नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि उसे भारतीय फुटबॉल के मामलों को नियंत्रित या निगरानी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
न्यायालय ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ के मसौदा संविधान में दो विवादास्पद प्रावधानों पर पूर्व न्यायाधीश एल. नागेश्वर राव की राय मांगी है।
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और ए. एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा कि वह न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची से बात करेगी जो 19 सितंबर को एआईएफएफ के मसौदा संविधान से संबंधित याचिका पर सुनवाई करने वाली पीठ का हिस्सा थे।
एआईएफएफ का मसौदा संविधान उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति राव द्वारा तैयार किया गया था। इसे उच्चतम न्यायालय के द्वारा अनुमोदित किया गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘ हम पहले ही कह चुके हैं कि न्यायालय को फुटबॉल के मामलों को नियंत्रित या निगरानी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। हमारा फैसला सिर्फ उस अंतराल के लिए है जब तक कि कानून लागू नहीं हो जाता। ऐसी छोटी-छोटी बातें आसानी से सुलझाई जा सकती थीं। खैर, हम न्यायमूर्ति राव की राय लेंगे और स्पष्टता जारी करेंगे।’’
एआईएफएफ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ को सूचित किया कि शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार महासंघ रविवार को एक विशेष आम निकाय बैठक आयोजित करने वाला है। इसमें मसौदा संविधान को अपनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि विश्व फुटबॉल की संचालन संस्था फीफा को मसौदा संविधान की दो धाराओं पर आपत्ति है और एआईएफएफ इस संबंध में पीठ से स्पष्टीकरण चाहता है। लूथरा ने कहा कि मसौदा प्रावधानों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को एआईएफएफ में नामित किया जाता है, तो वह राज्य फुटबॉल संघ का सदस्य नहीं रह सकता। अगर वह राज्य संघ का सदस्य नहीं है तो वह राष्ट्रीय निकाय का सदस्य नहीं बन सकता।
इस मामले के न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि फैसले में हर प्रावधान को स्पष्ट कर दिया गया है और एआईएफएफ को स्पष्टीकरण नहीं मांगना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि स्पष्टीकरण मौजूदा कार्यकारी समिति के सदस्यों द्वारा मांगा जा रहा है। उन्हें अगले वर्ष तक अपने पदों पर बने रहने की अनुमति दी गई है । वे इस लिए प्रभावित हो रहे है क्योंकि वे राज्य संघों पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 19 सितंबर को कुछ संशोधनों के साथ एआईएफएफ के मसौदा संविधान को मंजूरी दी थी और चार सप्ताह के अंदर महासंघ से इसे अपनाने को कहा था।
भाषा आनन्द पंत
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