नितिन गडकरी को बीजेपी ने क्यों किया पीछे? क्या है फडणवीस के प्रमोशन की रणनीति? जानिए

मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में अहम भूमिका निभाने वाले मंत्री नितिन गडकरी को भला कौन नहीं जानता, देशभर में फैले राष्ट्रीय राजमार्गों के जाल को लेकर गडकरी की तारीफ तो उनके विरोधी भी करते रहे हैं।

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  • Publish Date - August 18, 2022 / 02:49 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:40 PM IST

Nitin Gadkari and devendra Fadnavis: नई दिल्ली। बीजेपी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था केंद्रीय संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी की विदाई हो गई है, यह फैसला भाजपा की भावी रणनीति से तो जुड़ा है ही, लेकिन यह पार्टी के अंदरूनी घटनाक्रमों को भी प्रभावित करने वाला है। नया घटनाक्रम पार्टी के भीतर उनके राजनीतिक वजूद को तो प्रभावित करेगा ही, साथ ही उनकी चुनावी राजनीति पर भी प्रभाव डालेगा।

महाराष्ट्र की राजनीति से 2009 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर राष्ट्रीय फलक पर उभरे नितिन गडकरी अब भाजपा के केंद्रीय संगठन में अहम भूमिका से बाहर हैं। वह केंद्र सरकार में मंत्री हैं और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं, लेकिन केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से अब बाहर रहेंगे। इससे पार्टी के भीतर उनका कद भी प्रभावित हुआ है।

अलग सोच रखते हैं गडकरी?

Nitin Gadkari and devendra Fadnavis: नितिन गडकरी अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं और राजनीति को लेकर उनकी अपनी अलग सोच भी जगजाहिर होती रही है। हाल में उन्होंने एक कार्यक्रम में मौजूदा राजनीति पर सवाल खड़े किए थे और संकेत दिए थे कि अब राजनीति उनके लिए बहुत ज्यादा रुचिकर नहीं है। हालांकि, गडकरी को भाजपा संगठन में कई बदलाव के लिए भी जाना जाता है। अपनी अलग शैली के कारण कई बार वह सबके साथ समन्वय बनाने में सफल भी नहीं रहे।

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप में उनकी भूमिका की सबसे ज्यादा सराहना की गई। देशभर में फैले राष्ट्रीय राजमार्गों के जाल को लेकर गडकरी की तारीफ उनके विरोधी भी करते हैं। लेकिन पार्टी के अंदरूनी समीकरणों में उनकी दिक्कतें बनी रहीं। अपने बेलौस अंदाज़ से भी वह विवादों में भी रहे।

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पार्टी ने दिया ये संदेश

केंद्रीय नेतृत्व ने नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल नहीं कर एक बड़ा संदेश दिया है कि पार्टी व्यक्ति के बजाय विचारधारा पर केंद्रित है। इसके विस्तार में जो भी जरूरी होगा वह किया जाएगा। इसके पहले पार्टी ने मार्गदर्शक मंडल गठित कर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पार्टी की सक्रिय राजनीति से अलग कर उसमें शामिल किया था।

पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह से विचारधारा के एजेंडे को बीते सालों में तेजी से लागू किया, इसका असर सरकार से लेकर संगठन तक देखने को मिला है। इसमें किसी एक नेता की बात न की जाए तो व्यक्ति की जगह विचारधारा ही हावी दिखी।

महाराष्ट्र की सियासत पर होगा असर

इस कदम का महाराष्ट्र की राजनीति में भी असर पड़ेगा। पार्टी में गडकरी की जगह उनके ही गृह नगर नागपुर से आने वाले देवेंद्र फडणवीस का कद बढ़ा है। हाल ही में जब शिवसेना के बागी गुट को के साथ भाजपा ने राज्य में सरकार बनाई थी, तब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने उनको उप मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी किया। अब केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल कर पार्टी ने उनके कद को बड़ा किया है।

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आरएसएस से दोनों की है नजदीकी

गडकरी और फडणवीस दोनों ही आरएसएस के करीबी माने जाते हैं। ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिया गया कोई भी फैसला में संघ की सहमति भी शामिल होगी। हाल में हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने अपने संगठन को अगले 25 सालों की जरूरतों के मुताबिक तैयार करने का आह्वान किया था। उसमें नए नेताओं को भी आगे बढ़ाना है। यही वजह है कि भूपेंद्र यादव और देवेंद्र फडणवीस जैसे नेताओं को पार्टी में काफी महत्व दिया गया है।