Apara Ekadashi Vrat Katha : अपरा एकादशी कब है? क्यों इस कथा को पढ़े बिना व्रत माना जाता है अधूरा..? जाने इस कथा का महत्त्व.. | Apara Ekadashi Vrat Katha

Apara Ekadashi Vrat Katha : अपरा एकादशी कब है? क्यों इस कथा को पढ़े बिना व्रत माना जाता है अधूरा..? जाने इस कथा का महत्त्व..

When is Apara Ekadashi? Why is the fast considered incomplete without reading this story? Know the importance of this story..

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Modified Date: May 20, 2025 / 02:41 PM IST
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Published Date: May 20, 2025 2:41 pm IST

Apara Ekadashi Vrat Katha : हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस वर्ष 23 मई 2025 को अपरा एकादशी मनाई जाएगी। ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है।
माघ में सूर्य के मकर राशि में होने पर प्रयाग में स्नान, शिवरात्रि में काशी में रहकर व्रत, गया में पिंडदान, वृष राशि में गोदावरी में स्नान, बद्रिकाश्रम में भगवान केदार के दर्शन या सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान और दान के बराबर जो फल मिलता है, वह अपरा एकादशी के मात्र एक व्रत से मिल जाता है। अपरा एकादशी को उपवास करके भगवान वामन की पूजा से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। इसकी कथा सुनने और पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। यह एकादशी हर तरह के पापों को मिटाने में सक्षम मानी गई है। अपरा एकादशी को उपवास करके भगवान वामन की पूजा से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।

Apara Ekadashi Vrat Katha : आईये यहाँ प्रस्तुत है अपरा एकादशी व्रत कथा

इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

Apara Ekadashi Vrat Katha

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को ज्ञानचक्षु से देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

Apara Ekadashi Vrat Katha

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को सप्रेम धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

Apara Ekadashi Vrat Katha

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

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