Kamada Ekadashi : कामदा एकादशी कब है? जाने तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि व पौराणिक व्रत कथा.. इस व्रत से रुके हुए सभी कार्य हो जायेंगे सिद्ध

When is Kamada Ekadashi? Know the date, time, puja method and mythological fasting story.. All the pending tasks will be accomplished by this fast

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Modified Date: April 2, 2025 / 02:19 PM IST
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Published Date: April 2, 2025 2:19 pm IST

Kamada Ekadashi :कामदा एकादशी, जो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, इस साल 2025 में, कामदा एकादशी 8 अप्रैल, मंगलवार को मनाई जाएगी। कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के मंदिर में जाएं तथा श्री विष्णु के मंत्रों का जाप करें। भगवान विष्णु को समर्पित यह एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने और पापों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है। कहा गया है कि ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है। इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

Kamada Ekadashi : आईये आपको बताएं कब का है शुभ मुहूर्त 

चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारम्भ- 07 अप्रैल 2025, दिन सोमवार को रात 08:00 बजे से,
एकादशी तिथि की समाप्ति-
08 अप्रैल 2025, दिन मंगलवार को रात 09 बजकर 12 मिनट पर।

पारण/ व्रत तोड़ने का समय- 09 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 02 मिनट से 08 बजकर 34 मिनट तक।
पारण तिथि पर द्वादशी समापन का समय- दोपहर 10 बजकर 55 मिनट पर।

Kamada Ekadashi :  Kamada Ekadashi Puja Vidhi
– चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
– भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को एक चौकी पर स्थापित करें।
– भगवान विष्णु को फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
– भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
– कामदा एकादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।

Kamada Ekadashi
– पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ का जप करें।
– दिन भर उपवास रखें और शाम को भगवान विष्णु की आरती करने के बाद फलाहार करें।
– अगले दिन, द्वादशी तिथि को, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
– इसके बाद, स्वयं भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।

Kamada Ekadashi : यहाँ प्रस्तुत है कामदा एकादशी की पौराणिक व्रत कथा 

प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे। एक दिन गन्धर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगडने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया।

Kamada Ekadashi

राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ। ललित वर्षों वर्षों तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बडी दुःखी होती थी। वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ‍ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।

Kamada Ekadashi

ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करते हुए वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को प्राप्त हुए। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें। साथ ही विष्णु पुराण का पाठ करें।

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Read more : यहाँ पढ़ें और सुनें 

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