क्यों कहा जाता है गणेश जी को एकदन्त, देखें गजानन और परशुराम के भीषण युद्ध की रोचक कथा | Why is Ganesha called Ekadant See interesting story of fierce battle of Lord Ganesha and Parashuram

क्यों कहा जाता है गणेश जी को एकदन्त, देखें गजानन और परशुराम के भीषण युद्ध की रोचक कथा

क्यों कहा जाता है गणेश जी को एकदन्त, देखें गजानन और परशुराम के भीषण युद्ध की रोचक कथा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:49 PM IST, Published Date : August 24, 2020/1:24 am IST

धर्म। भगवान गणेश की पूजा से किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है। भगवान गणेश को गजानन, एकाक्षर, विघ्नहर्ता, एकदंत के अलावा और भी कई नामों से बुलाया जाता है। गणपति का नाम एकदंत कैसा पड़ा और इसके पीछे क्या कहानी आज हम आपको बताते हैं।

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एकबार गणेश जी भगवान शिव के लिए दरवाजे की रखवाली कर रहे थे तब ऋषि परशुराम उनसे मिलने आए। जब गणेश जी ने उन्हें प्रवेश करने से इनकार किया, इससे परशुराम क्रोधित हो गए । अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध परशुराम ने तलवारें खींच लीं और गणेश जी से युद्ध करने लगे।

एकदंत स्वरूप गजानन को भगवान परशुराम के प्रहार से मिला। एक बार शिवजी के परमभक्त परशुराम भोलेनाथ से मिलने आए। उस समय कैलाशपति ध्यानमग्न थे। गणेश ने परशुराम को मिलने से रोक दिया। परशुराम ने उन्हें कहा वे मिले बिना नहीं जाएंगे।

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गणेश भी विनम्रता से उन्हें टालते रहे, जब परशुरामजी का धैर्य टूट गया तो उन्होंने गजानन को युद्ध के लिए ललकारा। ऐसे में गणाध्यक्ष गणेश को उनसे युद्ध करना पड़ा। गणेश-परशुराम में भीषण युद्ध हुआ। परशुराम के हर प्रहार को गणेश निष्फल करते गए। अंततः क्रोध के वशीभूत परशुराम ने गणेश पर शिव से प्राप्त परशु से ही वार किया। गणेश ने पिता शिव से परशुराम को मिले परशु का आदर रखा।

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परशु के प्रहार से उनका एक दांत टूट गया। पीड़ा से एकदंत कराह उठे। पुत्र की पीड़ा सुन माता पार्वती आईं और गणेश को इस अवस्था में देख परशुराम पर क्रोधित होकर दुर्गा के स्वरूप में आ गईं। यह देख परशुराम समझ गए उनसे भयंकर भूल हुई है। परशुराम ने माता पार्वती से क्षमा याचना कर एकदंत की विनम्रता की सराहना की। परशुराम ने गणेश को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया।

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इस प्रकार गणेश की शिक्षा विष्णु के अवतार गुरु परशुराम के आशीष से सहज ही हो गई। कालांतर में उन्होंने इसी टूटे दंत से महर्षि वेदव्यास से उच्चरित महाभारत कथा का लेखन किया। भगवान गणेश के एकदंत विग्रह का पूजन वंदन स्मरण गणेशोत्सव के दौरान चौथे दिन अर्थात् भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को करना विशेष फलदायी है।