धर्म । कबीरधाम ज़िले में ऐसा विलक्षण शनि धाम है, जहां शनिदेव अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं। यहां तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन है। घने जंगलों के बीच बने इस मंदिर में शनिदेव की पूजा खास विधि-विधान से होती है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले श्रद्धालुओं को गोबर का लेप लगाना पड़ता है।
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कवर्धा ज़िले में मौजूद शनि मंदिर के साथ जुड़े धार्मिक और पौराणिक संदर्भों की वजह से इसकी ख़ास अहमियत है। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी, जिसके बाद उन्हें राजपाट वापस मिला था।
ग्रहों में शनि को सबसे उग्र ग्रह माना जाता है। शनि का प्रभाव इतना व्यापक है कि शनि की पीड़ा से लोगों में भय पैदा हो जाता है। शनि अगर नाराज हों जीवन में उथल-पुथल मची रहती है। इसलिए शनि को अनुकूल बनाना बेहद जरूरी है। हनुमानजी की अपरंपार महिमा के चलते ही शनिदेव भी उनके भक्तों को त्रास नहीं देते। कहते हैं, अगर कोई भक्त शनिवार को संकटमोचक हनुमान की आराधना करें, तो हमेशा शनि की वक्र दृष्टि से बचा रहता है।
दंडाधिकारी शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है, उनकी आरती करना।
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जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
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