शोक संतप्त माता-पिता मुआवजा पाने के लिए रेल हादसे का झूठा दावा नहीं करेंगे: अदालत
शोक संतप्त माता-पिता मुआवजा पाने के लिए रेल हादसे का झूठा दावा नहीं करेंगे: अदालत
मुंबई, 21 नवंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक शोक संतप्त दंपति को बड़ी राहत देते हुए शुक्रवार को कहा कि रेल हादसे में अपने जवान बेटे को खोने वाले माता-पिता ऐसी दुखद घटना का इस्तेमाल मुआवजे का झूठा दावा करने के लिए नहीं करेंगे।
इसी के साथ न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ ने जयदीप तांबे के माता-पिता को मुआवजा राशि देने का निर्देश दिया। जयदीप की 2008 में मुंबई में एक रेल हादसे में मौत हो गई थी। उस वक्त वह 17 साल का था।
उच्च न्यायालय ने रेलवे दावा न्यायाधिकरण के जनवरी 2016 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुआवजे के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि पीड़ित वैध यात्री था और उसकी मौत रेल हादसे में हुई।
दंपति ने न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि जयदीप अपने दोस्तों के साथ पश्चिमी रेलवे की उपनगरीय लाइन पर जोगेश्वरी से लोअर परेल जा रहा था, तभी वह अत्यधिक भीड़ के कारण एल्फिन्स्टन और लोअर परेल स्टेशन के बीच पटरी पर गिर गया।
दंपति के मुताबिक, जयदीप के दोस्त लोअर परेल में उतरे और स्टेशन अधिकारियों को घटना की सूचना देने के बजाय, घटनास्थल पर पहुंचकर उसे इलाज के लिए परेल स्थित केईएम अस्पताल ले गए। हालांकि, अस्पताल में चिकित्सकों ने जयदीप को मृत घोषित कर दिया।
दंपति के अनुसार, इसके बाद जयदीप के दोस्तों ने अस्पताल में मौजूद पुलिस अधिकारी को हादसे की सूचना दी।
रेलवे अधिकारियों ने दंपति के मुआवजे संबंधी दावे का विरोध करते हुए दलील दी कि हादसे का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि मामले में दंपति के दावे पर संदेह करने का कोई कारण नजर नहीं आता है।
उसने कहा, “युवा बेटे की मौत से माता-पिता को होने वाली क्षति अकल्पनीय है और इसका आकलन आर्थिक दृष्टि से नहीं किया जा सकता है। जब ऐसी दुखद और अप्रिय घटना उस समय होती है, जब बेटा भगवान गणेश के दर्शन के लिए जा रहा होता है, तो आमतौर पर माता-पिता ऐसी घटना का फायदा रेलवे अधिनियम के तहत दावा करने तथा मामूली राशि के लिए दशकों तक मुकदमा लड़ने के लिए नहीं उठाते।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि इसके अलावा, रेलवे अधिनियम एक लाभकारी कानून है, और इसलिए यह तय करते समय परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर विचार किया जा सकता है कि पटरियों पर कोई “अप्रिय घटना” घटी थी या नहीं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि माता-पिता हादसे की तारीख से छह फीसदी ब्याज के साथ चार लाख रुपये का मुआवजा पाने के हकदार हैं।
उसने कहा, “हालांकि, अगर कुल राशि आठ लाख रुपये से अधिक है, तो अपीलकर्ता/आवेदक केवल आठ लाख रुपये के हकदार होंगे।”
भाषा पारुल अविनाश
अविनाश

Facebook



