Ganesh Puran : श्री गणेश पुराण के चतुर्थ खंड के अष्टम अध्याय में गणेश्वर के वेद – प्रसिद्द अष्ट नाम का वर्णन है। हे दुर्गे ! इस स्तोत्र का परायण करने वाला गणेश्वर की कृपा से महान् ज्ञानी और बुद्धिमान् हो जाता है। इसके प्रभाव से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, पत्नी की अभिलाषा वाले को पत्नी और महामूर्ख को भी श्रेष्ठ विद्या की प्राप्ति होती है। ये नाम सर्वत्र मंगल को करने वाले और सर्वत्र संकटों का नाश करने वाले होते हैं। यह गणेश जी के नामाष्टक स्तोत्र अपने अर्थों में संयुक्त एवं शुभ करने वाला होता है।
‘हिमगिरिनन्दिनि ! तुम्हारे पुत्र गणेश्वर तो वेदों में भी प्रसिद्ध हैं। इनके आठ नामों में एक नाम ‘एकदन्त’ तो बहुत ही प्रसिद्ध है। वे आठ नाम यह हैं-
“गणेशमेकदन्तं च हेरम्बं विघ्ननाशकम् ।
लम्बोदरं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं गुहाग्रजम् ॥”
Ganesh Puran
१. गणेश
२. एकदन्त
३. हेरम्ब
४. विघ्ननाशक
Ganesh Puran
५. लम्बोदर
६. शूर्पकर्ण
७. गजवक्त्र
८. गुहाग्रज
Ganesh Puran : श्री गणेश का सबसे प्रिय मंत्र
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा”। गणेश जी का ये मंत्र सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस मंत्र का अर्थ ये है कि जिनकी सुंड घुमावदार है, जिनका शरीर विशाल है, जो करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, वही भगवान मेरे सभी काम बिना बाधा के पूरे करने की कृपा करें।
Ganesh Puran : वेद व्यास लिखित 18 पुराणों में से एक है, गणेश पुराण।
गणेश पुराण में पांच खंड हैं। पहला खंड आरंभ खंड है। दूसरा खंड परिचय है। सभी खंडों में किस्से हैं, कथाएं हैं, कीर्ति वर्णन है। गणेश पुराण में गणेश जी की लीलाओं का बखान है। गणेश पुराण में तीसरा खंड मां पार्वती पर आधारित खंड है। इसमें पार्वती जी के जन्म, शिव विवाह की कहानी है। सबसे रोचक है, चौथा खंड है। चौथा खंड, युद्ध खंड है। मत्सर असुर की कहानी इसी खंड में आती है। पांचवा खंड महादेव पुण्य कथा पर है। इस खंड में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग के बारे में बताया गया है। गणेश जी की अपरम्पार लीलाओं का सार गणेश पुराण में समाहित किया गया है। उनके विभिन्न नामों के पीछे की कहानी भी आपको इस पुराण में मिलेंगी।
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