Mund Mala Ka Rahasya : भगवान शिव 108 कंकाल की खोपड़ियों को माला में पीरो कर अपने कंठ में क्यों धारण करते हैं? ये कथा आपको कर देगी हैरान
Why does Lord Shiva wear a garland of 108 skeleton skulls around his neck? This story will surprise you
Mund Mala Ka Rahasya
Mund Mala Ka Rahasya : ऐसे तो कई चित्रों में देखा गया हैं कि शिवजी अपने कंठ में नर मुंड (कंकाल की खोपड़ियों) की माला पहनते हैं, परन्तु ये किसके सिर हैं जो वह अपने कंठ में धारण करते हैं? भगवान शिव और उनके उग्र स्वरूपों को अक्सर मुंडमाला पहने हुए दर्शाया जाता है; शिव भस्म से लिपटे होते हैं और खोपड़ियाँ उन्हें सुशोभित करती हैं। इसके पीछे की वजह जानने की चाह हर शिव भक्त में होती है। ऐसी ही चाह एक बार नारदजी को भी हुई तो वह पहुंच गए माता सती के पास और उनके मन में संदेह पैदा करके चले गए। फिर क्या था माता सती ने भगवान शिव से इसकी वजह बताने की जिद की। तब जाकर भोले बाबा ने पूरी कथा बताई। तो आइये विस्तारपूर्वक जानते हैं, आखिर शिवजी के नर मुंड की माला पहनने के पीछे क्या है रहस्य और उस माला में किसके 108 सिर हैं?
Mund Mala Ka Rahasya
हर भक्त के दिल में ये बात आती है कि जहां सभी देवता अलग-अलग आभूषण पहने रहते हैं। सजे-धजे रहते हैं वहीं भगवान शिव का स्वरूप सबसे भिन्न है क्यूंकि वह गले में सांप, शरीर पर भभूत और गले में नरमुंड की माला धारण करते हैं। उनके मस्तक पर चंद्रमा और हाथ पर त्रिशूल है, लेकिन भगवान शिव कंकाल की खोपड़ियों को माला में पिरोकर क्यों पहनते हैं? एक बार नारद जी को भी इसकी वजह जानने की उत्सुकता हुई बस फिर क्या, इसे जानने के लिए वह पहुँच गए माता सती के पास।
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कथा के अनुसार नारद जी ने भी माता सती से सीधे सीधे ये प्रश्न नहीं किया अथवा उनसे पूछा की माता बताइये भगवान शिव सबसे अधिक प्रेम किसे करते हैं? तो माता सती ने उत्तर दिया कि भगवान शिव सबसे अधिक मुझे प्रेम करते हैं तो नारद जी ने पूछा कि फिर प्रभु अपने कंठ में मुंड माला क्यों धारण करते हैं? तो माता सती मन ही मन सोचने लगी कि ऐसा क्यों है..
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माता सती ने पूछा भगवान शिव जी से सवाल..
इसके बाद माता सती ने शिवजी से यही सवाल किया। आप ये बताइये कि आप मुंड माला क्यों पहनते हैं और ये मुंड किसके हैं? बताते हैं कि पहले तो भगवान शिव ने माता सती को टालने का प्रयास किया परन्तु जब वह अड़ी रहीं तो शिवजी ने बताया कि इस मुंड माला में आपके सिर हैं। इसमें अभी 107 सिर हैं और आप उन शरीर को त्याग कर चुकी हैं। अब आपका 108वां जन्म है। इस पर माता सती ने पूछा, मैं बार-बार जन्म लेती हूं लेकिन आप क्यों नहीं। इस पर शिवजी ने कहा, मुझे अमर कथा का ज्ञान है। इस पर माता कहने लगीं कि मुझे भी अमर कथा सुनाओ।
कथा बताती है कि भगवान शिव ने माता सती को अमरकथा सुनाई लेकिन माता बीच में ही सो गई थी जिससे वह पूरा सुन नहीं पाई। कालांतर में शिवजी का अपमान नहीं सहने के कारण माता सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में कूद गई थीं। कहा जाता है कि माता के इस स्वरूप के सिर को भी अपनी माला में पिरोया। इस प्रकार वह 108 मुंडों की माला पहनते हैं। इसके बाद माता पार्वती के रूप में माता सती का अगला जन्म हुआ और उनसे विवाह के दौरान भगवान शिव यही 108 नरमुंड की माला पहनकर गए थे। माता पार्वती को अमरता प्राप्त थी इसलिए उन्होंने अपना शरीर नहीं त्यागा।
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इससे जुडी एक अन्य कथा में बताया जाता है कि भगवान शिव राहु के 108 सिरों की माला पहनते हैं। एक अन्य व्याख्या मुंडमाला को युद्ध में पहनने वाली देवी द्वारा मारे गए दुश्मनों और राक्षसों के सिरों के प्रतीक के रूप में जोड़ती है। यह कथा इस प्रकार है कि जब समुद्र मंथन में देवताओं और राक्षसों को अमृत और मदिरा बांटी जा रही थी तो स्वरभानु नामक राक्षस देवताओं की पंक्ति में बैठ गया था। तब उसकी शिकायत सूर्य और चंद्रमा ने भगवान विष्णु से कर दी थी। तब भगवान विष्णु ने स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया था। सिर राहु और धड़ केतु कहलाए।
कथा के अनुसार फिर क्रोध में राहु चंद्रमा के पीछे पड़ गया। और उसे निगल दिया लेकिन धड़ नहीं होने से चंद्रमा बचकर निकल गए। तब राहु ने अब चंद्रमा को चबाने की सोची और पकड़ने की कोशिश की। चंद्रमा बचकर शिवजी के पास पहुंच गए। शिवजी ने चंद्रमा को अपनी जटा पर धारण किया। जब राहु उनके पास पहुंचा तो शिवजी ने कहा कि तुम्हें भोजन की जरूरत नहीं है। चूंकि तुम मेरे पास आए हो इसलिए मैं तुम्हें अपने गले में धारण करता हूं। कहते हैं कि राहु को अपने करीब देखकर चंद्रमा कांपने लगे और उनके पास से अमृत गिरने लगा जिसके प्रभाव में आने से राहु के 108 सिर हो गए। तब से शिवजी के गले में राहु के 108 सिर की माला है जिसे मुंड माला कहते हैं।
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