Shirdi Sai Baba : शिरडी के साईं बाबा का एक साधारण सी ईंट के साथ क्या था कनेक्शन ? क्यों ईंट के टूटने से हुई साईं बाबा की मृत्यु?

What was the connection of Shirdi Sai Baba with a simple brick? Why did the breaking of a brick cause Sai Baba's death?

Shirdi Sai Baba : शिरडी के साईं बाबा का एक साधारण सी ईंट के साथ क्या था कनेक्शन ? क्यों ईंट के टूटने से हुई साईं बाबा की मृत्यु?

Shirdi Sai Baba

Modified Date: December 17, 2024 / 06:43 pm IST
Published Date: December 17, 2024 6:43 pm IST

Shirdi Sai Baba : साईं बाबा एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु और फकीर थे, जिन्हें एक संत माना जाता था जिन्हें शिरडी साईं बाबा के नाम से भी जाना जाता है।

साईं बाबा का जन्म और परिवार
महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में सांईंबाबा का जन्म 27-28 सितंबर 1830 को हुआ था। यहां पर बने मकान को एक मंदिर में बदल दिया गया है। मंदिर के अंदर सांईं की आकर्षक मूर्ति रखी हुई है। पुराने मकान के अवशेषों को भी अच्छे से संभालकर रखा गया है। इस मकान को सांईं बाबा के वंशज रघुनाथ भुसारी से 3 हजार रुपए में 90 रुपए के स्टैम्प पर श्री सांईं स्मारक ट्रस्ट से खरीद लिया था। सांईं बाबा के पिता का नाम परशुराम भुसारी और माता का नाम अनुसूया था जिन्हें गोविंद भाऊ और देवकी अम्मा भी कहा जाता था। कुछ लोग पिता को गंगाभाऊ भी कहते थे। दोनों के 5 पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- रघुपति, दादा, हरिभऊ, अंबादास और बलवंत। सांईं बाबा परशुराम की तीसरी संतान थे जिनका नाम हरिभऊ था।

बाबा स्वयं कहा करते थे “हम तो साई है गुसाई है” जब वे शिरडी लौटे तो मंदिर के पुजारी महालसापति ने उन्हें साईं नामसे स्वागत किया था।

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Shirdi Sai Baba : आईये जानते हैं साईं बाबा और ईंट का सबंध,, ईंट का टूटना और साईं बाबा का निधन

सांईं बाबा के पास एक ईंट हमेशा रहती थी। वे उस ईंट पर ही सिर रखकर सोते थे। उसे ही उन्होंने अपना तकिया बनाकर रखा था। दरअसल, यह ईंट उस वक्त की है, जब सांईं बाबा वैंकुशा के आश्रम में पढ़ते थे। वैकुंशा के दूसरे शिष्य सांईं बाबा से वैर रखते थे, लेकिन वैंकुशा के मन में बाबा के प्रति प्रेम बढ़ता गया और एक दिन उन्होंने अपनी मृत्यु के पूर्व बाबा को अपनी सारी शक्तियां दे दीं और वे बाबा को एक जंगल में ले गए, जहां उन्होंने पंचाग्नि तपस्या की। वहां से लौटते वक्त कुछ लोग सांईं बाबा पर ईट-पत्थर फेंकने लगे।

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बाबा को बचाने के लिए वैंकुशा सामने आ गए तो उनके सिर पर एक ईंट लगी। वैंकुशा के सिर से खून निकलने लगा। बाबा ने तुरंत ही कपड़े से उस खून को साफ किया। वैंकुशा ने वहीं कपड़ा बाबा के सिर पर तीन लपेटे लेकर बांध दिया और कहा कि ये तीन लपेटे संसार से मुक्त होने और ज्ञान व सुरक्षा के हैं। जिस ईंट से चोट लगी थी, बाबा ने उसे उठाकर अपनी झोली में रख लिया। इसके बाद बाबा ने जीवनभर इस ईंट को ही अपना सिरहाना बनाए रखा।

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सन् 1918 ई. के सितंबर माह में दशहरे से कुछ दिन पूर्व मस्जिद की सफाई करते समय बाबा के एक भक्त माधव फासले के हाथ से गिरकर वह ईंट टूट गई। द्वारकामाई में उपस्थित भक्तगण स्तब्ध रह गए। सांईं बाबा ने भिक्षा से लौटकर जब उस टूटी हुई ईंट को देखा तो वे मुस्कुराकर बोले- ‘यह ईंट मेरी जीवनसंगिनी थी’। अब यह टूट गई है तो समझ लो कि मेरा समय भी पूरा हो गया।’ बाबा तब से अपनी महासमाधि की तैयारी करने लगे।

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कहते हैं कि दशहरे के कुछ दिन पहले ही सांईं बाबा ने अपने एक भक्त रामचन्द्र पाटिल को विजयादशमी पर ‘तात्या’ की मृत्यु की बात कही। तात्या बैजाबाई के पुत्र थे और बैजाबाई सांईं बाबा की परम भक्त थीं। तात्या, सांईं बाबा को ‘मामा’ कहकर संबोधित करते थे, इसी तरह सांईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का निर्णय लिया।

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सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर दशहरे के दिन 1918 में समाधि ले ली थी। 27 सितंबर 1918 को सांईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया। बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पहले तात्या की तबीयत इतनी बिगड़ी कि जिंदा रहना मुमकिन नहीं लग रहा था। लेकिन उसकी जगह सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।

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लेखक के बारे में

Swati Shah, Since 2023, I have been working as an Executive Assistant at IBC24, No.1 News Channel in Madhya Pradesh & Chhattisgarh. I completed my B.Com in 2008 from Pandit Ravishankar Shukla University, Raipur (C.G). While working as an Executive Assistant, I enjoy posting videos in the digital department.