#SarkarOnIB24: फिर सुर्ख़ियों में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़.. सुको की भूमिका-अधिकारों पर उठायें सवाल, छिड़ी बहस
धनखड़ के बयान और न्यायपालिका पर उठे सवालों के बाद, एक बार फिर सरकार, संसद और न्यायपालिका के अधिकारों और संतुलन को लेकर देश में गहरी बहस शुरू हो गई है।
SIT Report on Murshidabad Hinsa || Image- IBC24 News File
- उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया।
- दिल्ली हाईकोर्ट कैशकांड का हवाला देकर न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाए गए।
- कपिल सिब्बल और कांग्रेस ने न्यायपालिका पर हमले को अस्वीकार्य बताया।
Sarkar On IB24: नई दिल्ली: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ एक बार फिर अपने बेबाक बयान को लेकर चर्चा में हैं। इस बार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और अधिकारों पर सवाल उठाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के कथित कैशकांड का हवाला देकर न्यायपालिका को लेकर गंभीर टिप्पणियां की हैं। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में गर्मागर्म बहस छिड़ गई है।
Vice President Jagdeep Dhankhar on Supreme Court
धनखड़ ने राज्यसभा के प्रक्षिशु अधिकारियों को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय की थी। उपराष्ट्रपति ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए “परमाणु मिसाइल” जैसा कदम करार दिया। साथ ही उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा का भी उल्लेख किया और न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए।
Sarkar On IB24: धनखड़ के इस बयान पर वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने प्रतिक्रिया दी और कहा कि राष्ट्रपति के पास कोई निजी विवेकाधिकार नहीं होता, वह केवल कैबिनेट की सलाह पर काम करता है।
उपराष्ट्रपति के बयान पर कांग्रेस ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी नेताओं ने इसे न्यायपालिका की स्वायत्तता पर सीधा हमला बताया। वहीं, समाज का एक वर्ग धनखड़ के बयान का समर्थन कर रहा है। जबलपुर में कुछ सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन कर न्यायपालिका में पारदर्शिता की मांग की और जस्टिस वर्मा मामले की सीबीआई जांच की मांग उठाई।
Sarkar On IB24: भारत में अमेरिका की तरह एक संघीय व्यवस्था (फेडरल सिस्टम) है, जहां सुप्रीम कोर्ट को सरकार के फैसलों की न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार है। यह एक संवैधानिक प्रावधान है, जिस पर बहस हो सकती है, लेकिन इसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
धनखड़ के बयान और न्यायपालिका पर उठे सवालों के बाद, एक बार फिर सरकार, संसद और न्यायपालिका के अधिकारों और संतुलन को लेकर देश में गहरी बहस शुरू हो गई है।

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