Mumbai High Court: सिर्फ आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र से भारत का नागरिक नहीं बन जाता, जानें हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

Mumbai High Court: सिर्फ आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र से भारत का नागरिक नहीं बन जाता, जानें हाईकोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

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  • Publish Date - August 12, 2025 / 11:46 PM IST,
    Updated On - August 12, 2025 / 11:49 PM IST

Bombay High Court | Photo Credit: File

HIGHLIGHTS
  • मुंबई हाईकोर्ट का बड़ा बयान
  • "आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी भारतीय नागरिक होने का प्रमाण नहीं"

मुंबई: Mumbai High Court मुंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि कोई व्यक्ति सिर्फ आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज रखने से भारत का नागरिक नहीं बन जाता। अदालत ने यह टिप्पणी कथित तौर पर बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए की। जमानत अर्जी दाखिल करने वाले उक्त व्यक्ति पर जाली और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारत में एक दशक से भी अधिक समय तक रहने का आरोप है। न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने कहा कि नागरिकता अधिनियम के प्रावधान यह निर्धारित करते हैं कि भारत का नागरिक कौन हो सकता है और नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है तथा आधार कार्ड, पैन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज केवल पहचान या सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं।

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Mumbai High Court अदालत ने कथित बांग्लादेशी नागरिक बाबू अब्दुल रऊफ सरदार को जमानत देने से इनकार कर दिया, जो बिना वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के अवैध रूप से भारत में दाखिल हुआ था। उसने कथित तौर पर फर्जीवाड़ा कर आधार कार्ड, पैन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और भारतीय पासपोर्ट जैसे दस्तावेज बनवा लिये थे। न्यायमूर्ति बोरकर ने रेखांकित किया कि 1955 में संसद ने नागरिकता अधिनियम पारित किया, जिसने नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक स्थायी और पूर्ण प्रणाली बनाई।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरी राय में, 1955 का नागरिकता अधिनियम आज भारत में राष्ट्रीयता से जुड़े सवालों पर निर्णय लेने के लिए मुख्य और नियंत्रक कानून है। यह वह कानून है, जो यह निर्धारित करता है कि कौन नागरिक हो सकता है, नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है और किन परिस्थितियों में इसे खोया जा सकता है।’’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज होने से कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं बन जाता। ये दस्तावेज पहचान या सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं, लेकिन ये नागरिकता अधिनियम में निर्धारित नागरिकता की बुनियादी कानूनी आवश्यकताओं को समाप्त नहीं करते।’’

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पीठ ने कहा कि कानून वैध नागरिकों और अवैध प्रवासियों के बीच अंतर स्पष्ट करता है। अदालत ने कहा इसमें अवैध प्रवासियों की श्रेणी में आने वाले लोगों को नागरिकता अधिनियम में उल्लिखित ज्यादातर कानूनी मार्गों के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करने से रोक दिया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘यह अंतर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की संप्रभुता की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के लिए निर्धारित लाभ और अधिकार उन लोगों द्वारा गलत तरीके से हासिल नहीं किये जाएं, जिनके पास भारत में रहने का कोई कानूनी दर्जा नहीं है।’’

अदालत ने सरदार को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि उसके दस्तावेजों का सत्यापन और जांच अब भी जारी है, तथा पुलिस को यह डर है कि जमानत मिलने पर वह फरार हो सकता है, जो वास्तविक आशंका है। पीठ ने कहा कि मामले में आरोप छोटे नहीं हैं और यह सिर्फ बिना अनुमति के भारत में रहने या निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने का मामला नहीं है, बल्कि यह भारतीय नागरिक होने का दिखावा करने के उद्देश्य से फर्जी और जाली पहचान दस्तावेज बनाने और उनका उपयोग करने का मामला है।

सरदार के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम और ‘फॉरेनर्स ऑर्डर’ के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया। सरदार ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया था कि वह भारत का वास्तविक नागरिक है और यह साबित करने के लिए कोई निर्णायक या विश्वसनीय सबूत नहीं है कि वह बांग्लादेश का नागरिक है। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि उसके दस्तावेज जो आयकर और व्यवसाय पंजीकरण से संबंधित है और वह 2013 से मुंबई के पड़ोसी ठाणे जिले में रह रहा है।

अदालत ने कहा कि जब भारत का संविधान तैयार किया जा रहा था, तब देश ऐतिहासिक परिवर्तन से गुजर रहा था और उस समय विभाजन के कारण लोगों का बड़े पैमाने पर सीमा पार आवागमन हुआ, जिससे यह निर्णय लेने की आवश्यकता महसूस हुई कि नए राष्ट्र के नागरिक के रूप में किसे स्वीकार किया जाए। पीठ ने कहा कि इसे ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने नागरिकता तय करने की व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया। अदालत ने रेखांकित किया संविधान में ऐसे प्रावधान रखे गए थे, जिनसे गणतंत्र के आरंभ में ही यह स्पष्ट हो गया था कि किसे नागरिक माना जाएगा तथा इसने निर्वाचित संसद को भविष्य में नागरिकता पर कानून बनाने की शक्तियां प्रदान की थीं।

मुंबई हाईकोर्ट ने किस मामले में यह टिप्पणी की?

अदालत ने यह टिप्पणी एक कथित बांग्लादेशी नागरिक की जमानत याचिका खारिज करते समय की, जो फर्जी दस्तावेजों के साथ भारत में रह रहा था।

क्या आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी नागरिकता साबित करते हैं?

नहीं, ये सिर्फ पहचान और सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए हैं, नागरिकता का प्रमाण नहीं।

भारत में नागरिकता का मुख्य कानून कौन सा है?

1955 का नागरिकता अधिनियम, जो तय करता है कि कौन भारत का नागरिक हो सकता है और नागरिकता कैसे प्राप्त या खोई जा सकती है।