नजरबंदी के लिए चुने गये परिसर के बारे में ‘सुरक्षा चिंताओं’ के कारण नवलखा की रिहाई में देरी

नजरबंदी के लिए चुने गये परिसर के बारे में ‘सुरक्षा चिंताओं’ के कारण नवलखा की रिहाई में देरी

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:15 PM IST
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Published Date: November 16, 2022 8:20 pm IST
नजरबंदी के लिए चुने गये परिसर के बारे में ‘सुरक्षा चिंताओं’ के कारण नवलखा की रिहाई में देरी

मुंबई, 16 नवंबर (भाषा) एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी कार्यकर्ता गौतम नवलखा की रिहाई में बुधवार को एक बार फिर देरी हुई क्योंकि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने नवी मुंबई में एक परिसर के बारे में सुरक्षा चिंताओं को उठाया जहां उन्होंने अपनी नजरबंदी के दौरान रहने का प्रस्ताव रखा था।

अभिनेत्री सुहासिनी मुले दिन के दौरान एनआईए के विशेष न्यायाधीश राजेश कटारिया के समक्ष पेश हुई और नवलखा के लिए जमानतदार बनीं जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।

न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘‘क्योंकि अभियुक्त की सुरक्षा के कारण अभियुक्त को परिसर में रखने के लिए अभियोजन पक्ष (एनआईए) की ओर से कड़ी आपत्ति है, इसलिए आरोपी को उनके द्वारा बताये गये परिसर में नजरबंद रखना उचित नहीं होगा।’’

अदालत ने कहा कि इसके अलावा, जैसा कि विशेष लोक अभियोजक ने यह भी दलील दी है कि अभियोजन पक्ष उच्चतम न्यायालय में परिसर के मूल्यांकन की एक रिपोर्ट दायर करने जा रहा है और शीर्ष अदालत के अगले निर्देश तक आरोपी को वहां स्थानांतरित करना उचित नहीं होगा।

नवलखा (70) का दावा है कि वह अप्रैल 2020 से जेल में हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 10 नवंबर को उनकी याचिका पर उन्हें एक महीने घर में नजरबंद रखने की अनुमति दी थी और कहा था कि 48 घंटे के अंदर आदेश का पालन होना चाहिए। लेकिन वह अब भी जेल में हैं क्योंकि रिहाई की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो सकीं।

‘भुवन शोम’ और ‘हू तू तू’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकीं मुले (71) एनआईए के मामलों के लिए विशेष न्यायाधीश कटारिया के समक्ष पेश हुईं और कहा कि वह नवलखा के लिए जमानतदार के रूप में प्रस्तुत हुई हैं।

जमानत में यह जिम्मेदारी ली जाती है कि जेल से रिहा होने वाला व्यक्ति निर्देश मिलने पर अदालत में पेश होगा।

मुले ने कहा कि वह 30 साल से ज्यादा समय से नवलखा को जानती हैं क्योंकि नवलखा दिल्ली से हैं जहां वह कुछ समय रही हैं।

मुले ने अदालत में यह भी कहा कि वह अतीत में पहले किसी के लिए जमानतदार के रूप में प्रस्तुत नहीं हुईं और यह अदालत में उनकी पहली पेशी है।

मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित ‘एल्गार परिषद’ सम्मेलन में दिये गये कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस का दावा है कि भाषणों से अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क गयी थी।

पुणे पुलिस ने दावा किया था कि प्रतिबंधित नक्सली संगठनों से जुड़े लोगों ने सम्मेलन का आयोजन किया था।

भाषा

देवेंद्र माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)