हमला होने पर सबसे पहले मां को बचाने का ख्याल दिमाग में आया: पहलगाम हमला पीड़ित

हमला होने पर सबसे पहले मां को बचाने का ख्याल दिमाग में आया: पहलगाम हमला पीड़ित

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  • Publish Date - April 26, 2025 / 10:32 AM IST,
    Updated On - April 26, 2025 / 10:32 AM IST

(अनन्या गुप्ता)

मुंबई, 26 अप्रैल (भाषा) पहलगाम में आतंकवादियों की गोलीबारी में अपने पिता को खोने वाले 20 वर्षीय हर्षल लेले ने कहा कि हमले के दौरान उन्होंने अपने पिता की तरह सोचा और उनके मन में सबसे पहला ख्याल अपनी मां को बचाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाने का आया।

जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए थे। जम्मू-कश्मीर में छुट्टियां बिताने का फैसला लेले और उनके रिश्तेदारों के लिए दुखद साबित हुआ। इस हमले में हर्षल के पिता संजय लेले (52) और उनके रिश्तेदार हेमंत जोशी (45) एवं अतुल मोने (43) मारे गए।

हर्षल ने कहा, ‘‘हमने अभी दोपहर का खाना खाया ही था कि हमें गोलियों की आवाज सुनाई दी।’’

हमले के दौरान हर्षल गोली लगने से घायल हो गए और एक गोली उनके पास से निकलकर उनके पिता को लगी।

उन्होंने कहा, ‘‘अपनी मां को बचाना मेरी जिम्मेदारी था। मैंने खुद को अपने पिता की जगह पर रखकर सोचा। उनके मन में पहला विचार मां को बचाने का आता, इसलिए मैंने वही किया।’’

हर्षल ने बताया कि बंदूकधारियों ने पुरुषों को उनके परिवारों के सामने गोली मार दी।

उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां आंशिक लकवे से पीड़ित हैं, इसलिए उन्हें चलने में दिक्कत होती है। मैं और मेरे रिश्ते के भाई ध्रुव जोशी उन्हें उठाकर ऊबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए भागे, वह कई जगहों पर फिसल गईं और चोटिल हो गईं, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं था।’’

हर्षल ने बताया कि आखिरकार उन्हें वह घुड़सवार मिल गया जो परिवारों को उस जगह लेकर गया था जहां हमला हुआ और उसने उनकी मां को अपनी पीठ पर लादकर उन्हें बाहर निकाला।

उन्होंने कहा कि सुरक्षित जगह तक पहुंचने में उन्हें तीन घंटे से अधिक का समय लगा।

हर्षल ने कहा, ‘‘जब हमने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों को हमलास्थल की ओर जाते देखा तो हमें उम्मीद थी कि वे मेरे पिता और अन्य रिश्तेदारों को जीवित लेकर आएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’’

भाषा

सिम्मी नेत्रपाल

नेत्रपाल