Kark Sankranti 2023: बेहद शुभ है इस साल की कर्क संक्रांति, जानें मुहूर्त और महत्व
Sun zodiac sign will change in this Muhurta सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में गोचर करते हैं तो उसे कर्क संक्रांति कहा जाता है।
Sun zodiac sign will change in this Muhurta
Sun zodiac sign will change in this Muhurta : सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहा जाता है। वैसे तो साल में 12 संक्रांति होती हैं। जिसमें मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति का विशेष महत्व है। सावन माह की संक्रांति को कर्क संक्रांति कहा जाता है। इस दिन सूर्य मिथुन राशि से निकल कर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। इस साल कर्क संक्रांति 16 जुलाई यानी आज के दिन है। सनातन धर्म में सूर्य की पूजा के लिए संक्रांति का दिन बहुत ही उत्तम माना जाता है।
क्या है कर्क संक्रांति?
संक्रांति का मतलब होता है सूर्य का राशि परिवर्तन। जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में गोचर करते हैं तो उसे कर्क संक्रांति कहा जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार कर्क संक्रांति से सूर्य की दक्षिण यात्रा शुरू हो जाती है यानी कि सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन होते हैं। कर्क संक्रांति को श्रावण संक्रांति भी कहते हैं। सूर्य के दक्षिणायन होने से रात लंबी और दिन छोटे हो जाते हैं। 16 जुलाई 2023 रविवार निवार को कर्क संक्रांति मनाई जाएगी।
कर्क संक्रांति 2023 पुण्य काल
कर्क संक्रांति 2023 मुहूर्त
कर्क संक्रांति पुण्य काल – दोपहर 12 बजकर 27 से रात 07.21 कर्क संक्रान्ति महा पुण्य काल – शाम 05.03 – रात 07.21 कर्क संक्रांति 2023 का महापुण्य काल
कर्क संक्रांति का महापुण्य काल 2 घंटे 18 मिनट का होगा। 16 जुलाई को कर्क संक्रांति का महापुण्य काल शाम 05 बजकर 03 मिनट से प्रारंभ हो रहा है और यह शाम 07 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।
कर्क संक्रांति महत्व
कर्क संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से समस्त रोगों का नाश होता है और दोष दूर होते हैं। ग्रंथों में सूर्य पंचदेवों में प्रथम माने जाते हैं। सूर्य की उपासना से बल, बुद्धि, सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति और मान-सम्मान प्राप्त होता है। कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है ऐसे में सूर्य का तेज कम हो जाता है। कहते हैं कि सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने के बाद देवताओं की रात्रि शुरू हो जाती है और असुरी शक्तियों सक्रिय हो जाती है। ऐसे में सूर्य देव की पूजा, मंत्र जाप आदि करने से नकारात्मक शक्तियों से बचा जा सकता है।
कर्क संक्रांति पर सूर्य के दक्षिणायन का महत्व
कर्क संक्रांति से सूर्य का दक्षिणायन 6 महीने तक चलता है। इस दौरान सूर्य कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में गोचर करते हैं। सूर्य जब दक्षिणायन में होते हैं तब शुभ कार्य विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, गृहप्रवेश आदि वर्जित माने जाते हैं, ऐसा करने पर उसका शुभ फल नहीं मिलता।
क्या होता है सूर्य का दक्षिणायन
• सूर्यदेव के उत्तरायण और दक्षिणायन होने से मौसम में भी बदलाव होता है। कर्क संक्रांति से मानसून की शुरुआत हो जाती है।
•दक्षिणायन की अवधि छह महीने की होती है. मान्यता है कि दक्षिणायन से देवताओं की रात्रि शुरू हो जाती है।
•माना जाता है कि सूर्य के दक्षिणायन में जाने से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव तेज हो जाता है। शुभ शक्तियां क्षीण हो जाती हैं। यही वजह है कि दक्षिणायन में पूजा-पाठ, दान, तप का विशेष महत्व होता है।
•कर्क संक्रांति से दक्षिणायन की शुरुआत होती है जो मकर संक्रांति पर समाप्त होती हैं जिसके बाद उत्तरायण शुरू हो जाता है।
•दक्षिणायन के दौरान सूर्य कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में गोचर करते हैं। सूर्य के राशि परिवर्तन की अवधि एक माह की होती है। सूर्य किसी भी राशि में एक माह तक विराजमान होते हैं। ऐसे में इन छह महीनों में कई राशियों पर शुभ और अशुभ प्रभाव पड़ते हैं।
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दक्षिणायन में क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य
•दक्षिणायन के दौरान भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। साथ ही पितरों की शांति के लिए पूजा और पिंडदान भी किया जाता है।
•देवशयनी एकादशी के बाद शुभ कार्य करना निषेध होता है। चातुर्मास का आरंभ हो जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। सूर्य जब दक्षिणायन में होते हैं तब शुभ कार्य करने का फल नहीं मिलता।
•दक्षिणायन में देव योगनिद्रा में होते हैं इसलिए विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, गृहप्रवेश आदि शुभ कार्य करना वर्जित होता है।
पूजा विधि
Sun zodiac sign will change in this Muhurta : कर्क संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रणाम करें। इसके पश्चात, घर की साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़ककर घर को शुद्ध करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के पश्चात गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। इस समय निम्न मंत्र का उच्चारण जरूर करें।
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
तदोपरांत, भगवान विष्णु की पूजा फल, धूप-दीप, दूर्वा आदि से करें। पूजा के समय सूर्य चालीसा, सूर्य कवच का पाठ और सूर्य मंत्र का जाप करें। अंत में आरती अर्चना कर भगवान से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। पूजा समापन के पश्चात, सामर्थ्य के अनुसार दान करें।
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