिए अंतरिक्ष स्टेशन पर जाने वाले पहले भारतीय बने। अठारह दिन के प्रवास के बाद वह 15 जुलाई को पृथ्वी पर लौट आए।
भाषा राजकुमार नेत्रपाल
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