‘राजिम माघी पुन्नी मेला’ से जुड़ी है लोगों की आस्था, क्या है इसके पीछे मान्यता.. जानें
'राजिम माघी पुन्नी मेला' से जुड़ी है लोगों की आस्था, क्या है इसके पीछे मान्यता.. जानें
राजिम। छत्तीसगढ़ में जब कुंभ के आयोजन की कल्पना की गई थी, तब इस बात की कल्पना थी कि छत्तीसगढ़ की उस धरा को जहां भगवान श्रीराम के श्रीचरण पड़े हों, जिसका अपना गौरवशाली सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास है, उस धरा पर एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन का श्रीगणेश किया जाए। इस दृष्टि के साथ अर्धकुंभ का आयोजन आरंभ हुआ। श्रेष्ठतम साधु-संतों ने इसे जांचा और परखा। धर्म और संस्कृति की तुला पर जब आयोजन खरा उतरा तो इसकी अनुमति दी गई। इसके बाद तो राजिम कुंभ के नाम से आयोजन उत्तरोत्तर अपनी श्रीवृद्धि की हो चल पड़ा। राजिम कुंभ को विश्व रिकॉर्ड में दर्ज होने का गौरव भी प्राप्त हुआ है। माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक लगने वाला कुंभ भारत के पांचवें कुम्भ कल्प मेला के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है। कुंभ मेले में उज्जैन, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, ऋषिकेश, द्वारिका, कपूरथला, दिल्ली, मुंबई जैसे धार्मिक स्थलों के साथ देश के प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के अखाड़ों के महंत, साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों का आगमन होता है।
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महज 13 साल में राजिम कुंभ विश्व रिकॉर्ड गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो गए हैं। इसमें पहला वल्र्ड रिकॉर्ड 7 फरवरी 2018 को बना है, जिसमें करीब 3 लाख 61 हजार दीपक एक साथ जलाए गए थे। वहीं दूसरा वर्ल्ड रिकॉर्ड बीते 8 फरवरी 2018 को 2100 लोगों द्वारा एक साथ शंखनाद कर बनाया गया है। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के एशिया हेड डॉ. मनीष बिश्नोई ने इस बात की पुष्टि की थी।
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राजिम कुंभ के तत्कालीन प्रभारी मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल ने इस उपलब्धि पर कहा कि विश्व शांति, पर्यावरण और नदियों को बचाने का संदेश देने के लिए ये आयोजन किए गए थे। इससे राजिम कुंभ की दिव्यता और भव्यता का भी विश्व में प्रसार होगा. साथ ही इससे राजिम कुंभ की महिमा भी बढ़ेगी। उल्लेखनीय है कि पहले रिकॉर्ड के लिए शासन ने ढाई लाख दीपक जलाने की तैयारियां की थी, लेकिन लोगों ने मिलकर 3 लाख 61 हजार दिए जलाए। ठीक इसी तरह दूसरे वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए शासन ने 1500 शंखनाद का टारगेट रखा था, लेकिन उसमें भी 2100 लोगों ने शंखनाद दिया।
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देश के प्रसिद्ध ‘प्रयाग तीर्थ’ की तरह छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ कल्प भी अपनी विशेष पहचान बना चुका है। इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम की जैसी महत्ता है कुछ वैसा ही महत्व राजिम के तीन नदियों महानदी, सोंढूर व पैरी नदी का संगम है। त्रिवेणी संगम तट पर लगने वाले राजिम कुंभ कल्प में लाखों लोग दर्शन, स्नान करने उमड़ते हैं। भगवान राजीव लोचन की तीर्थस्थली में सैकड़ों साल से माघ पूर्णिमा पर राजिम मेला लगता आ रहा है। राजिम मेले को 2005 में भव्य रूप से आयोजित करने का निर्णय लिया गया था। मात्र 13 सालों में ही राजिम मेला राजिम कुंभ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राज्य बनने के बाद 2005 में मेले को दिया गया राजिम कुंभ का नाम।
धर्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्रीरामचन्द्र और माता सीता ने अपने वनवास के सर्वाधिक 10 वर्ष छत्तीसगढ़ की धरा पर बिताए है। इससे जुड़ी कई किवदंतियां प्रचलित है। प्रमुख रूप से किवदंती है कि राजिम के त्रिवेणी संगम में कुलेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना माता सीता द्वारा वनवास के दौरान किया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में राजिम की मान्यता प्रयागराज इलाहाबाद की तरह है। यहां संगम में अस्थि विसर्जन, पिंडदान आदि कर्मकांड कराये जाते है।
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राजिम कुंभ कल्प को प्रसिद्धि यहां होने वाले सात दिवसीय संत समागम की वजह से मिली है। देश के बड़े-बड़े संत-महात्मा, महामंडलेश्वर, नागा साधु, हरिद्वार, वाराणसी, ऋषिकेश, अयोध्या समेत सभी धार्मिक स्थलों के आश्रमों व अखाड़ों के साधु-संत यहां आ चुके हैं। अपने गुरुजनों के प्रवचन सुनने व दर्शन लाभ लेने देशभर से भक्त राजिम कुंभ में अवश्य पधारते हैं। त्रिवेणी संगम के बीच स्थित प्राचीन कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है।
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कोरोना के चलते इस साल उसी स्वरूप में राजिम माघी पुन्नी मेला का आयोजन होगा जैसे वर्षों पहले राजिम माघी पुन्नी मेला का स्वरूप था। इस साल मेले में न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छटा बिखरेगी और न ही विभागीय प्रदर्शन के स्टाल लगेंगे और न ही कोई अन्य शासकीय आयोजन होंगे। वर्षों पहले जैसे ग्रामीण अंचलों में मेले का आयोजन होता था उसी प्रकार इस साल राजिम माघी पुन्नी मेला देखने को मिलेगा। हालांकि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की सहूलियत और सुरक्षा के लिए सभी जरूरी व्यवस्थाएं प्रशासन द्वारा की जाएंगी।
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भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार कोविड-19 प्रोटोकाल का पालन करते हुए राजिम माघी पुन्नी मेला का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान कोई बड़े आयोजन नहीं किए जाएंगे और न ही किसी प्रकार के शासकीय आयोजन होंगे। प्रभारी मंत्री ने बताया कि परंपरा के अनुरूप इस वर्ष राजिम माघी पुन्नी मेला 27 फरवरी से 11 मार्च तक आयोजित होगा। इस दौरान तीन स्नान पर्व, 27 फरवरी, 6 मार्च और 11 मार्च को होगा। यह भी स्वफूर्त आयोजित होगा।

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